Snehdeep Osho Vision

 शिव कहते है: ‘’जब चींटी के रेंगने की अनुभूति हो तो इंद्रियों के द्वार बंद कर दो।‘’

यह विधि कहती है: ‘’इंद्रियों के द्वार बंद कर दो।‘’ 

पत्थर की तरह हो जाओ। जब तुम सच में संसार के लिए बंद हो जाते हो तो तुम अपने शरीरके प्रति भी बंद हो जाते हो।

क्योंकि तुम्हारा शरीर तुम्हारा हिस्सा न होकर संसार का हिस्सा है। जब तुम संसार के प्रति बिलकुल बंद हो जाते हो तो अपने शरीर के प्रति भी बंद हो गए। और तब शिव कहते है, तब घटना घटेगी।

इस लिए शरीर के साथ इसका प्रयोग करो। किसी भी चीज से काम चल जाएगा। रेंगती चींटी ही जरूरी नहीं है। नहीं तो तुम सोचोगे कि जब चींटी रेंगेगी तो ध्यान करेंगे। और ऐसी सहायता करने वाली चींटियाँ आसानी से नहीं मिलती। इसलिए किसी से भी चलेगा। तुम अपने बिस्तर पर पड़े हो और ठंडी चादर महसूस हो रही है। उसी क्षण मृत हो जाओ। अचानक चादर दूर  होने लगेगी । विलीन हो जाएगी। तुम बंद हो, मतृ हो, पत्थर जैसे हो, जिसमे कोई भी रंध नहीं है, तुम हिल नहीं सकते। और जब तुम हिल नहीं सकते तो तुम अपने पर फेंक दिये जाते हो। अपने में केन्द्रीत हो जाते हो। और तब पहली बार तुम

अपने केंद्र से देख सकते हो। और एक बार जब अपने केंद्र से देख लिया तो फिर तुम वही व्यक्ति नहीं रह जाओगे जो थे।


"ओशो विज्ञान भैरव तंत्र"


Shiva says: "Close the doors of the senses when you feel the ant crawling."

 This method says: "Close the doors of the senses."

 Get like a stone.  When you are really closed to the world, then you are also closed to your body.

 Because your body is not part of you but part of the world.  When you are completely closed towards the world, then you are also closed towards your body.  And then Shiva says, then the incident will happen.

 Therefore, use it with the body.  Anything will work.  The creeping ant itself is not necessary.  Otherwise, you will think that when the ant wakes up you will meditate.  And such helping ants are not easily found.  So anyone will do.  You lie on your bed and feel a cold sheet.  Be dead at that moment.  Suddenly the sheet will start to go away.  Will dissolve.  You are closed, like a stone, like a stone, in which there is no smell, you cannot move.  And when you cannot move, you are thrown on yourself.  You become centered in yourself.  And then for the first time you

  You can see from your center.  And once you have seen from your center, then you will no longer be the same person you were.


 "Osho Vigyan Bhairava Tantra"



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