स्त्रैण-चित्त का लाओत्से से प्रयोजन है, छोड़ दो तुम और अस्तित्व को ही उत्तर देने दो । तुम अपने को बीच में मत लाओ। क्योंकि तुम जो भी लाओगे, उसके गलत होने की संभावना है। अस्तित्व जो देगा, वह गलत नहीं होगा।
लाओत्से जो कह रहा है, यह कितने ही दूरी पर कल्पना की जाए , तो भी सही रहेगा। इसमें भेद पड़ने वाला नहीं है। तो लाओत्से के पाने की पद्दति जरूर कुछ और रही होगी। क्योंकि हम तो जो भी पाते हैं, वह दूसरे ही दिन गलत हो जाता है। पुरुष के द्वारा जो भी खोज की जाती है, वह चूंकि तर्क-निर्भर है; वह साक्षात प्रतीति नहीं है, केवल मन का अनुमान है; इसलिए अनुमान तो कल बदलने पड़ेंगे, क्योंकि अनुमान सत्य नहीं होते। इसलिए विज्ञान कहता है कि हम जो भी कहते हैं, वह एप्रॉक्सीमेटली ट्रू, सत्य के करीब-करीब है; सत्य बिलकुल नहीं है।
अगर आप उपनिषद पढ़ें, तो बहुत और तरह की दुनियां है वहां। लाओत्से को पढ़ें,लाओत्से कोई तर्क नहीं देता। वह कहता है, दि वैली
स्परिट डाइज नॉट,एवर दि सेम। दिस इज़ मियर स्टेटमेंट, विदाउट एनी रीजनिंग । वह यह नहीं कह रहा है कि क्यों घाटी की आत्मा नहीं मरती है! वह कहता है, घाटी की आत्मा नहीं मरती है, वह हमेशा वैसी ही रहती है। यह तो सीधा व्यक्तव्य है। इसमें कोई तर्क नहीं है। उसको बताना चाहिए, क्यों नहीं मरती ? क्या कारण है? पक्ष में दलीलें दो, गवाह उपस्थित करो । लेकिन लाओत्से कहता है, गवाह केवल वे ही उपस्थित करते हैं, जिन्हें अनुभुति नहीं होती। गवाह की जरूरत नहीं है।
"ओशो ताओ उपनिषद"
The feminine mind has a purpose from Lao Tzu, leave it to you and existence to answer. Do not bring yourself in the middle. Because whatever you bring is likely to be wrong. What existence will give will not be wrong.
Whatever distance Lao Tzu is saying, it will be true even if imagined at a distance. There is no difference in this. So the method of getting Laotsse must have been something else. Because whatever we get, it goes wrong the very next day. Whatever discovery a man makes is since logic-dependent; It is not a real belief, only a guess of the mind; Therefore, the estimates will have to be changed tomorrow, because the estimates are not true. Therefore science says that everything we say is proximally true, very close to the truth; Not true at all.
If you read the Upanishads, there are many other types of worlds there. Read Lao Tzu, Lao Tzu makes no argument. He says, the valley Sperit die not, ever the same. This is my statement, without any reasoning. He is not saying why the soul of the valley does not die! He says, the soul of the valley does not die, it is always the same. This is a direct expression. There is no logic in this. He should be told, why not die? What is the reason? Please argue in favor, present the witness. But Laotsse says, witnesses are only those who are not experienced. No witness is needed.
"Osho Tao Upanishad"
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