Snehdeep Osho Vision

 स्त्री अगर पुरुष को प्रेम भी करती है, अगर स्त्री पुरुष के कंधे पर भी हाथ रखती है, तो वह ऐसे रखती है कि कंधा छू न जाए । और

वही स्त्री का राज है। और जितना उसका हाथ कम छूता हुआ छूता है, उतना प्रेमपूर्ण हो जाता है। और जब स्त्री भी पुरुष के कंधे को

दबाती है, तो वह खबर दे रही है कि उस स्त्रैण जगत से वह हट गई है और पुरुष की नकल कर रही है। वह सिर्फ अपने को छोड़

देती है, जस्ट फ्लोटिंग, पुरुष के प्रेम में छोड़ देती है। वह सिर्फ राजी होती है, कुछ करती नहीं। वह पुरुष को छूती भी नहीं इतने जोर

से कि स्पर्श भी अभद्र न हो जाए !

लेकिन अभी पश्चिम में उपद्रव है। अभी पश्चिम की बुद्धिमान स्त्रियां–ं उन्हें अगर बुद्धिमान कहा जा सके तो–वे यह कह रही 

हैं की स्त्रियों को ठीक पुरुष जैसा एग्रेसिव होना चाहिए। ठीक पुरुष जैसा प्रेम करता है,स्त्रियों को करना चाहिए। उतना ही आक्रामक।

निश्चित ही, उतना आक्रामक होकर वे पुरुष जैसी हो जाएंगी। लेकिन उस फेमिनीन मिस्ट्री को खो देंगी, लाओत्से जिसकी बात करता 

है। और लाओत्से ज्यादा बुद्धिमान है। और लाओत्से की बुद्धिमत्ता बहुत परमबुद्धिमत्ता है। वह जहां विजडम के भी पार एक विजडम शुरू होती है, जहां सब बुद्धिमानी चुक जाती है और प्रज्ञा का जन्म होता है, वहां की बात है। पर यह पुरुष-स्त्री दोनों के लिए लागू है, अंत में इतना आपको कह दूँ ,यह मत सोेचना,स्त्रियां प्रसन्न होकर न जाएं,क्योंकि उनमें बहुत कम स्त्रियां हैं। स्त्री होना बड़ा कठिन है। स्त्री होना परम् अनुभव है। पुरुष परेशान होकर न जाएं, क्योंकि उनमें और स्त्रियों में बहुत भेद नहीं है। दोनों को यात्रा करनी है। समझ लें इतना कि हम सत्य को जानने में उतने ही समर्थ  हो जाएंगे, जितने अनाक्रमक, नॉन- एग्रेसिव, जितने प्रतीऺक्षारत, अवेटिंग, जितने निष्क्रिय, पैसिव, घाटी की आत्मा जैसे! शिखर की तरह अहंकार से भरे हुए पहाड़ की अस्मिता नहीं; घाटी की तरह विनम्र, घाटी की तरह गर्भ जैसे, मौन, चुप, प्रतीऺक्षा में रत!

तो उस पैसेटिव में, उस परम निष्क्रियता में अखंड अविच्छिन्न शक्ति का वास है। वहीं से जन्मता है सब, और वहीं सब लीन

हो जाता है।


"ओशो ताओ उपनिषद"


If the woman also loves the man, if the woman also puts her hand on the man's shoulder, she keeps it so that the shoulder is not touched.  And

 That is the rule of women.  And the more her hand touches the less it touches, the more loving it becomes.  And when the woman also shoulders the male

 If she presses, she is reporting that she has moved away from that feminine world and is copying the man.  He just left himself

 Gives, just floating, leaves man in love.  She just agrees, doesn't do anything.  She does not even touch a man so loudly

 That even the touch does not become vulgar!

 But right now there is a nuisance in the West.  Now the wise women of the West - if they can be called intelligent - they are saying

 Are that women should be as aggressive as men.  Just as a man loves, women should do it.  Equally aggressive.

 Surely, she will become like a man by being aggressive.  But you will lose the feminine mystery that Lao Tzu talks about

 is.  And Lao Tzu is more intelligent.  And Lao Tzu's intelligence is very much enlightened.  That is where there is a wizdam even beyond wisdom, where all the wisdom is lost and Pragya is born.  But this is applicable to both men and women, in the end let me say to you, do not think this, women should not be happy because they have very few women.  Being a woman is very difficult.  Being a woman is a real experience.  Men should not be disturbed, because there is not much difference between them and women.  Both have to travel.  Understand that we will be able to know the truth as much as non-aggressive, non-aggressive, as much as waiting, awaiting, as passive, passive, like the soul of the valley!  Not like the pinnacle of ego-filled mountain;  Humble like a valley, like a womb like a valley, silent, silent, waiting in wait!

 So in that passive, in that ultimate inaction is the abode of unbroken power.  Everyone is born from there, and everyone is absorbed there it happens.


 "Osho Tao Upanishad"



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