Snehdeep Osho Vision

 तंत्र श्वास की व्यवस्था की चिंता नहीं करता। भीतर की और मुड़ने के लिए वह

श्वास क्रिया का उपयोग भर करता है। तंत्र में साधक को किसी विशेष ढंग की श्वास का अभ्यास नहीं करना चाहिए। कोई

विशेष प्राणायाम नहीं साधना है, प्राण को लयबद्ध नहीं बनाना है; बस उसके कुछ विशेष विंदुओं के प्रति बोधपूर्ण होना है ।

श्वास प्रश्वास के कुछ बिंदु है जिन्हें हम नहीं जानते। हम सदा श्वास लेते है। श्वास के साथ जन्मते है,श्वास के साथ मरते है। लेकिन उसके कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं का  बोध नहीं है। 

शिव उत्तर में कहते है—हे देवी, यह अनुभव दो श्वास - के बीच घटित हो सकता है। श्वास के भीतर आने के पश्चात और बाहर

लौटने के ठीक पूर्व—श्रेयस है, कल्याण है।

यह विधि है: हे देवी, यह अनुभव दो श्वास- के बीच घटित हो सकता है। जब श्वास भीतर अथवा नीचे को आती है उसके बाद

फिर श्वास के लौटने के ठीक पूर्व —श्रेयस है। इन दो बिंदुओं के बीच होश पूर्ण होने से घटना घटती है।

जब तुम्हारी श्वास भीतर आये तो उसका निरीक्षण करो। उसके फिर बाहर या ऊपर के लिए मुड़ने के पहले एक क्षण के लिए,

या क्षण के हजारवें भाग के लिए श्वास बंद हो जाती है। श्वास भीतर आती है, और वहां एक बिंदु है जहां वह ठहर जाती है।

फिर श्वास बाहर जाती है। और जब श्वास बाहर जाती है। तो वहां एक बिंदु पर ठहर जाती है। और फिर वह भीतर को लौटती है।

श्वास के भीतर या बाहर के लिए मुड़ने के पहले एक क्षण है जब तुम श्वास नहीं लेते हो। उसी क्षण में घटना घटनी संभव है। क्योंकि जब तुम श्वास नहीं लेते हो तो तुम संसार में नहीं होते हो। समझ लो कि जब तुम श्वास नहीं लेते हो तब तुम मतृ हो; तुम तो हो,लेकिन मृत। लेकिन यह क्षण इतना छोटा है कि तुम उसे कभी देख नहीं पाते।

तंत्र के लिए प्रत्येक बहिर्गामी श्वास मृत्यु है और प्रत्येक नई श्वास पुनर्जन्म भीतर आनेवाला श्वास पुनर्जन्म है; बाहर

जानेवाला श्वास मृत्यु है। बाहर जानेवाला श्वास मृत्यु का पर्याय है; अंदर जानेवाला श्वासस जीवन का। इसलिए प्रत्येक श्वास के साथ तुम मरते हो और प्रत्येक श्वास के साथ तुम जन्म लेते हो। दोनो- के बीच का अंतराल बहुत क्षणिक है, लेकिन पैनी दृष्टि , शुद्ध निरीक्षण और अवधान से उसेअनुभव किया जा सकता है। और यदि तुम उस अंतराल को अनुभव कर सको तो शिव कहते है कि श्रेयस उपलब्ध है। तब और किसी चीज को जरूरत नहीं है। तब तुम आप्तकाम हो गए। तुमने जान लिया घटना घट गई।

श्वास को प्रशिक्षित नहीं करना। वह जैसी है उसे वैसी ही बनी रहने देना। फिर इतनी सरल विधि क्यों ? सत्य को जानने की

ऐसी सरल विधि ? सत्य को जानना उसको जानना है। जिसका न जन्म है न मरण। तुम बाहर जाती श्वास को जान सकते

हो, तुम भीतर जाती श्वास को जान सकते हो। लेकिन तुम दोनो- के अंतराल को कभी नही ंजानते।

प्रयोग करो और तुम उस बिंदु को पा लोगे।


"ओशो विज्ञान भैरव तंत्र"


Tantra does not worry about the system of breathing.  To turn inward

 Breathing exercises are used.  In tantra, the seeker should not practice breathing in any particular way.  someone

 Special pranayam is not cultivation, it is not to make the life rhythmic;  Just be aware of some of its special points.

 There are some points of breathlessness that we do not know.  We always breathe.  Born with breath, dying with breath.  But some of its important points are not understood.

 Shiva says in reply - O Goddess, this experience can happen between two breaths.  In and out

 Just before returning-Shreyas is welfare.

 This method is: O Goddess, this experience can occur between two breaths.  When the breath comes in or down Then just before the breath is returned - Shreyas.  The event is reduced by conscious completion between these two points.

 When your breath comes in, observe it.  Then for a moment before it turns out or up,

 Or the breathing stops for the thousandth part of the moment.  The breath comes in, and there is a point where it stops.

 Then the breath goes out.  And when the breath goes out.  So it stops at one point there.  And then she returns to the inner.

 There is a moment when you do not breathe before you turn inward or outward.  It is possible to happen at that very moment.  Because when you don't breathe, you are not in the world.  Understand that when you do not breathe, you are a dog;  You are but dead.  But this moment is so short that you never see it.

 For the Tantra, each outward breath is death and each new breath is rebirth, the inner breath is rebirth;  outside Breathing is death.  Outgoing breath is synonymous with death;  Inner breath of life.  Therefore with each breath you die and with each breath you are born.  The gap between the two is very transient, but it can be experienced with sharp eyesight, pure observation and attention.  And if you can feel that gap then Shiva says Shreyas is available.  Then nothing else is needed.  Then you fell asleep.  You know the incident happened.

 Do not train breathing.  Let her be what she is.  Then why such a simple method?  To know the truth Such a simple method?  To know the truth is to know it.  Whose birth is neither death nor death.  You can know the breath that goes out You can know the breath going inside.  But you never know the gap between the two.

 Do the experiment and you will get to that point.


 "Osho Vigyan Bhairava Tantra"



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