Snehdeep Osho Vision

 तुम भीतर जाती श्वास को जान सकते हो। लेकिन तुम दोनो- के अंतराल को कभी नही जानते।

प्रयोग करो और तुम उस बिंदु को पा लोगे।

वह है। तुम्हें या तुम्हारे संरचना में कुछ जोड़ना नहीं है।

वह है है। सब कुछ है; सिर्फ बोध नहीं है। कैसे प्रयोग करो ? पहले भीतर आने वाला श्वास के प्रति होश पूर्ण बनो। उसे देखो।

सब कुछ भूल जाओ और आनेवाली  श्वास को, उसके यात्रा पथ को देखो। जब श्वास नासापुट- को प्रवेश करे तो उसको महसूस करो। श्वास को गति करने दो और पूरी सजगता से उसके साथ यात्रा करो। श्वास के साथ ठीक कदम से कदम मिलाकर नीचे उतरो; न आगे जाओ और न पीछे पड़ो। उसका साथ न छूटे बिलकुल साथ-साथ चलो।

स्मरण रहे, न आगे जाना है और न छाया की तरह पीछे चलना है। समांतर चलो। युगपत । श्वास और सजगता को एक हो जाने दो। श्वास नीचे जाती है तो तुम भी नीचे जाओं और तभी उस बिंदु को पा सकते हो, जो दो श्वास - के बीच में है। यह आसान नहीं है। श्वास के साथ अंदर जाओ श्वास के साथ बाहर आओ।

बुद्ध ने इसी विधि का प्रयोग विशेष रूप से किया इसिलिए यह बौद्ध विधि बन गई। बौद्ध शब्दावली में इसे अनापानसति योग

कहते है। और स्वयं बुद्ध की आत्मोपलब्धि इस विधि पर ही आधारित थी। संसार के सभी धर्म, संसार के सभी द्रष्टा किसी न

किसी विधि के जरिए मंजिल पर पहुंचे है। और वह सब विधियां एक सौ बारह विधियों में सम्मिलित है। यह पहलीविधि बौद्धविधि है। दुनियां इसे बौद्ध विधि के रूप में जानती है। क्योंकि बुद्ध इसके द्वारा ही निर्वाण को उपलब्ध हुए थे।

बुद्ध ने कहा है। अपनी श्वास-श्वास के प्रति सजग रहो। अंदर जाती, बहार आती, श्वास के प्रति होश पूर्ण हो जाओ। बुएसएसएच अंतराल की चर्चा नहीं करते। क्योंकि उसकी जरुरत ही नहीं है। बुद्ध ने सोचा और समझा की अगर तुम अंतराल के दो श्वास-के बीच केविराम की फिक्र करने लगे, तो उससे तुम्हारी सजगता खंडित होगी। इसलिए उन्होंने सिर्फ यह कहा कि होश रखो, 

जब श्वास भीतर आए तो तुम भी उसके साथ भीतर जाओ और जब श्वास बाहर आये तो तुम उसके साथ बाहर आओ। विधि

के दूसरे हिस्से के संबंध में बुद्ध कुछ नहीं कहते।

इसका कारण है। कारण यह है की बुद्ध बहुत साधारण लोग- से, सीधे-सादे लोग- से बोल रहे थे। वे उनसे अंतराल की बात करते तो उससे लोग- में अंतराल को पाने की एक अलग कामना निर्मित हो जाती। और यह अंतराल को पाने की कामना बोध में बाधा बन जाती । क्योंकि अगर तुम अंतराल को पाना चाहते हो तो तुम आगे बढ़ जाओगे श्वास भीतर आती रहेगी। और तुम उसकेआगे निकल जाओगे। क्योंकि तुम्हारी दृष्टि अंतराल पर है जो भविष्य में है। बुद्ध कभी इसकी चर्चा नहीं करते ।


"ओशो विज्ञान भैरव तंत्र"


You can know the breath going inside.  But you never know the gap between the two.

 Do the experiment and you will get to that point.

 She is.  Do not add anything to you or your structure.

 That is  Everything is there;  Not just realization.  How to use  Be fully conscious of the inner breath.  see her.

 Forget everything and watch the incoming breath, its travel path.  Feel it when the breath enters the nasal cavity.  Let the breath move and travel with it with full reflex.  Step down step by step with your breath;  Do not go forward nor fall back.  Do not leave her side by side.

 Remember, neither to go forward nor to follow behind like a shadow.  Walk parallel  Simultaneous.  Let breathing and reflexes unite.  If the breath goes down, then you too go down and only then you can find the point which is between two breaths.  It is not easy.  Go in with the breath come out with the breath.

 Buddha used this method exclusively, so it became Buddhist method.  In Buddhist terminology, it is called Anapanasati Yoga.

 It is said.  And Buddha's self-realization was based on this method.  All religions of the world, all the observers of the world

 Have reached the destination through some method.  And all those methods are included in one hundred and twelve methods.  This first method is the Buddhist method.  The world knows it as Buddhist method.  Because by this Buddha was attained to Nirvana.

 Buddha has said.  Be aware of your breath.  Go in, come out, become full of breath.  BuSSH does not discuss intervals.  Because there is no need for that.  Buddha thought and understood that if you start worrying about the intermittent breaks, then your awareness will be broken by that.  So they just said that be aware,

 When the breath comes in, you also go inside with it and when the breath comes out, you come out with it.  Method

 Buddha does not say anything about the other part of the world.

 It has a reason.  The reason is that Buddha was speaking to very ordinary people - to simple people.  If they talked about the gap with them, then a different wish would be created for people to get the gap.  And this desire to attain the gap would become an obstacle to realization.  Because if you want to find the gap, then you will move forward, the breath will come in.  And you will get ahead of him.  Because your vision is at intervals which is in the future.  Buddha never discusses it.


 "Osho Vigyan Bhairava Tantra"



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