लाओत्से कहता है, जितनी ज्यादा पूर्णता हो, उतनी स्थायी होती है। और जितनी ज्यादा अपूर्णता हो, उतनी अस्थायी होती है। इसलिए वह कहता है कि हम जीवन के परम रहस्य को स्त्रैण रहस्य का नाम देते हैं।
मन के संबंध में भी, जैसे शरीर के संबंध में स्त्री और पुरुष के बुनियादी भेद हैं, वैसे ही मन के संबंध में भी हैं। पुरुष के चिंतन का
ढंग तर्क है। इसे ठीक से समझ लेना जरूरी होगा, क्योंकि लाओत्से के सारे विचार का आधार इस पर है। पुरुष के सोेने का ढंग तर्क है, उसका मेथड तर्क है। स्त्री के सोेचने का ढंग तर्क नहीं है। उसके सोेचने का ढंग बहुत इलाजिकल है, बहुत अतार्किक है। उसे हम अंतदृष्टि कहें, इंटयूशन कहें, कोई और नाम दें, लेकिन स्त्री के सोेचने के ढंग को तर्क नहीं कहा जा सकता। तर्क की अपनी व्यवस्था है। इसलिए जहां भी पुरुष सोेेचेगा, वहां गणित, तर्क और नियम होगा। और जहां भी स्त्री सोेेचेगी, वहां न गणित होगा, न तर्क होगा;
सीधे निष्कर्ष होंगे, कनलूजंस होंगे। इसलिए स्त्री और पुरुष के बीच बातचीत नहीं हो पाती।
और सभी पुरुषों को यह अनुभव होता है कि स्त्री से फाबातचीत करनी मुश्किल है, क्योंकि वह इल्लाजिकल है। जब वह तर्क देता है, तब वह सीधे निष्कर्ष देती है। अभी वह तर्क भी नहीं दे पाया होता है और वह कनलूजंस पर पहुंच जाती है। स्त्री-पुरुष के बीच
कम्यूनिकेशन नहीं हो पाता, संवाद नहीं हो पाता। हर पति को यह खयाल है कि स्त्री से बात करनी बेकार है; क्योंकि आखरी निर्णय उसके ही हाथ में हो जाने को है। और वह कितने ही तर्क दे, इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता ; क्योंकि स्त्री तर्क सुनती ही नहीं। इसलिए कई बार पुरुष को बहुत परेशानी भी होती है की वह बात ठीक कह रहा है, तर्कयुक्त कह रहा है, फिर भी स्त्री उसकी सुनने को राजी नहीं है। उसे क्रोध भी आता है। लेकि स्त्री के सोेचने का ढंग ही तर्क नहीं है। इसमें स्त्री का कोई कसूर नहीं है।
दो तरह से सोेची जाती है; जगत में कोई भी बात दो ढंग से सोची जा सकती है। या तो हम एक- एक कदम विधिपूर्वक सोेेचें फिर विधि के माध्मम से निष्कर्ष को निकाले। और या हम कदम से छलांग लें और निष्कर्ष पर पहुंच जाएं ; कोई बीच की सीढियां न हों। अंतदृष्टि, इंटयूशन का ढंग सीधी छलांग लेने का है।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Laotse says, the more perfection, the more permanent it is. And the more imperfection, the more temporary it is. Therefore he says that we name the ultimate mystery of life as feminine mystery.
Even in relation to the mind, just as there are basic differences between man and woman in relation to the body, so are the relation of mind. Man's musings
Modus is logic. It will be necessary to understand it properly, because all of Laotse's ideas are based on this. Man's way of sleeping is logic, his method is logic. The way a woman thinks is not logic. His way of thinking is very clinical, very irrational. We can call it insight, call intuition, give some other name, but the way a woman thinks, it cannot be called logic. Logic has its own system. So wherever men think, there will be mathematics, logic and rules. And wherever a woman thinks, there will be neither mathematics nor logic;
There will be direct conclusions, convictions. Therefore, there is no interaction between man and woman. And all men feel that it is difficult to interact with a woman, because she is logical. When he argues, she gives straight conclusions. Right now, she has not even been able to argue and she reaches the confluence. Between men and women Communication could not be done, communication could not be done. Every husband thinks that it is useless to talk to a woman; Because the final decision has to be taken in his own hands. And no matter how much he argues, it does not matter much; Because a woman does not listen to logic. So many times a man also has a lot of trouble that he is saying the right thing, saying it rationally, yet the woman is not ready to listen to him. He also gets angry. But there is no logic to the way a woman thinks. There is no fault of a woman in this. There are two ways to think; Any thing in the world can be thought of in two ways. Either we think one step methodically then draw conclusions from the method. And or let us jump step by step and jump to conclusions; There should be no middle steps. Insight is the way to take a direct leap into intuition.
"Osho Tao Upanishad"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें