Snehdeep Osho Vision

 प्रकृति बिलकुल ही दया-शुन्य है। चाहे वह प्रकृति पृथ्वी पर प्रकट होती हो और चाहे स्वर्ग-आकाश में, चाहे वह शरीर  के तल पर प्रकट होती हो और चाहे आत्मा के तल पर, प्रकृति सदय नहीं है। इसका यह अर्थ आप न लेना कि प्रकृति कठोर है। साधारणतः ऐसा ही समझ में आएगा कि जो दयावान नहीं है, वह क्रूर होगा, कठोर होगा।

नहीं, जो कठोर हो सकता है, वह दयावान भी हो सकता है। जो दयावान होता है, वह कठोर भी हो सकता है। लेकिन प्रकृति दोनों नहीं

है। न तो वह किसी पर दया करती है और न किसी पर कठोर होती है। असल में, प्रकृति आपकी चिंता ही नहीं लेती। आप हैं भी, 

आपका अस्तित्व भी है, प्रकृति को इससे भी प्रयोजन नहीं है। कल आप नहीं होंगे, तो आकाश रोएगा नहीं और पृथ्वी आंसू नहीं

गिराएगी। और कल आप नहीं थे, तो पृथ्वी को आपके न होने का कोई पता नहीं था। और आज आप हैं, तो प्रकृति को आपके होने का कोई पता नहीं है।

जब लाओत्से कहता है कि प्रकृति सदय नहीं है, तो वह यह कह रहा है कि व्यर्थ दया की भीख मांगने मत जाना। न जमीन पर दया

मिल सकती है और न आकाश में। हाथ मत जोड़ना किसी मंदिर और मस्जिद के सामने। किसी परमात्मा की प्रार्थना इसलिए मत

करना कि प्रार्थना से कुछ भेद पड़ जाएगा। नहीं, प्रशंसा से कोई भेद न पड़ेगा परमात्मा की तरफ से; स्तुति कुछ फर्क न ला सकेगी, 

‍क्योंकि गालियां भी कोई अंतर नहीं लाती हैं। स्तुति वहीं सार्थक होती है, जहां गालियां भी सार्थक हो सकती हैं। अगर परमात्मा को दी

गई मेरी गाली बेचैन करती हो, तो मेरी स्तुति भी सार्थक हो सकती है। और परमात्मा, अगर मैं प्रार्थना करूं, और नाराज और कठोर हो जाए , तो मेरी स्तुति उसे पिघला सकती है, परसुएड कर सकती है, फुसला सकती है और राजी कर सकती है। अगर परमात्मा को मैं दयावान होने के लिए राजी कर सकता हूं, तो फिर परमात्मा को कठोर होने के लिए भी राजी किया जा सकता है। उस हालत में

परमात्मा परमात्मा नहीं रह जाता, हमारे हाथ की कठपुतली हो जाता है।


"ओशो ताओ उपनिषद"

Nature is absolutely compassionate.  Whether that nature appears on earth and whether in heaven or sky, whether it appears on the floor of the body and whether on the bottom of the soul, nature is not always.  Do not take this to mean that nature is harsh.  It will generally be understood that one who is not kind, will be cruel, will be harsh.

 No, one who can be harsh can also be kind.  One who is kind, can also be harsh.  But not both

 is.  Neither does she pity anyone nor is harsh on anyone.  Actually, nature does not take care of you.  You are too

 You also exist, nature does not need anything more than this.  If you are not there tomorrow, the sky will not cry and the earth will not tear

 Will drop  And if you were not there yesterday, the earth had no idea that you were not there.  And today you are, then nature has no idea of ​​you.

When Lao Tzu says that nature is not good, he is saying not to go begging for vain mercy.  No pity on the ground Can not be found in the sky.  Do not fold your hands in front of a temple and mosque.  Do not pray to any divine Doing prayer will make some difference.  No, praise will not detract from God;  Praise will not make a difference,

Because abuses also make no difference.  Praise is only meaningful where abuses can also be meaningful.  If given to god If my abuse is restless, then my praise can also be meaningful.  And God, if I pray, and become angry and harsh, my praise may melt him, parasitize, lure and persuade.  If I can persuade God to be merciful, then God can also be persuaded to be harsh.  In that condition

God is no more, God becomes a puppet in our hands.


 "Osho Tao Upanishad"



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