Snehdeep Osho Vision

 यहूदी परंपराओं ने जो मनुष्य के विकास की कथा लिखी है, वह लाओत्से के हिसाब से बिलकुल ही गलत है। यहूदी धारणा है

कि परमात्मा ने पुरुष को पहले बनाया और फिर पुरुष की ही हड्डी को निकाल कर स्त्री का निर्माण किया। लाओत्से इससे बिलकुल ही उलटा सोेचता है। लाओत्से मानता है, स्त्रैण अस्तित्व प्राथमिक है। पुरुष उससे जन्मता है और उसी में खो जाता है। और लाओत्से की बात में गहराई मालूम पड़ती है।

पहली बात, स्त्री बिना पुरुष के संभव है। उसकी बेचैनी पुरुष के लिए इतनी प्रगाढ़ नहीं है। इसलिए कोई स्त्री चाहे तो जीवन भर

कुंवारी रह सकती है; कुंवारापन भारी नहीं पड़ेगा । लेकिन पुरुष को कुंवारा रखना करीब-करीब असंभव जैसा है। और पुरुष को कुंवारा रखना बहुत आयोजना से हो सकता है। सरल बात नहीं है, सुगम बात नहीं है।

इधर मैं देख कर हैरान हुआ हूं। साधु मुझे मिलते हैं, तो साधुओं की आतंरिक परेशानी कामवासना है; लेकिन साध्वियां मुझे मिलती हैं, तो उनकी आंतरिक परेशानी कामवासना नहीं है। सैकडों साध्वियों  से मिलकर मुझे हैरानी का खयाल हुआ कि जो स्त्रियां साधना के जगत में प्रवेश करती हैं, उनकी परेशानी कामवासना नहीं है; लेकिन जो पुरुष साधना के जगत में प्रवेश करते हैं, उनकी परेशानी 

कामवासना है। असल में, पुरुष की कामवासना इतनी सक्रिय, इतनी क्षणिक है कि प्रतिपल उसे पीडित करती है और परेशान करती है। 

स्त्री की कामवासना इतनी क्षणिक नहीं है, बहुत थिर और बहुत स्थायी है।

पुरुष, किसी गहरे अर्थ में, स्त्री के आस-पास ही घूमता रहता है। चाहे वह कितने ही प्रयास करे यह दिखलाने के कि स्त्री उसके आस-पास घूम रही है, पुरुष ही स्त्री के आस-पास घूमता रहता है। वह चाहे बचपन में अपनी मां के पास भटक रहा हो और

चाहे युवा अवस्था में अपनी पत्नी के आस-पास भटक रहा हो; उसका भटकना स्त्री के आस-पास है। स्त्री के बिना पुरुष एकदम अधूरा है।

स्त्री में एक तरह की पूर्णता है। यह मैं उदाहरण के लिए कह रहा हूं, ताकि स्त्रैण अस्तित्व को समझा जा सके। स्त्रैण अस्तित्व बहुत पूर्ण है, सुडौल है। वर्तुल पूरा  है।

लाओत्से कहता है, जितनी ज्यादा पूर्णता हो, उतनी स्थायी होती है। और जितनी ज्यादा अपूर्णता हो, उतनी अस्थायी होती है। इसलिए वह कहता है कि हम जीवन के परम रहस्य को स्त्रैण रहस्य का नाम देते हैं।

"ओशो ताओ उपनिषद"


According to Laotse, the Jewish traditions that have written the story of man's development are completely wrong.  Jewish belief

 That God created the man first and then made the woman out of the man's bone.  Laotse thinks exactly the opposite.  Lao Tzu believes that feminine existence is primary.  A man is born to her and gets lost in her.  And there seems to be depth in Lao Tzu's talk.

 First, a woman is possible without a man.  His restlessness is not so intense for the man.  That's why a woman wants a lifetime

 Can remain a virgin;  The virginity will not be heavy.  But to keep a man single is almost impossible.  And it can be very planning to keep a man single.  It is not easy, it is not easy.

 I am surprised to see here.  If the monks meet me, then the internal trouble of the sadhus is sex;  But I find sadhus, so their internal problem is not sex.  Meeting hundreds of sages, I was surprised that women who enter the world of cultivation, their problems are not sexual;  But the problems of men who enter the world of cultivation

 Is sex.  In fact, a man's sexuality is so active, so transient, that the victim suffers and harasses him.

 The sex of a woman is not so momentary, very fixed and very permanent.

 The man, in some deep sense, moves around the woman.  No matter how much he tries to show that the woman is moving around him, the man keeps walking around the woman.  Whether he was wandering near his mother in childhood and

 Whether wandering around his wife at a young age;  His wandering is around the woman.  A man is completely incomplete without a woman.

 There is a kind of perfection in a woman.  I am saying this for example, so that feminine existence can be understood.  Feminine existence is very complete, shapely.  The circle is complete.

 Laotse says, the more perfection, the more permanent it is.  And the more imperfection, the more temporary it is.  Therefore he says that we name the ultimate mystery of life as feminine mystery.

 "Osho Tao Upanishad"



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