हम जो भी कहते हैं, हमारा गेस्चर, हमारे कहने की इंफेसिस, जोर, हमारा आग्रह, सब बताता है। और ध्यान रहे, जितना हम असत्य कहते हैं, उतने आग्रह से कहते हैं; जितना सत्य कहते हैं, उतना आग्रह शून्य हो जाता है। सत्य अपने आप में पर्याप्त है। मेरे आग्रह की कोई भी जरूरत नहीं है; मेरे बिना भी वह खड़ा हो सकता है।
एक यहूदी विचारक है, सादेह। सादेह से बहुत दफे कहा गया कि तुम अपना जीवन प्रकाशित करो, अपने जीवन के बावत कुछ कहो, ताकि हमें आसानी हो समझने में कि तुम जो कहते हो, वह क्या है! तो सादेह ने कभी अपना जीवन नहीं लिखवाया, न यह बताया कि उसके जीवन में कोई घटना भी घटी है। सादेह कहता था कि जो मैं कह रहा हूं, अगर वह सत्य है, तो मेरे बिना सत्य रहेगा। मेरे जीवन को जानने की क्या जरूरत है?
जब उस पर बहुत जोर डाला गया, तो उसने क वक्तव्य में कहा कि अगर जीसस का हम जीवन देखें और फिर बाइविल पढ़ें, तो
बाइविल कोई पढ़ेगा ही नहीं। पहले अगर जीवन देखें! तो जीसस का जीवन क्या है? एक घुड़साल में वह पैदा हुए । गांव भर में कहीं जगह न मिली जीसस की मां को, पिता को, तो एक जहां घोड़े बंधते थे, उस घुड़साल में वह पैदा हुए ।
कथा कहती हैं कि वह कुंआरी मरियम से पैदा हुए । यह संदिग्ध बात है, क्योंकि कुंआरी स्त्री से कोई पैदा हो सकता है?
तो सादेह कहता है कि साफ बात तो यह है कि जीसस के पिता के बावत संदेह है कि कौन पिता था।
सादेह ने कहा कि मेरे जीवन को छोडो। इससे क्या फर्क पड़ता है कि सादेह सिगरेट पीता है कि नहीं पीता, कि सादेह शराब पीता है कि नहीं पीता। और जो सादेह कहता है, अगर वह सच है, तो सादेह की सिगरेट पीना उसके सच को झूठ न कर पाएगी। और सादेह जो कहता है, वह अगर झूठ है, तो वह अगर सिर्फ शुद्ध पानी ही पीता हो और कुछ न पीता हो, तो भी वह सच न हो पाएगा। तो उसने कहा,मुझे छोडो । मेरे बीच में आने की कोई जरूरत नहीं है। जो कहा है, उसे सीधा देख लो। यह शायद स्वयं को हटाने की प्रक्रिया है। यह शायद लगा कर यह आदमी यह कह रहा है कि मुझे अब छोडा जा सकता है। मैं कोई आग्रह नहीं करता, इसलिए विवाद में मैं नहीं हूं। यह सीधा सत्य रख देता हूं सामने, मैं हट जाता हूं। जब मैं कहता हूं, यही सत्य है, तो मैं विवाद में खड़ा रहूंगा। क्योंकि अगर किसी ने कहा नहीं है, तो यह जिम्मा मुझ पर होगा कि मैं सिद्ध करूं कि है। मैं कहता हूं, शायद यह सत्य है। मैं विवाद से बाहर हो गया । अब यह सत्य अकेला रहेगा। यह अगर राजी कर ले, तो काफी है। और अगर न राजी कर पाए , अगर सत्य ही राजी न कर पाए , तो फिर और कौन राजी कर पाएगा?
इसलिए लाओत्से जैसे लोग शायद से उस सत्य को कहते हैं जो उनके लिए पूरी तरह है, जिसके लिए वह पूरी तरह आस्वस्त हैं। यह
बड़ी उरटी बात है। झूठ बोलने वाले शायद से कभी शुरू नहीं करते; सत्य बोलने वाले अक्सर शायद से शुरू करते हैं। झूठ बोलने वाले बहुत आग्रह पूर्ण होते हैं; सत्य बोलने वाले का कोई आग्रह नहीं होता।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Everything we say, our gesture, the emphasis of our saying, emphasis, our insistence, tells everything. And remember, the more we say the untrue, the more we insist; The more truth you say, the more the urge becomes void. Truth is sufficient in itself. There is no need for my request; Even without me he can stand.
Saadeh is a Jewish thinker. Saadeh was told many times that you publish your life, say something about your life, so that we can easily understand what you say is what it is! So Saadeh never got his life written, nor did he say that any incident had happened in his life. Saadeh used to say that what I am saying, if it is true, then it will be true without me. What is the need to know my life?
When he was stressed a lot, he said in a statement that if we look at the life of Jesus and then read the Bible,
Nobody will read biville. See if life first! So what is Jesus' life? He was born in a mews. Jesus' mother was not found anywhere in the village, father, and he was born in a horse where horses were tied.
The legend says that he was born to the virgin Mary. This is suspicious, because someone can be born to a virgin woman?
So Sadeh says that the obvious thing is that there is doubt about Jesus' father who was the father.
Saadeh said leave my life. What difference does it make whether Saadeh smokes cigarettes or does not drink, whether Saadeh drinks alcohol or not. And if what he says is true, then smoking cigarettes will not be able to lie to him. And what Sadeh says is a lie, even if he drinks only pure water and does not drink anything, it will not be true. So he said, leave me. There is no need to come in between me. Look straight at what you said. It is probably a process of self-removal. Probably this man is saying that I can be left now. I do not make any request, so I am not in dispute. I put this straight truth in front, I turn away. When I say this is true, I will stand in dispute. Because if no one has said, it will be up to me to prove that I am. I say, maybe it is true. I got out of contention. Now this truth will remain alone. If it is agreed, it is enough. And if neither can agree, if truth cannot agree, then who else will be able to agree?
That's why people like Laotse probably say the truth that is completely for him, for which he is completely unwell. this
It is very difficult. The liars probably never start; Truth speakers often start with maybe. Many liars are full of urges; There is no request of the one who speaks the truth.
"Osho Tao Upanishad"
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