Snehdeep Osho Vision

 बहुत सी बातें खयाल में लेने जैसी हैं। जब पुरुष पैदा होता है, जब एक बच्चा पैदा होता है, लड़का पैदा होता है, तो उसके पास अभी से‍क्स हारमोन होते नहीं, बाद में पैदा होने शुरू होते हैं। उसका वीर्य बाद में निर्मित होना शुरू होता है। लेकिन यह जान कर आप हैरान होंगे कि जब लड़की पैदा होती है, तो वह अपने सब अंडे साथ लेकर पैदा होती है। उसके जीवन भर में जितने अंडे प्रति माह उसके मासिक धर्म में निकलेंगे, उतने अंडे वह लेकर ही पैदा होती है। स्त्री पूरी पैदा होती है। उसके पास पूरा कोश होता है उसके एग्स का। फिर उनमें से एक- एक अंडा समय पर बाहर आने लगेगा। लेकिन वह सब अंडे लेकर आती है। पुरुष अधूरा पैदा होता है। और अधूरे पैदा होने की वजह से लड़के बेचैन होते हैं और लडकियां शांत होती हैं। एक अनइजीनेस लड़के में जन्म से होती है। लड़की में एक एटईजनेस जन्म से होती है। लड़की के शरीर का, उसके ‍व्यक्तित्व का जो सौंदर्य है, वह उसकी शांति से बहुत ज्यादा संबंधित है। अगर लड़की को बेचैन करना हो, तो उपाय करने पड़ते हैं। और लड़के को अगर शांत करना हो, तो उपाय करने पड़ते हैं; अशांत होना स्वाभाविक है। बायोलाजिस्ट कहते हैं कि उसका कायण है कि स्त्री जिस अंडे से बनती है, उसमें जो अणु होते हैं, वह एक्स‍-एक्स ‍होते हैं। दोनों एक से

होते हैं। और पुरुष जिस क्रोमोसोम से बनता है, उसमें ‍एक्स-वाई होता है; उसमें एक ‍एक्स होता है, एक वाई होता है; वे समान नहीं होते। स्त्री में जो तत्व होते हैं, वे एक्स-एक्स होते हैं, दोनों समान होते हैं। इसलिए स्त्री सुडौल होती है, पुरुष सुडौल नहीं हो पाता। स्त्री के शरीर में जो कर्व्स का सौंदर्य है, वह उसके ‍एक्स- ‍एक्स दोनों संतुलित अंडो के कायण है। और पुरुष के शरीर में वैसा संतुलन नहीं हो सकता, क्योंकि ‍एक्स-वाई, उसके एक और दूसरे में समानता नहीं है। स्त्री के ‍व्यक्तित्व को बनाने वाले अड़तालीस अणु हैं; वे पूरे हैं चौबीस-चौबीस। पुरुष को बनाने वाले सैंतालीस हैं। और बायोलाजिस्ट कहते हैं कि वह जो एक अणु की कमी है, वही पुरुष को जीवन भर दौड़ाती है–इस दुकान से उस दुकान, जमीन से चाँद–दौड़ाती रहती है। वह जो एक कम है, उसकी खोज है। वह पूरा होना चाहता है। यह जो स्त्री का संतुलित, शांत, प्रतीऺक्षारत ‍व्यक्तित्व है, लाओत्से कहता है, यह जीवन का बड़ा गहरा रहस्य है। परमात्मा स्त्री के ढंग से अस्तित्व में है; पुरुष के ढंग से नहीं। इसलिए परमात्मा को हम देख नहीं पाते हैं। उसे हम पकड़ नहीं पाते हैं। वह मौजूद है जरूर; लेकिन उसकी प्रेजेंस स्त्रैण है, न होने जैसा है। उसे हम पकड़ने जाएंगे , उतना ही वह हमसे छूट जाएगा, उतना ही हट जाएगा। उतनी ही उसकी खोज मुश्किल हो जाएगी।

अस्तित्व स्त्रैण है। इसका अर्थ यह है कि अस्तित्व में जो भी प्रकट होता है, अस्तित्व में पहले से छिपा है–एक। जैसा मैंने कहा,स्त्री में जो भी पैदा होगा, वह सब पहले से ही छिपना है। वह अपने जन्म के साथ लेकर आती है सब। उसमें कुछ नया एडीशन नहीं होता।

वह पूरी पैदा होती है। उसमें ग्रोथ होती है,लेकिन एडीशन नहीं होता। उसमें विकास होता है, लेकिन कुछ नई चीज जुड़ती नहीं। यही वजह है कि वह बड़ी तृप्त जीती है। स्त्रियों की तृप्ति आश्चर्यजनक है। अन्यथा इतने दिन तक उनको गुलाम नहीं रखा जा सकता था। उनकी तृप्ति आश्चर्यजनक है; गुलामी में भी वे राजी हो जाती हैं। कैसी भी स्थिति हो, वे राजी हो जाती हैं। अतृप्ति उनमें बड़ी मुश्किल से पैदा की जा सकती है; बड़ी कठिन है। और तभी पैदा की जा सकती है, जब कुछ बायोलॉजिकल कठिनाई उनके भीतर पैदा हो जाए । जैसा पश्चिम में लग रहा है कि कठिनाई पैदा हुई है। तो उनमें पैदा की जा सकती है बेचैनी।

और जिस दिन स्त्री बेचैन होती है, उस दिन उसको चैन में लाना फिर बहुत मुश्किल है। ‍क्योंकि वह बिलकुल अप्राकृतिक है उसका

बेचैन होना। इसलिए स्त्री बेचैन नहीं होती, सीधी पागल होती है। यह आप जान कर हैरान होंगे कि स्त्री या तो शांत होती है या पागल हो जाती है; बीच में नहीं ठहरती,ग्रेडेशेंस नहीं हैं। पुरुष न तो शांत होता है इतना, न इतना पागल होता है; बीच में काफी डिग्रीज हैं उसके पास। अशांत की डिग्रीज में वह डोलता रहता है। बड़ी से बड़ी अशांति में भी वह पागल नहीं हो जाता; और  बड़ी से बड़ी शांति में भी वह बिलकुल शांत नहीं हो जाता।

नीत्शे ने बहुत विचार की बात कही है। उसने कहा है कि जहां तक मैं समझता हूं, बुद्ध जैसे ‍व्यक्ति में स्त्रैण तत्व ज्यादा रहे होंगे।

बुद्ध को वूमेनिश कहा है नीत्शे ने। और मैं मानता हूं कि इसमें एक गहरी समझ है। सच यह है कि जब कोई पुरुष भी पूरी तरह

शांत होता है, तो स्त्रैण हो जाता है। हो ही जाएगा। हो जाएगा इसलिए कि इतना शांत हो जाएगा कि वह जो पुरुष की अनिवार्य बेचैनी थी, वह जो अनिवार्य अशांति थी,अनिवार्य तनाव था, वह जो टेंशन था पुरुष के अस्तित्व का, वह खो जाएगा।

यही वजह है कि हमने भारत में प्रतीकात्मक रूप से कृष्ण की, बुद्ध की, महावीर की दाढ़ी-मूंछ नहीं बनाई। ऐसा नहीं कि नहीं थी; थी। लेकिन नहीं बनाई; ‍क्योंकि वह सांकेतिक नहीं रह गई। सांकेतिक नहीं रह गई। वह बुद्ध के भीतर की खबर नहीं देती, इसलिए उसे हटा दिया। सिर्फ एक मूर्ति पर बुद्ध की दाढ़ी है, इसलिए लोग उस मूर्ति को कहते हैं वह झूठ है, वह ठीक नहीं है। ‍क्योंकि किसी मूर्ति पर दाढ़ी नहीं है। महावीर की के एक मूर्ति पर मूंछ है, तो लोग कहते हैं कि वह कुछ किसी जादगूर ने उन पर मूंछ उगा दी है। तो उस पूरे मंदिर का नाम मुछारा महावीर है, मूंछ वाले महावीर। ‍क्योंकि महावीर तो मूंछ वाले थे नहीं। लेकिन महावीर में मूंछ न हो, बुद्ध भें मूंछ न हो, कभी एकाध दफा ऐसी घटना घट सकती है; ‍क्योंकि कुछ पुरुष होते हैं, जिनमें हार्मोन्स की कमी की वजह से दाढ़ी-मूंछ नहीं होती। लेकिन जैनों के चौबीस तीथकंर और किसी को दाढ़ी न हो, जरा कठिन है! इतना बड़ा संयोग मुश्किल है।

लेकिन वह प्रतीकात्मक है। वह इस बात की खबर है कि हमने यह स्वीकार कर लिया था कि यह ‍व्यक्ति अब स्त्रैण रहस्य में प्रवेश कर गया, दि फेमिनिन मिस्ट्री में।


"ओशो ताओ उपनिषद"


Many things are like taking into consideration.  When a male is born, when a child is born, a boy is born, then they do not have sex hormones right now, they start being born later.  Later, her semen starts being produced.  But you will be surprised to know that when a girl is born, she is born with all her eggs.  The number of eggs released in her menstrual period throughout her life, the same number of eggs she produces.  A woman is born completely.  He has the entire dictionary of his eggs.  Then one of them - an egg will start coming out in time.  But she brings all the eggs.  The male is born incomplete.  And because of being born incomplete, the boys are restless and the girls are calm.  An uneasiness occurs in a boy from birth.  The girl has an etiagnosis from birth.  The beauty of the girl's body, her personality, is very much related to her peace.  If the girl is to be restless, then measures have to be taken.  And if the boy is to be pacified, then measures have to be taken;  It is bound to be turbulent.  Biologists say that its function is that the egg made by a woman contains the molecules in it, which are ex-x.  Both from

 Occur.  And the chromosome the male is made of is X-Y;  It has an x, a y;  They are not the same.  The elements in a woman are x-x, both are same.  That is why the woman is curvy, the man is not able to shape it.  The beauty of the curves in a woman's body is the function of both her and her balanced eggs.  And there cannot be the same balance in a man's body, because x-y, he does not have equality between one and the other.  There are forty-eight atoms that make up the personality of a woman;  They are twenty-four-twenty.  There are forty-seven who make the man.  And the biologist says that he who lacks a molecule, he runs the man all his life - from this shop to that shop, from the ground to the moon.  The one who is less, is his search.  He wants to be fulfilled.  This, which is the balanced, calm, awaited personality of a woman, says Lao Tzu, it is the deepest secret of life.  God exists in a feminine way;  Not in a male way.  Therefore, we cannot see God.  We cannot catch him.  He is definitely present;  But her presence is feminine, it is not like being.  The more we go to apprehend him, the more he will be released from us, the more he will be removed.  The more his search will become difficult.

 Existence is feminine.  This means that whatever appears in existence is already hidden in existence - one.  Like I said, whatever is born in a woman, everything is already hidden.  She brings everyone with her birth.  There is nothing new in it.

 She is born full.  There is growth in it, but there is no addition.  There is development in it, but nothing new is added.  This is the reason why she lives very satisfied.  The satisfaction of women is amazing.  Otherwise they could not be enslaved for so long.  His fulfillment is astonishing;  They also agree in slavery.  Whatever the situation, she agrees.  Insatiation can be produced with great difficulty in them;  It is very difficult.  And it can be created only when some biological difficulty arises within them.  The difficulty seems to have arisen in the West.  So discomfort can be produced in them.

 And on the day when the woman is restless, it is very difficult to bring her to rest.  Because it's so unnatural its

 Getting bothered.  Therefore, the woman is not restless, she is crazy straight.  You will be surprised to know that the woman either calms down or goes mad;  There is no gradation, there are no gradations.  Man is neither so much, nor so mad;  He has many degrees in between.  He keeps on oscillating in turbulent degrees.  He does not go mad even in the greatest unrest;  And even in the greatest peace, he does not become completely calm.

 Nietzsche has spoken very thoughtfully.  He has said that as far as I understand, a person like Buddha must have had more feminine elements.

 Nietzsche has called Buddha a Womanish.  And I believe that there is a deep understanding in this.  The truth is that even when a man is completely

 When it is calm, it becomes feminine.  It will be done.  It will become so quiet that the man's compulsive restlessness, the inevitable disturbance, the inevitable tension, the tension of the man's existence, he will be lost.

 This is the reason why we did not symbolically make Krishna, Buddha, Mahavira's beard-mustache in India.  Not that it wasn't;  was.  But not made;  Because she is no longer symbolic.  Is no longer symbolic  She does not give information about the Buddha, so she is removed.  Only an idol has a beard of Buddha, so people say that idol is a lie, it is not okay.  Because no idol has a beard.  An idol of Mahavir has a mustache, so people say that some Jadgur has grown a mustache on him.  So the name of the entire temple is Muchhara Mahavira, Mahavira with a mustache.  Because Mahavira was not a mustache.  But Mahavira does not have a mustache, Buddha does not have a mustache, sometimes such an incident can happen;  Because there are some men, who do not have beard and mustache due to lack of hormones.  But the twenty-fourth of Jainas and no one has to shave, it is hard!  Such a big coincidence is difficult.

 But he is symbolic.  It is reported that we had accepted that this person has now entered the feminine mystery, in The Feminine Mystery.


 "Osho Tao Upanishad"



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