Snehdeep Osho Vision

 ध्यान रहे, जब मैं स्त्रैण रहस्य कह रहा हूं, तो कोई ऐसा न समझे कि मेरा मतलब स्त्री से ही है। स्त्री भी, हो सकती है, स्त्रैण रहस्य

में प्रवेश न करे; और पुरुष भी प्रवेश कर सकता है। स्त्रैण रहस्य तो जीवन का एक सूत्र है।

लाओत्से इसलिए कहता है कि दि फीमेल मिस्ट्री दस डू नेम। हम इस तरह नाम देते हैं। नाम देने का कारण है। ‍क्योंकि यह नाम

अर्थपूर्ण मालूम पड़ता है। हम उस रहस्य को पुरुष जैसा नाम नहीं दे सकते; क्योंकि वह रहस्य परम शांत है। वह इतना शांत है कि उसकी उपस्थिति की भी खबर नहीं मिलती। ‍क्योंकि उपस्थिति की भी खबर तभी मिलती है, जब कोई खबर दे।

इसलिए सच्ची प्रेयसी वह नहीं है जो अपने प्रेमी को अपने होने की खबर चौबीस घंटे करवाती रहती है। करवाते रहते हैं लोग। अगर पति घर आया है, तो पत्नी हजार उपाय करती है। बर्तन जोर से छूटने लगते हैं हाथ से। खबर कराती है कि मैं हूं, इसे स्मरण 

रखना; मैं यहीं आस-पास हूं। पति भी पूरे उपाय करता है कि तुम नहीं हो। अखबार फैला कर, जिसे वह दस बार पढ़ चुका है, फिर पढ़ने लगता है। वह अखबार दीवार है, जिसके पार बजाओ कितने ही बर्तन, कितनी ही करो आवाज, बच्चों को पीटो, शोरगुल मचाओ,रेडियों जोर से बजाओ, नहीं सुनेंगे। ह अखबार पढ़ते हैं! लेकिन प्रेयसी सच में वही है, जिस स्त्री को स्त्रैण रहस्य का पता चल गया। वह अपने प्रेमी के पास अपनी उपस्थिति को पता भी नहीं चलने देगी। एक बहुत अद्भूत घटना मैं आपसे कहता हूं। वाचस्पति मिश्र का विवाह हुआ। पिता ने आग्रह किया,वाचस्पति की कुछ समझ में न आया; इसलिए उन्होंने हां भर दी। सोेचा, पिता जो कहते होंगे, ठीक ही कहते होंगे। वाचस्पति लगा था परमात्मा की खोज में। उसे कुछ और समझ में ही न आता था। कोई कुछ भी बोले, वह परमात्मा की ही बात समझता था। पिता ने वाचस्पति को पूछा, विवाह करोगे? उसने कहा, हां।

उसने शायद सुना होगा, परमात्मा से मिलोगे ? जैसा कि हम सब के साथ होता है। जो धन की खोज में लगा है, उससे कहो, धर्म खोजोगे? वह समझता है, शायद कह रहे हैं, धन खोजोगे? उसने कहा, हां। हमारी जो भीतर खोज होती है, वही हम सुन पाते हैं।

वाचस्पति ने शायद सुना; हां भर दी।

फिर जब घोड़े पर बैठा कर ले जाया जाने लगा, तब उसने पूछा, कहां ले जा रहे हैं? उसके पिता ने कहा, पागल, तूने हां भरा था। विवाह करने चल रहे हैं। तो फिर उसने न करना उचित न समझा; ‍क्योंकि जब हां भर दी थी और बिना जाने भर दी थी, तो परमात्मा की मर्जी होगी।

वह विवाह करके लौट आया। लेकिन पत्नी घर में आ गई, और वाचस्पति को खयाल ही न रहा। रहता भी क्या ! न उसने विवाह किया

था, न हां भरी थी। वह अपने काम में ही लगा रहा। वह ब्रम्हसूत्र पर एक टीका लिखता था। वह बारह वर्ष में टीका पूरी हुई। बारह वर्ष तक उसकी पत्नी रोज सांझ दीया जला जाती, रोज सुबह उसके पैरों के पास फूल रख जाती, दोपहर उसकी थाली सरका देती। जब वह भोजन कर लेता, तो चुपचाप पीछे से थाली हटा ले जाती। बारह वर्ष तक उसकी पत्नी का वाचस्पति को पता नहीं चला कि वह है। पत्नी ने कोई उपाय नहीं किया कि पता चल जाए ;बल्कि सब उपाय किए कि कहीं भूलचूक से पता न चल जाए , ‍क्योंकि उनके काम में बाधा न पड़े ।

बारह वर्ष जिस पूर्णिमा की रात वाचस्पति का काम आधी रात पूरा हुआ और वाचस्पति उठने लगे, तो उनकी पत्नी ने दीया उठाया–उनको राह दिखाने के लिए उनके बिस्तर तक। पहली दफा बारह वर्ष में, कथा कहती है,वाचस्पति ने अपनी पत्नी का हाथ देखा। 

‍क्योंकि बारह वर्ष में पहली दफा काम समाप्त हुआ था। अब मन बंधा नहीं था किसी काम से। हाथ देखा,चूड़ियां देखीं, चूड़ियों की आवाज सुनी। लौट कर पीछे देखा और कहा, स्त्री, इस आधी रात अकेले में तू कौन है ? कहां से आई ? द्वार मकान के बंद हैं, कहां 

पहुंचना है तुझे, मैं पहुंचा दूँ !

उसकी पत्नी ने कहा, आप शायद भूल गए होंगे, बहुत काम था। बारह वर्ष आप काम में थे। याद आपको रहे, संभव भी नहीं है। बारह वर्ष पहले, खयाल अगर आपको आता हो, तो आप मुझे पत्नी की तरह घर ले आए थे। तब से मैं यहीं हूं।

वाचस्पति रोने लगा। उसने कहा, यह तो बहुत देर हो गई। ‍क्योंकि मैंने तो प्रतिज्ञा कर रखी है कि जिस दिन यह ग्रंथ पूरा हो जाएगा, 

उसी दिन घर का त्याग कर दूँगा। तो यह तो मेरे जाने का वक्त हो गया । भोर होने के करीब है; तो मैं जा रहा हूं। पागल, तूने पहले

‍क्यों न कहा ? थोड़ा भी तू इशारा कर सकती थी। लेकिन अब बहुत देर हो गई।

वाचस्पति की आखों में आंसू देख कर पत्नी ने उसके चरणों में सिर रखा और उसने कहा, जो भी मुझे मिल सकता था, वह इन आंसूओं में मिल गया । अब मुझे कुछ और चाहिए भी नहीं है। आप निश्चिंत जाएं। और मैं क्या पा सकती थी इससे ज्यादा कि वाचस्पति की आखं में मेरे लिए आंसू हैं ! बस, बहुत मुझे मिल गया है।

वाचस्पति ने अपने ब्रम्हसूत्र की टीका का नाम  भामति रखा है। भामति का कोई संबंध टीका से नहीं है। ब्रम्हसूत्र से कोई लेना-देना नहीं है। यह उसकी पत्नी का नाम है। यह कह कर कि अब मैं कुछ और तेरे लिए नहीं कर सकता, लेकिन मुझे चाहे लोग भूल जाएं , तूझे न भूलें, इसलिए भामति नाम देता हूं अपने ग्रंथ को। वाचस्पति को बहुत लोग भूल गए हैं ; भामति को भूलना मुश्किल है। भामति लोग पढ़ते हैं। अद्भुत टीका है ब्रम्हसूत्र की। वैसी दूसरी टीका नहीं है। उस पर नाम भामति है।

फेमिनिन मिस्ट्री इस स्त्री के पास होगी। और मैं मानता हूं कि उस क्षण में इसने वाचस्पति को जितना पा लिया होगा, उतना हजार 

वर्ष भी चेष्टा करके कोई स्त्री किसी पुरुष को नहीं पा सकती। उस क्षण में, उस क्षण में वाचस्पति जिस भांति एक हो गया होगा इस 

स्त्री के हृदय से, वैसा कोई पुरुष को कोई स्त्री कभी नहीं पा सकती। ‍क्योंकि फेमिनीन मिस्ट्री, वह जो रहस्य है, वह अनुपस्थित होने का है। छुआ ‍क्या प्राण को वाचस्पति के ? कि बारह वर्ष ! और उस स्त्री ने पता भी न चलने दिया कि मैं यहीं हूं। और वह रोज दीया उठाती रही और भोजन कराती रही। और वाचस्पति ने कहा, तो रोज जो थाली खींच लेता था, वह तू ही है? और रोज सुबह जो फूल रख जाता था, वह कौन है? और जिसने रोज दीया जलाया, वह तू ही थी ? पर तेरा हाथ मुझे दिखाई नहीं पड़ा !

भामति ने कहा, मेरा हाथ दिखाई पड़ जाता, तो मेरे प्रेम में कमी साबित होती। मैं प्रतीऺक्षा कर सकती हूं।

तो जरूरी नहीं कि कोई स्त्री स्त्रैण रहस्य को उपलब्ध ही हो। यह तो लाओत्से ने नाम दिया, क्योंकि यह नाम सूचक है और समझा

सकता है। पुरुष भी हो सकता है। असल में, अस्तित्व के साथ तादात्म्य उन्हीं का होता है, जो इस भांति प्रार्थनापूर्ण  प्रतीऺक्षा को

उपलब्ध होते हैं।

―इस स्त्रैण रहस्ममयी का द्वार स्वर्ग और पृथ्वी का मूल स्रोत है। चाहे पदार्थ का हो जन्म और  चाहे चेतना का, और चाहे पृथ्वी जन्में और चाहे स्वर्ग, इस अस्तित्व की गहराई में जो रहस्य छिपा हुआ है, उससे ही सबका जन्म होता है। इसलिए मैंने कहा, जिन्होंने परमात्मा को मदर, मां की तरह देखा, दुर्गा या अंम्बा की तरह देखा, उनकी समझ परमात्मा को पिता की तरह देखने से ज्यादा गहरी है। अगर परमात्मा कहीं भी है, तो वह स्त्रैण होगा। ‍क्योंकि इतने बड़े जगत को जन्म देने की क्षमता पुरुष में नहीं है। इतने विराट चाँद-तारे जिससे पैदा होते हों, उसके पास गर्भ चाहिए । बिना गर्भ के यह संभव नहीं है।

"ओशो ताओ उपनिषद"


Keep in mind, when I am telling feminine secrets, no one should think that I mean women only.  A woman can also be a feminine mystery

 Do not enter  And a male can also enter.  Feminine mystery is a source of life.

 Lao Tzu therefore says that the female mystery ten do name.  We name it like this.  There is reason to name.  Because this name

 Looks meaningful.  We cannot name that mystery like a man;  Because that secret is the ultimate calm.  He is so calm that even his presence is not reported.  Because the presence is also reported only when someone gives the news.

 Therefore, a true beloved is not the one who keeps her lover informed of her existence round the clock.  People keep getting it done.  If the husband has come home, the wife takes a thousand remedies.  The dishes start to get louder by hand.  It makes me remember that I am news

 to keep;  I am around here.  The husband also takes complete measures that you are not.  After spreading the newspaper, which he has read ten times, then starts reading.  That newspaper is the wall, beyond which, play any number of utensils, no matter how many voices, beat the children, make noise, make the radio loud, will not listen.  He read the newspaper!  But the beloved is really the same, the woman who came to know about the feminine secret.  She will not even let her lover know her presence.  A very wonderful incident I tell you.  Vachaspati Mishra was married.  The father urged, did not understand anything of Vachaspati;  So he filled in yes.  Soecha, whatever the father would have said, he would have said it right.  Vachaspati was in search of God.  He could not understand anything else.  Whenever someone said anything, he understood the same thing as the divine.  Father asked Vachaspati, will you marry?  He said, yes.

 He may have heard, will you meet the divine?  As happens with all of us.  Tell the one who is searching for wealth, will you seek religion?  He understands, perhaps saying, will find wealth?  He said, yes.  Whatever we search within, we are able to hear.

 Vachaspati probably listened;  Yes, filled it.

 Then when he was taken to the horse, he asked, where are you going?  His father said, crazy, you were full.  Marriage is going on  Then he did not think it appropriate not to do it;  Because when yes was filled and filled without knowing, it would be God's will.

 He returned after getting married.  But the wife came into the house, and Vachaspati could not care.  What remains  Neither did he get married

 Was not yes.  He continued in his work.  He used to write a commentary on Brahmasutra.  The vaccine was completed in twelve years.  For twelve years, his wife would burn the evening lamp, put flowers near her feet every morning, and would light her plate in the afternoon.  When he had food, he would quietly remove the plate from behind.  For twelve years his wife did not know that he was.  The wife did not take any measures to find out; rather, she took all measures so that she does not find out by mistake, because their work is not interrupted.

 Twelve years, on the full moon night, when the work of Vachaspati was completed at midnight and the Vachaspati began to rise, his wife took the lamp - to her bed to show them the way.  For the first time in twelve years, the legend says, Vachaspati saw his wife's hand.

 Because the work was finished for the first time in twelve years.  Now the mind was not tied to anything.  Looked at hands, saw bangles, heard bangles.  Returned and looked back and said, woman, who are you in this midnight alone?  Where did you come from?  The gates are closed, where

 You have to reach me, I will deliver!

 His wife said, you might have forgotten, there was a lot of work.  Twelve years you were in work.  Remember you, it is not possible.  Twelve years ago, if you thought, you brought me home like a wife.  I am here since then.

 Vachaspati started crying.  He said, it was too late.  Because I have pledged that the day this book will be completed,

 Will abandon the house on the same day.  Then it was time for me to leave.  Is close to dawn;  So I am leaving.  Crazy first you

 Why not say that?  Even a little you could point.  But now it is too late.

 Seeing the tears in the eyes of Vachaspati, the wife laid her head at his feet and she said, whatever I could find, he got into these tears.  Now I don't even need anything else.  You can be relaxed.  And more than I could have found that the tears of Vachaspati have tears for me!  That's all I've got.

 Vachaspati named his Brahmasutra commentary as Bhamati.  Bhamati has nothing to do with vaccine.  It has nothing to do with Brahmasutra.  This is his wife's name.  By saying that now I cannot do anything else for you, but if people forget me, do not forget you, that is why I give my name as Bhamati.  Many people have forgotten Vachaspati;  Bhamati is hard to forget.  People study.  Brahmasutra is a wonderful commentary.  There is no other vaccine.  The name is Bhamati on it.

 This woman will have a feminine mystery.  And I believe that in that moment it would have got as many thousand as possible

 Even after trying for a year, a woman cannot find a man.  At that moment, in that moment, the way that Vachaspati would have become one

 From a woman's heart, no man can ever find a woman like that.  Because the Feminine Mystery, that mystery, is that of being absent.  Touched the soul of Vachaspati?  That twelve years!  And that woman did not even know that I am here.  And she kept picking diya daily and providing food.  And Vachaspati said, you are the one who used to pull the plate everyday?  And who used to keep flowers every morning?  And who was the one who lit the lamp every day?  But I could not see your hand!

 Bhamati said, Had my hand been visible, my love would have proved to be lacking.  I can wait

 So it is not necessary that any woman is available to the feminine secret.  Laotse named it because the name is indicative and understood

 Can.  Can also be male.  Actually, identification with existence belongs to them, who like this prayerful waiting

 Are available.

 The door of this feminine Rahsmayi is the original source of heaven and earth.  Whether it is born of matter and whether it is born of consciousness and whether it is born of earth and whether it is heaven or not, the secret that is hidden in the depths of this existence is born of all.  So I said, those who saw God as Mother, Mother, Durga or Anamba, their understanding is deeper than seeing God as Father.  If God is anywhere, it will be feminine.  Because man does not have the ability to give birth to such a large world.  With such huge moon and stars that are born, she needs a womb.  This is not possible without pregnancy.

 "Osho Tao Upanishad"



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