जैसे ही पुरुष किसी स्त्री को प्रेम करता है, प्रेम बहुत जल्दी कामवासना की मांग शुरू कर देता है। स्त्री वषों प्रेम कर सकती है बिना कामवासना की मांग किए । सच तो यह है कि जब स्त्री बहुत गहरा प्रेम करती है, तो उस बीच पुरुष की कामवासना की मांग उसको धक्का ही देती है, शॉक ही पहुँचाती है। उसे
एकदम खयाल भी नहीं आता की इतने गहरे प्रेम में और कामवासना की मांग की जा सकती है!
मैं सैकड़ो स्त्रियों को, उनके निकट, उनकी आतंरिक परेशानियों से परिचित हूं। अब तक मैंने एक स्त्री ऐसी नहीं पाई, जिसकी परेशानी यह न हो कि पुरुष उससे निरंतर कामवासना की मांग किए चले जाते हैं। और हर स्त्री परेशान हो जाती है। क्योंकि जहां उसे प्रेम का आकर्षण होता है, वहां पुरुष को सिर्फ काम का आकर्षण होता है। और पूरुष की जैसे ही काम की तृप्ति हुई, पुरुष स्त्री को भूल जाता
है। और स्त्री को निरंतर यह अनुभव होता है कि उसका उपयोग किया गमा है–शी हैज बीन यूज्ड । प्रेम नहीं किया गया, उसका
उपयोग किया गमा है। पुरुष को कुछ उत्तेजना अपनी फेक देनी है। उसके लिए स्त्री का एक बर्तन की तरह उपयोग किया गया है। और उपयोग के बाद ही स्त्री व्यर्थ मालूम होती है। लेकिन स्त्री का प्रेम गहन है, वह पूरे शरीर से है, रोएं-रोएं से है। वह जेनिटल नहीं
है, वह टोटल है।
कोई भी चीज पूर्ण तभी होती है, जब वह बौद्धिक न हो। क्योंकि बुद्धि सिर्फ एक खंड है मनुष्य के व्यक्तित्व का, पूरा नहीं है वह।
इसलिए स्त्री असल में अपने बेटे को जिस भांति प्रेम कर पाती है, उस भांति प्रेम का अनुभव उसे पति के साथ कभी नहीं हो पाता।
पुराने ऋषियों ने तो एक बहुत हैरानी की बात कही है। उपनिषद के ऋषियों ने आशिर्वाद दिया है नवविवाहित वधुओं को और कहा है कि तुम अपने पति को इतना प्रेम करना, इतना प्रेम करना, कि अंत में दस तुम्हारे पुत्र हों और ग्यारहवाँ पुत्र तुम्हारा पति हो जाए ।
उपनिषद के ऋषि यह कहते हैं कि स्त्री का पूरा प्रेम उसी दिन होता है, जब वह अपने पति को भी अपने पुत्र की तरह अनुभव करने लगती है। असल में, स्त्री अपने पुत्र को पूरा प्रेम कर पाती है; उसमें कोई फिर बौद्धिकता नहीं होती। और अपने बेटे के पूरे शरीर को प्रेम कर पाती है; उसमें कोई चुनाव नहीं होता। और अपने बेटे से उसे कामवासना का कोई रूप नहीं दिखाई पड़ता, इसलिए प्रेम उसका परम शुद्ध हो पाता है। जब तक पति भी बेटे की तरह न दिखाई पड़ने लगे, तब तक स्त्री पूर्ण तृप्त नहीं हो पाती है।
लेकिन पुरुष की स्थितित उलटी है। अगर पत्नी उसे मां की तरह दिखाई पड़ने लगे, तो वह दूसरी पत्नी की तलाश पर निकल जाएगा। पुरुष मां नहीं चाहता, पत्नी चाहता है। और भी ठीक से समझें, तो पत्नी भी नहीं चाहता, प्रेयसी चाहता है। क्योंकि पत्नी भी स्थायी हो जाती है। प्रेयसी में एक अस्थायीत्व है और बदलने की सुविधा है। पत्नी में वह सुविधा भी खो जाती है।
स्त्री का चित्त समग्र है, इंटिग्रेटेड है। स्त्रियों का नहीं कह रहा हूं। जब भी मैं स्त्री शब्द का उपयोग कर रहा हूं, तो स्त्रैण अस्तित्व की
बात कर रहा हूं, लाओत्से जिसे स्त्रैण रहस्य कह रहा है। स्त्रियां ऐसी हैं, वे यह मै नहीं कह रहा हूं। स्त्रियां ऐसी हों, तो ही स्त्रियां हो
पाती हैं। पुरुष भी ऐसा हो जाए, तो जीवन की परम गहराइयों से उसके संबध स्थापित हो जाते हैं।
"ओशो ताओ उपनिषद"
As soon as a man loves a woman, love starts demanding sex very soon. Women can love years without asking for sex. The truth is that when a woman is deeply in love, then in the meantime, the man's demand for sex only shocks her, only she gives shock. Him
There is not even a thought that such deep love and sex can be demanded!
I am aware of hundreds of women, near them, their internal troubles. Till now I have not found a woman whose problem is not that men go away demanding sex from her. And every woman gets upset. Because where he has the attraction of love, the man has only the attraction of work. And as soon as the man is satisfied, the man forgets the woman
is. And the woman constantly feels that her use is gamma - she has been used. Not loved, his
Used is gamma. The man has to throw some excitement. For her, the woman has been used as a vessel. And only after use, the woman appears to be incapable. But the love of a woman is intense, she is with the whole body, weeping. Not that genetic
Is, he is a total.
Anything is complete only when it is not intellectual. Because intelligence is just a block of man's personality, he is not complete.
Therefore, the way a woman is really able to love her son, she can never experience love like that with her husband.
The old sages have said a lot of surprises. The sages of the Upanishads have blessed the newly married brides and have said that you love your husband so much, love you so much that in the end ten will be your sons and the eleventh son will become your husband.
The sages of the Upanishads state that the woman's whole love falls on the same day, when she begins to feel her husband like her son. In fact, the woman is able to love her son fully; There is no other intellectual in it. And loves her son's entire body; There is no election in that. And he does not see any form of sex with his son, so love becomes his absolute cleanse. Until the husband also looks like a son, the woman is not fully satisfied.
But the position of the man is inverted. If the wife looks like a mother to him, then he will go on a search for another wife. Man does not want mother, wife wants. If you understand more properly, even the wife does not want, the lover wants. Because the wife also becomes permanent. The beloved has a temporality and facility to change. The wife also loses that facility.
The mind of a woman is holistic, integrated. I am not saying about women. Whenever I am using the word feminine, feminine existence
I am talking about what Laotsay is calling a feminine secret. Women are like this, I am not saying this. If women are like this then only women are
Is found Even if a man does this, then his connections with the deepest depths of life are established.
"Osho Tao Upanishad"
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