Snehdeep Osho Vision

 शिव कहतेहै, तुम प्रत्येक क्षण केंद्र को स्पर्श कर रहे हो, या यदि नहीं स्पर्श कर रहे हो तो कर सकते हो। गहरी धीमी श्वास

लो और केंद्र को स्पर्श करो। छाती से श्वास मत लो। वह एक चाल है सभ्यता,शिक्षा और नैतिकता ने हमें उथली श्वास सिखा दी है। केंद्र में गहरे उतरना जरूरी है, अन्यथा तुम गहरी श्वास नहीं ले सकते।

जब तक मनुष्य समाज कामवासना के प्रति गैर-दमन की दृष्टि नहीं अपनाता, तब तक वह सच में श्वास नहीं ले सकता।

अगर श्वास  पेट तक गहरी जाए तो वह काम केंद्र को ऊर्जा देती है। वह काम केंद्र को छूती है। उसकी भीतर से मालिश करती है। तब काम केंद्र अधिक सक्रिय, अधिक जीवंत हो उठता है। और सभ्यता कामवासना से भयभीत है।

हम अपने बच्चे- को जनेंद्रिय छूने नहीं देते है। हम कहते है, रुको, उन्हें छुओ मत। जब बच्चा पहली बार जनेन्द्रिय छूता है तो उसे देखो,और कहो,रुको, और तब उसकी श्वास क्रिया को देखो। जब तुम कहते हो,रुको, जनेंद्रिय मत छुओ। तो उसकी श्वास तुरंत उथली हो जायेगी। क्योंकि उसका हाथ ही काम केंद्र को नहीं छू रहा। गहरे में उसकी श्वासभी उसे छू रहीं है। अगर श्वास उसे छूती रहे तो हाथ को रोकना कठिन है। और अगर हाथ रूकता है तो बुनियादी तौर से जरूरी हो जाता है कि श्वास गहरी न होकर उथली रहे।

हम काम से भयभीत है। शरीर का निचला हिस्सा शारिरिक तल पर ही नहीं मूल्य के तल पर भी निचला हो गया है। वह निचला कहकर निंदित है। इसलिए गहरी श्वास नहीं , उथली श्वास लो। दुर्भाग्य की बात है कि श्वास  नीचे को ही जाती है।

अगर उपदेशक की चलती तो वह पूरी यंत्र रचना को बदल देता। वह सिर्फ ऊपर की और,सिर में श्वास लेने की इजाजत देता।

और तब कामवासना बिलकुल अनुभव नहीं होती।

अगर काम विहीन मनुष्य को जन्म देना है तो श्वास प्रणाली को बिलकुल बदल देना होगा।


"ओशो विज्ञान भैरव तंत्र " 


Shiva says, every moment you are touching the center, or if you are not touching, you can.  Deep slow breathing

 Take and touch the center.  Do not inhale from the chest.  That is a trick. Civilization, education and morality have taught us shallow breathing.  It is necessary to go deep into the center, otherwise you cannot breathe deeply.

 As long as human society does not take the view of non-repression towards sex, it cannot truly breathe.

 If the breath goes deep to the stomach, it gives energy to the work center.  She touches the work center.  Massages her from within.  Then the work center becomes more active, more vibrant.  And civilization is afraid of sex.

 We do not allow our child to touch the genitals.  We say wait, don't touch them.  When the child first touches the senses, look at it, and say, stop, and then look at his breathing.  When you say, wait, do not touch the senses.  Then his breathing will become shallow immediately.  Because his hand is not touching the work center.  His breath is touching her in the deep.  If the breath continues to touch it, it is difficult to stop the hand.  And if the hand stops, it is fundamentally necessary that the breathing be shallow and not deep.

 We are afraid of work.  The lower part of the body has become lower not only on the physical floor but also on the floor of value.  He is condemned as a lower.  So do shallow breathing, not deep breathing.  Unfortunately, the breath goes downwards.

 If the preacher had walked, he would have changed the entire machine structure.  He would just go up and allow the head to breathe.

And then sex is not experienced at all.

If work is to give birth to a man without work, then the breathing system has to be completely changed.


 "Osho Vigyan Bhairava Tantra"



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