हमारी सारी शिक्षा -दीक्षा एक ही समझ की है, यह तथाकथित जो समझ है। गणित सीखते हैं इसी बुद्धि से; भाषा सीखते हैं इसी
बुद्धि से। काम चल जाता है। काम इसलिए चल जाता है कि आपके भीतर के केंद्र का कोई विपरित गणित नहीं है; नहीं तो काम
नहीं चलता। आपके इनरमोस्ट सेंटर का अपना अगर कोई मैथमेटिक्स होती, तो आपके स्कूल-कालेज सब दो कौड़ी हो जाते। लेकिन उसके पास कोई मैथमेटिक्स नहीं है। इसलिए आप स्कूल में गणित सीख लेते हैं;भीतर से कोई विरोध नहीं होता।
इसलिए विश्वविद्यालय सुपर है कामचलाऊ दुनिया के लिए । क्योंकि गणित हमारी ईजाद है, भाषा हमारी ईजाद है; जो भी हम सीखा
रहे हैं स्कूल में, वह आदमी की ईजाद है। अगर हम आदमी को न सिखाएं, तो वह आदमी में होगा ही नहीं। अगर हम एक बच्चे को भाषा न सिखाएं, तो वह बच्चा अपने आप भाषा नहीं बोल पाएगा। लेकिन एक बच्चे को क्रोध सिखाने की जरूरत नहीं है; वह अपने आप क्रोध सीख लेगा। अगर हम एक बच्चे को गणित न सिखाएं, तो दुनियां में कोई उपाय नहीं है कि वह गणित सीख ले। लेकिन सेक्स या कामवासना सिखाने के लिए किसी विद्द्यापीठ की जरूरत नहीं पड़ेगी। उसे जंगल में डाल दो, खड्ड में, वहां भी वह सीख लेगा। सीख लेने का सवाल नहीं है; वह भीतर से आएगा।
तो इसका मतलब यह हुआ कि जीवन में जो चीज भी भीतर से आती है, उसी के मामले में अडचन में पड़ते हैं आप। जो भीतर से
नहीं आती, बाहर की है, उसमें अडचन में नहीं पड़ते । आप कोई भी भाषा सीख लेते हैं। वह ऊपर का काम है, भीतर का मन उसके विरोध में नहीं है। चल जाता है। तो स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय आपको जो शिक्षा देते हैं ,वे मन का ऊपरी हिस्सा ट्रेंड कर देते हैं वे ।
कठिनाई तब शुरू होती है,जब आप जिंदगी को भीतर से बदलना चाहते हैं, तब भी इसी ऊपरी हिस्से का उपयोग करते हैं। बस वहीं
अडचन हो जाती है।
"ओशो ताओ उपनिषद"
All our education - initiation is of the same understanding, it is the so-called whatever understanding. Mathematics learns from this intelligence; Learn language
With intelligence. Work goes on. The work goes on because your inner center has no contrasting mathematics; Otherwise work
Does not work. If your Enermost Center had its own mathematics, then your school and college would have been all two. But he has no mathematics. So you learn mathematics in school; there is no opposition from within.
So the university is super for the caretaker world. Because mathematics is our devise, language is our devise; Whatever we learned
In school, he is the man's devise. If we do not teach man, he will not be in man. If we do not teach language to a child, then that child will not be able to speak the language on its own. But there is no need to teach anger to a child; He will learn anger on his own. If we do not teach mathematics to a child, then there is no way in the world to learn mathematics. But no school will be required to teach sex or sex. Put him in the forest, in the ravine, he will learn there too. It is not a question of learning; He will come from within.
So this means that in the matter of whatever comes from within in life, you are in trouble. From within
Does not come, is outside, does not fall into it. You learn any language. It is an upward work, the inner mind is not against it. Goes on So the schools, colleges, universities give you education, they trend the upper part of the mind.
Difficulty starts when you want to change life from within, still use this upper part. Just there
It becomes obstructive.
"Osho Tao Upanishad"
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