Snehdeep Osho Vision

 प्रिय देवी, प्रेम किए जाने के क्षण में प्रेम  में ऐसे प्रवेश करो जैसे कि वह नित्य जीवन हो।

शिव प्रेम से शुरू करते है। पहली विधि प्रेम से संबंधित है। क्योंकि तुम्हारे शिथिल होने के अनुभव में प्रेम का अनुभव निकटतम है। अगर तुम प्रेम नहीं कर सकते हो तो तुम शिथिल भी नहीं हो सकते हो। और अगर तुम शिथिल हो सके तो तुम्हारा जीवन प्रेमपूर्ण हो जाएगा।

एक तनावग्रस्त आदमी प्रेम नहीं कर सकता। क्यों ?  क्योंकि तनावग्रस्त आदमी सदा उद्देश्य से प्रायोजन से जीता है। वह

धन कमा सकता है। लेकिन प्रेम नहीं कर सकता। क्योंकि प्रेम प्रायोजन रहित  है। प्रेम कोई वस्तु नहीं है। तुम उसे संग्रहित

नहीं कर सकते, तुम उसे बैंक खाते में नहीं डाल सकते। तुम उससे अपने अहंकार की पुष्टि नहीं कर सकते। सच तो यह है कि

प्रेम सब से अर्थहीन काम है;उससे आगे उसका कोई अर्थ नहीं है। उससे आगे उसका कोई प्रायोजन नहीं है। प्रेम अपने आप में

जीता है। किसी अन्य चीज के लिए नहीं ।

प्रेम सदा यहां है और अभी है। प्रेम का कोई भविष्य नहीं है। यही वजह है कि प्रेम ध्यान  के इतने करीब है। यही वजह है कि मृत्यु भी ध्यान के इतने करीब है। क्योंकि मृत्यु भी यहां और अभी है, वह भविष्य में नहीं घटती।

क्या तुम भविष्य में मर सकते हो? वर्तमान में ही मर सकते हो। कोई कभी भविष्य में नहीं मरा। भविष्य में कैसे मर सकते हो? या अतीत में कैसे मर सकतेहो। अतीत जा चुका वह अब नहीं है। इसलिए अतीत में नहीं मर सकते। और भविष्य अभी आया नहीं है। इसलिए उसमे कैसे मरोगे? 

मृत्यु सदा वर्तमान में होती है। मृत्यु प्रेम और ध्यान सब वर्तमान में घटित होते है। इसलिए अगर तुम मृत्यु से डरते हो तो

तुम प्रेम नहीं कर सकते। अगर तुम मृत्यु से भयभीत हो तो तुम ध्यान नहीं कर सकते। और अगर तुम ध्यान से डरे हो तो तुम्हारा जीवन व्यर्थ होगा। किसी प्रायोजन के अर्थ में जीवन व्यर्थ नहीं होगा। वह व्यर्थ इस अर्थ में होगा कि तुम्हें उसमें किसी आनंद की अनुभूति नहीं होगी। जीवन अर्थहीन होगा।

इन तीनों को प्रेम, ध्यान और मृत्यु को—एक साथ रखना अजीब मालूम पड़ेगा। वह अजीब है नहीं । वे समान अनुभव है।

इसलिए अगर तुम एक में प्रवेश कर गए तो शेष दो में भी प्रवेश पा जाओगे।

शिव प्रेम से शुरू करतेहै: प्रिय देवी,प्रेम किए जाने के क्षण में प्रेम में ऐसे प्रवेश करो जैसे कि वह नित्य जीवन है।‘’


"ओशो विज्ञान भैरव तंत्र"

Dear Goddess, enter love in the moment of love as if it is a regular life.

 Shiva starts with love.  The first method is related to love.  Because the experience of love is closest to your experience of being relaxed.  If you cannot love then you cannot be relaxed.  And if you can relax then your life will become loving.

 A stressed man cannot love.  Why?  Because a stressed man always lives purposefully with sponsorship.  He

 Can make money  But love cannot.  Because love is not sponsorship.  Love is not something  You stored it

 Can not, you cannot put it in a bank account.  You cannot confirm your ego with that.  The truth is

 Love is a meaningless work; it has no meaning beyond that.  He has no further sponsorship.  Love in itself

 Has won  Not for anything else.

 Love is always here and it is now.  Love has no future  This is the reason why love is so close to meditation.  This is why death is so close to meditation.  Because death is here and now, it does not happen in the future.

 Can you die in the future?  You can die in the present.  No one ever died in the future.  How can you die in future?  Or how to die in the past.  The past is gone, it is no longer there.  So we cannot die in the past.  And the future has not yet come.  So how will you die in it?

 Death always happens in the present.  Death, love and meditation all happen in the present.  So if you are afraid of death

 You can't love  If you are afraid of death then you cannot meditate.  And if you are afraid of meditation then your life will be in vain.  Life will not be wasted in the sense of sponsorship.  It will be meaningless in the sense that you will not feel any pleasure in it.  Life will be meaningless.

 It would seem strange to keep these three together — love, meditation and death.  He is not strange.  They have similar experiences.

 So if you enter one, then you will be able to enter the remaining two as well.

 Shiva starts with love: Dear Goddess, enter love as if it is a regular life at the moment of love. "


 "Osho Vigyan Bhairava Tantra"



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