कल्पना करो कि मयूर पूंछ के पंचरंगे वर्तुल निस्सीम अंतरिक्ष में तुम्हारी पाँच इंद्रियां है।
अब उनके सौंदर्य को भीतर ही घुलने दो। उसी प्रकार शून्य में या दिवार पर किसी बिंदु के साथ कल्पना करो, जब तक कि वह
बिंदु विलीन न हो जाए। तब दूसरे के लिए तुम्हारी कामना सच हो जाती है।‘’
ये सारे सूत्र भीतर के केंद्र को कैसे पाया जाए उससे संबंधित है। उसके लिए जो बुनियादी तरकीब,जो बुनियादी विधि काम में लायी गयी है, वह यह है कि तुम अगर बाहर कहीं भी, मन में, हृदय में या बाहर की किसी दीवार में एक केंद्र बना सके और उस पर समग्रता से अपने अवधान को केंद्रित कर सके और उस बीच समूचे संसारा को भूल सके और एक वही बिंदु तुम्हारी चेतना में रह जाए। तो तुम अचानक अपने आंतरिक केंद्र पर फेंक दिए जाओगे।
अगर तुम अ या ब या किसी भी बिंदु पर ठहर गए, तो मन तुमसे संघर्ष करेगा। वह कहेगा कि आगे चलो। क्योंकि अगर तुम रुक
गए, मन तुरंत मर जायेगा। वह गति में रहकर ही जीता है। मन का अर्थ ही क्रिया है। अगर तुमने गति नहीं की तुम रुक गये तो मन अचानक समाप्त हो जायेगा। वह नहीं बचेगा। केवल चेतना बचेगी।
चेतना तुम्हारा स्वभाव है। मन तुम्हारा कर्म है। चलने जैसा। इसे समझना कठिन है। क्योंकि हम समझते है कि मन कोई
ठोस वास्तविक वस्तु है। वह नहीं है। मन महज एक क्रिया है। यह कहना बेहतर होगा की यह मन नहीं मनन है। चलने की
तरह यह एक क्रिया है। चलना क्रिया है; अगर तुम रुक जाओ, तो चलना समाप्त हो जायेगा। तुम तब नहीं कह सकते कि
चलना बैठना है। तुम रुक जाओ, तो चलना समाप्त है। तुम रुक जाओ तो चलना कहां है। चलना बंद। पैर है, पर चलना नहीं है। पैर चल सकते है। लेकिन अगर तुम रुक जाओ तो, चलना नहीं होगा।
चेतना पैर जैसी है, वह तुम्हारा स्वभाव है। मन चलने जैसा है, वह एक क्रिया है। जब चेतना एक जगह से दूसरे जगह जाती
है तब वह क्रिया मन है। जब चेतना अ से ब और ब से स को जाती है तब यह गति मन है। अगर तुम गति को बंद कर दो, तो मन नहीं रहेगा। तुम चेतन हो, लेकिन मन नहीं है। जैसे पैर तो है, लेकिन चलना नहीं है। चलना क्या है। कर्म है; मन भी क्रिया है, कर्म है।
"ओशो विज्ञान भैरव तंत्र "
Imagine that you have five senses in the five-colored circle of the peacock tail.
Now let their beauty dissolve within. Similarly imagine with a point in the void or on the wall until it
The point does not dissolve. Then your wish for another comes true. "
All these sutras are related to how to find the inner center. The basic trick for him, the basic method that has been used, is that if you can create a center anywhere outside, in the mind, in the heart or in any wall outside, and focus your attention on it in totality. So that you can forget the whole world and only one point remains in your consciousness. Then you will suddenly be thrown to your inner center.
If you stop at A or B or at any point, the mind will struggle with you. He will say go ahead. Because if you stop
Gone, the mind will die instantly. He lives by staying in motion. Mind means action. If you do not move you stop, then the mind will stop suddenly. He will not survive. Only consciousness will remain.
Consciousness is your nature. Mind is your karma Like walking It is difficult to understand. Because we understand that the mind
A solid is a real object. He is not. Mind is just a verb. It would be better to say that it is not a meditation. To walk
Like it is a verb. Walking is action; If you stop, walking will stop. You can't say that then
Walking is sitting. If you stop, walking is over. If you stop then where to go. stop walking. Have legs, but don't walk. Legs can walk. But if you stop, you won't have to walk.
Consciousness is like a foot, it is your nature. Mind is like walking, it is a verb. When consciousness moves from one place to another
Then that action is the mind. When consciousness moves from A to B and from B to S, then this motion is the mind. If you stop the movement, the mind will not be there. You are conscious, but do not have mind. Like there is a foot, but do not walk. What is walking Karma is; Mind is also action, action.
"Osho Vigyan Bhairava Tantra"
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