Snehdeep Osho Vision

 इस यूग का एक महान सृजनात्मक मनीषी डी. एच. लॉरेंस, जाने अनजाने तंत्र विद था। पश्चिम मेंव पूरी तरह निंदित हुआ। उसकी किताबें जब्त हुई। उस पर अदालत में अनेक मुकदमे चले सिर्फ इसलिए कि उसने कहा कि काम ऊर्जा एक मात्र ऊर्जा है। और अगर तुम उसकी निंदा करते हो, दमन करते हो, तो तुम जगत के खिलाफ हो। और तब तुम कभी भी इस ऊर्जा की परम खिलावट को नहीं जान पाओगे। और दमित होने पर यह कुरूप हो जाती है। और यही दुष्चक्र है।

पुरोहित, नीतिवादी, तथाकथित धार्मिक लोग, पोप, शंकराचार्य, और दूसरे लोग काम की सतत निंदा करते है। वे कहते है कि यह एक कुरूप चीज है। और तुम इसका दमन करते रहते हो तो यह सचमुच कुरूप हो जाती है। तब वे कहते है कि देखो, जो हम कहते थे वह सच निकला। तुमने ही इसे सिद्ध कर दिया। तुम जो भी कर रहे हो वह कुरुप है, और तुम जानते हो कि वह कुरूप है। लेकिन काम स्वयं कुरूप नहीं है। पुरोहित ने उसे कुरूप कर दिया है। और जब वे इसे कुरुप कर चूकते है तब वे सही  साबित होते है। और जब वे सही साबित होते है तो तुम उसे कुरुप से कुरुप तर्क किए देते हो। काम तो निर्दोष ऊर्जा है। तुम में प्रवाहित होता जीवन है, जीवंत अस्तित्व है। उसे पंगु मत बनाओ। उसे उसके शिखर की यात्रा करने दो। उसका अर्थ है कि काम को प्रेम बनना चाहिए। फर्क क्या है ? 

जब तुम्हारा मन कामुक होता है तो तुम दूसरे का शोषण कर रहे हो। दूसरा मात्र एक यंत्र होता है। जिसे इस्तेमाल करके फेक देना है। और जब काम प्रेम बनता है तब दूसरा यंत्र नहीं होता दूसरे का शोषण नहीं किया जाता, दूसरा सच में दूसरा नहीं होता। तब तुम प्रेम करते हो तो यह सव्-केंद्रित नहीं है। उस हालत में तो दूसरा ही महत्वपूर्ण होता है। अनूठा होता है। तब तुम एक दूसरे का शोषण नहीं करते, तब दोनों एक गहरे अनुभव में सम्मिलित हो जातेहो। साझीदार हो जाते हो। तुम शोषक और शोषित न होकर एक दूसरे को प्रेम की और ही दुनियां में यात्रा करने में सहायता करते हो। काम शोषण है, प्रेम एक भिन्न जगत में यात्रा है।

अगर यह यात्रा क्षणिक न रहे, अगर यह यात्रा ध्यानपूणर्ण हो जाए, अर्थात अगर तुम अपने को बिलकुल भूल जाओ और प्रेमी

प्रेमिका विलीन हो जाएं और केवल प्रेम प्रवाहित होता रहे, तो शिव कहते है—‘’शाश्वत  जीवन तुम्हारा है।‘’


"ओशो विज्ञान भैरव तंत्र "


One of the great creative personalities of this era was DH Lawrence, a known unknown tantra.  To the west and became completely condemned.  His books were confiscated.  He faced many cases in court only because he said that work energy is the only energy.  And if you condemn it, oppress it, then you are against the world.  And then you will never know the ultimate flow of this energy.  And when repressed it becomes ugly.  And this is the vicious cycle.

 The priests, the ethicists, the so-called religious people, the pope, the Shankaracharya, and others constantly condemn the work.  They say that it is a ugly thing.  And if you keep suppressing it, then it really becomes ugly.  Then they say look, what we used to say came true.  You proved it.  Whatever you are doing is bad, and you know that it is ugly.  But the work itself is not ugly.  The priest has disfigured him.  And when they miss it, they are proved right.  And when they are proved to be right, then you argue with it in a bad way.  Work is innocent energy.  Life flows in you, there is a vibrant existence.  Do not paralyze him  Let him travel to his summit.  It means that work should become love.  What's the difference?

 When your mind is sensual you are exploiting the other.  The second is just a machine.  Which is to be thrown using.  And when work becomes love, then there is no other machine, the other is not exploited, the other is not really another.  If you love then it is not self-centered.  In that case, the other one is important.  Is unique.  Then you do not exploit each other, then both become involved in a deep experience.  You become a partner.  Instead of being exploited and exploited, you help each other to travel in the world of love and love.  Work is exploitation, love is a journey into a different world.

 If this journey is not ephemeral, if this journey becomes meditative, that is, if you forget yourself completely and lover

 If the beloved dissolves and only love continues to flow, Shiva says - "eternal life is yours."


 "Osho Vigyan Bhairava Tantra"




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