Snehdeep Osho Vision

 मां और बच्चे के बीच जो प्रेम है, वह और प्रेम से सर्वथा भिन्न होता है। क्योंकि शुद्धतम प्राण दोनों को जोड़ता है। अब ऐसा फिर कभी नहीं होगा। उनके बीच एक सूक्ष्म प्राणमय संबंध था। मां बच्चे को प्राण देती थी। बच्चा श्वास

तक नहीं लेता था।

लेकिन जब वह जन्म लेता है, तब वह मां के गर्भ से उठाकर एक बिलकुल अनजानी दुनिया में फेक दिया जाता है। अब उसे

प्राण या ऊर्जा उस आसानी से उपलब्ध  नहीं होगी। उसे स्वयं ही श्वास लेनी होगी। उसकी पहली चीख चूसने का पहला प्रयत्न

है। उसके बाद वह मां के स्तन से दूध चूसता है। ये बुनियादी कृत्य है जो तुम करते हो। बाकी सब काम बाद में आते है। जीवन के वे बुनियादी कृत्य है, और प्रथम  कृत्य उसका अभ्यास भी किया जा सकता है।

यह सूत्र कहता है: ‘’या कुछ चुसो और चूसना बन जाओ।‘’

किसी भी चीज से तुम प्रयोग कर सकते हो, अगर तुम दौड़ रहे हो तो दौड़ना ही बन जाओ और दौड़ने वाले न रहो। दौड़ना बन

जाओ। दौड़ बन जाओ और दौड़ने वाले को भूल जाओ। अनुभव करो कि भीतर कोई दौड़ने वाला नहीं है। मात्र दौड़ने की

प्रक्रिया है। वह प्रक्रिया तुम हो—सरिता जैसी प्रक्रिया । भीतर कोई नहीं है। भीतर सब शांत है। और केवल यह प्रक्रिया है।

चूसना, चोषण अच्छा है। लेकिन तुमको यह कठिन मालूम पड़ेगा। क्योंकि हम इसे बिलकुल भूल गए है। यह कहना भी ठीक

नहीं है कि बिलकुल भूल गए है। क्योंकि उसका विकल्प तो निकालते ही रहते है। मां के स्तन की जगह सिगरेट ले लेती है।

और तुम उसे चूसते रहते हो। यह स्तन ही है, मां का स्तन मां का चूचुक। और गर्म धुआँ निकलता है, वह मां का दूध इस लिए छुटपन में जिनको मां के स्तन के पास उतना नहीं रहने दिया गया, जितना वे चाहते थे, वे पीछे चलकर धूम्रपान करने लगते है। यह बिलकुल भूल गए है, और विकल्प से भी काम चल जाएगा। इसलिए अगर तुम सिगरेट पीते हो तो धूम्रपान ही बन जाओ। सिगरेट को भूल जाओ, पीनेवाले को भूल जाओ और धूम्रपान ही बने रहो।

एक विषय है जिसे तुम चूसते हो, एक विषयी है जो चूसता है। और उनके बीच चूसने की चोषण की प्रक्रिया है। तुम चोषण

बन जाओ प्रक्रिया बन जाओ। इसे प्रयोग करो। पहले कई चीजों से प्रयोग करना होगा और तब तुम जानोगे कि तुम्हारे लिए

क्या चीज सही है।


"ओशो विज्ञान भैरव तंत्र"

The love between mother and child is completely different from love.  Because the purest soul combines the two.  Now this will never happen again.  There was a subtle vital relationship between them.  The mother used to die for the child.  Baby breathing

 Did not even take it.

 But when he is born, he is taken from the mother's womb and thrown into a completely unknown world.  Now him

 Prana or energy will not be available that easily.  He has to breathe on his own.  Her first attempt at sucking her first scream

 is.  He then wears milk from the mother's breast.  This is the basic act that you do.  Everything else comes later.  Those are the basic acts of life, and the first act can also be practiced.

 This sutra says: "Or suck something and become sucked."

 You can experiment with anything, if you are running then become running and do not run.  Run run

 go.  Become a race and forget the racer.  Feel that there is no one inside.  Just to run

 Process.  That process is you - a process like Sarita.  There is no one inside.  All is quiet inside.  And only this process.

 Suck, good suction.  But you will find it difficult.  Because we have completely forgotten it.  Ok to say

 Not that I have completely forgotten.  Because they keep on removing their option.  Cigarette is replaced by mother's breast.

 And you keep sucking it.  This is breast, mother's breast, mother's nipple.  And the hot smoke comes out, the mother's milk, so in the childhood, those who are not allowed to stay near the mother's breast as much as they wanted, they go back to smoking.  This is completely forgotten, and the alternative will also work.  So if you smoke cigarettes then become smoking.  Forget cigarette, forget the drinker and keep smoking.

 There is a matter which you suck, there is a matter which suck.  And between them is the process of sucking.  You suck

 Become become process.  Use it  You have to experiment with many things first and then you will know that for you

 What is right


 "Osho Vigyan Bhairava Tantra"



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