Snehdeep Osho Vision

 लाओत्से के पीछे कोई धर्म निर्मित नहीं हो सका। लाओत्से की हैसियत का आदमी वह अकेला है, जिसके पिछे कोई धर्म निर्मित नहीं हो सका, कोई चर्च नहीं खड़ा हो सका। कैसे खड़ा होगा? ‍क्योंकि लाओत्से कहता है, प्रकृति सदय नहीं है। प्रार्थना कट गई, स्तुति कट गई, परमात्मा कट गया; आप अकेले रह गए। और अकेले रहने में हमें इतना डर लगता है कि झूटा भी साथ मिल जाए , तो मन को 

राहत होती है। नहीं हो कोई साथ, मेरी नाव बिलकुल खाली है और मैं हूं;आंख बंद करके भी सपना देख लूँ कि कोई साथ है नाव पर, 

अकेला नहीं हूं, तो भी राहत मिलती है। शायद इसीलिए आदमी सपने देखता है। और सपने सोकर ही देखता हो, ऐसा नहीं; जाग कर भी देखता है।

जिन्हें हम धर्म कहते हैं, वह  हमारे  फैलाए गए बड़े-बड़े स्वप्न हैं। जिनमें में हमने वही देख लिया है, जो हम चाहते हैं। और बड़े सस्ते में

देख लिया है। चूंकि एक आदमी एक बार भोजन करता है, या एक आदमी एक लंगोटी पहनता है, या एक आदमी नग्न खड़ा हो जाता है, या एक आदमी रोज मंदिर की घंटिया बजा देता है, तो वह सोेचता है,मोक्ष सुनिश्चित  हुआ, निश्चित हुआ स्वर्ग ।

नहीं, प्रकृति सदय नहीं है।

लेकिन दया की भीख कौन मांगते हैं ?  दया की भीख सदा ही गलत लोग मांगते हैं। ठीक आदमी दया की भीख नहीं मांगेगा। मिलती

भी हो, तो इनकार करेगा। ‍क्योंकि जो दया करके पाया जाता है, वह कभी पाया ही नहीं जाता। जो दया से मिलता है, वह कभी मिल

ही नहीं पाता, वह हमारे प्राणो का कभी हिस्सा नहीं हो पाता। जो हमारे श्रम से ही आविर्भूत होता है, वही केवल हमारी संपदा है।

लाओत्से कहता है, प्रकृति सदय नहीं है। कठोर है? कठोर भी नहीं है। प्रकृति सिर्फ आपके प्रति निरपेक्ष है। आपके प्रति प्रकृति का कोई भी भाव नहीं है, निर्भावी है। पक्ष-विपक्ष नहीं है। हम सदा तोड़ कर सोेचते हैं, प्रकृति मित्र है या शत्रु है। न हीं प्रकृति मित्र है, न हीं प्रकृति शत्रु है। प्रकृति आपका कोई लेखा-जोखा नहीं रखती। आप एकाउंटेबल ही नहीं हैं। आपका कोई हिसाब नहीं रखा जाता है। आप न होते, तो कुछ कमी नहीं होती। आप होते हैं, तो कुछ बढ़ नहीं जाता है। पानी पर खींची गई लकीरों जैसा हमारा होना है; पानी को कोई अंतर नहीं  पड़ता। लकीर खींच भी नहीं पाती कि मिट जाती है और बुझ जाती है। सदय नहीं है, इसका अर्थ ? इसका अर्थ है, आपके प्रति कोई भाव नहीं है।

यह एक दृष्टि से कठोर, दूसरी दृष्टि से बहुत ही आनंदपूर्ण बात है। ‍क्योंकि अगर प्रकृति भी भाव रखती हो, तो वहां भी पक्षपात हो ही 

जाएगा। फिर कोई वहां भी धोखा देने में समर्थ हो जाएगा। फिर वहां कोई पाप भी करेगा और स्वर्ग भी पहुंच जाएगा, और कोई पूण्य भी करेगा और नर्क में सड़ेगा। अगर कोई भी भाव है अस्तित्व के पास, तो चुनाव शुरू हो जाएगा।

इसलिए सारे दुनिया के धर्म, जो कि चुनाव पर ही खड़े हैं और प्रकृति के सदय होने की धारणा पर खड़े  हैं, निर्णय करते हैं। अगर हम मुसलमान से पूछें कि गैर-मुसलमान का ‍क्या होगा? तो मुसलमान को लगता है, भटकेगा दोजख में, कोई उपाय नहीं है गैर-मुसलमान

के लिए । ईसाई से पूछें, गैर-ईसाई का ‍क्या होगा? तो जो ईसा के पीछे नहीं है, वह अंधेरे में भटक जाएगा! परमात्मा ने तो अपना बेटा

भेज दिया। अब जो उसके बेटे के साथ हो जाएंगे , वे बच जाएंगे। जो उसके बेटे के साथ नहीं होंगे, वह मिट जाएंगे।

अगर परमात्मा का कोई बेटा है, तो उपद्रव होगा। और अगर परमात्मा के बेटे के पक्ष में होने की सुबिधा है और असतित्व भी उसके

पक्ष में हो जाएगा, तो फिर कठिनाई है।

नहीं, लाओत्से कहता है, प्रकृति का कोई बेटा नहीं। प्रकृति का कोई अपना नहीं, ‍क्योंकि प्रकृति का कोई पराया नहीं है। प्रकृति किसी

को स्वीकार नहीं करती, ‍क्योंकि प्रकृति किसी को इनकार नहीं करती है। प्रकृति का कोई पक्ष नहीं है; प्रकृति पक्षधर नहीं है।

यह आनंद की बात है एक अर्थ में। इसलिए जिसकी जितनी सामर्थ्य और जिसका जितना बल, वही हो जाएगा। कोई पक्षपात नहीं 

होगा। अगर नर्क होगा, तो मेरा अर्जन। और अगर स्वर्ग होगा, तो मेरा अर्जन । न मैं किसी को दोषी ठहरा पाऊंगा और न किसी को

उत्तरदायी। न मैं किसी को धन्यवाद दे पाऊंगा और न किसी को गालियां दे पाऊंगा कि तुम्हारी वजह से सब गडबड़ हो गई है।

लाओत्से के इस वचन का अर्थ है, अल्टीमेंटली आई एम दि रिस्पांसिबल; अल्टीमेट रिस्पांसिबिल्टी इज़ विद मी। आत्यंतिक रूप से मैं ही दायित्व का भागीदार हूं, कोई और नहीं।


"ओशो ताओ उपनिषद"


No religion could be formed behind Laotse.  The man of Laotsay's status is the only one behind whom no religion could be built, no church could stand.  How will it stand?  Because Laotsay says, nature is not common.  Prayer is cut, praise is cut, God is cut off;  You are left alone.  And we are so afraid of being alone that even if the swing gets together, the mind

 There is relief.  Don't be with someone, my boat is completely empty and I am; Even with the eyes closed, I dream that someone is on the boat,

 Even if I am not alone, I get relief.  Perhaps this is why man dreams.  And you only dream while sleeping;  Wakes up and sees.

 What we call religion are our big dreams.  In which we have seen what we want.  And very cheaply

 Have seen  Since a man dines once, or a man wears a loincloth, or a man stands naked, or a man blows the bell of the temple daily, he thinks, salvation is ensured, heaven is fixed.

 No, nature is not good.

 But who begs for mercy?  The wrong people always beg for mercy.  The fine man will not beg for mercy.  Get

 If it is, it will deny.  Because what is found in kindness is never found.  Whoever meets kindness, ever get

 It is not possible, it is never a part of our lives.  What emerges from our labor is only our wealth.

 Laotse says, nature is not sustainable.  Is it harsh?  Not too harsh.  Nature is just absolute towards you.  There is no sense of nature towards you, it is ineffective.  There are no pros and cons.  We always think of breaking, nature is friend or enemy.  Neither is nature a friend, nor is nature an enemy.  Nature does not keep any account of you.  You are not only accountable.  No account is kept of you.  If you were not there, then nothing is lacking.  If you are, nothing increases.  We have to be like lines drawn on water;  Water does not matter.  She is unable to draw a line that is erased and extinguished.  Not mean, it means?  That means, there is no emotion towards you.

 It is harsh from one point of view, very enjoyable from another point of view.  Because even if nature is sentiment, there should be partiality

 Will go.  Then someone will be able to cheat there too.  Then someone will commit sins there and will also reach heaven, and someone will also do virtue and will go to hell.  If there is any sense of existence, then the election will begin.

 That is why the religions of the whole world, which stand on election and stand on the notion of being a member of nature, decide.  If we ask a Muslim what will happen to a non-Muslim?  So the Muslim feels, in wandering, there is no way non-Muslims

 for .  Ask Christians, what will happen to non-Christians?  So he who does not follow Jesus will wander in the dark!  God has his son

 sent.  Now those who join her son will be saved.  Those who are not with his son will disappear.

 If God has a son, there will be trouble.  And if God has the benefit of being in favor of the son and the existence of him

 Will be in favor, then there is difficulty.

 No, Laotse says, no son of nature.  Nature has no one because nature has no alien.  Nature someone

 Does not accept, because nature does not deny anyone.  Nature has no side;  Nature is not in favor.

 In a sense it is a matter of pleasure.  Therefore, whose strength and whose strength, will be the same.  No bias

 Will happen.  If there is hell, then I earn.  And if there is heaven, then I earn.  Neither will I be able to blame anyone nor anyone

 Responsible.  Neither will I be able to thank anyone nor will I be able to abuse anyone that everything has gone awry because of you.

 Laotse's word means, Ultimately I'm the Responsible;  Ultimate Responsibility Is With Me.  Ultimately I am the partner of responsibility, nobody else.


 "Osho Tao Upanishad"



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

यह ब्लॉग खोजें