लाओत्से कहता है, परमात्मा के भी पहले जो था! वही ओरिजनल फेस है सत्य का, जो परमात्मा के भी पहले है। जब कुछ भी न था
प्रकट, सब अप्रकट था।
सृजन और प्रलय ,जैसे कि श्वास बाहर जाए भीतर आए ,भीतर आए बाहर जाए , ऐसा हिन्दू तत्व चिंतन ने कहा है कि
अस्तित्व का सृजन परमात्मा की भीतर आती श्वास है, और अस्तित्व का विनाश परमात्मा की बाहर जाती श्वास है, आउटगोइंग ब्रेथ। और ब्रम्हा की एक श्वास-वह माइथोलॉजी है, पर समझने जैसी है–ब्रम्हा की एक श्वास सृजन है और दूसरी श्वास प्रलय है।
लेकिन इन दोनों के पार भी कोई अवस्था है, जब न श्वास भीतर आती है और न बाहर जाती है। वह तीसरी अवस्था है–न प्रलय है, न सृष्टि है। कुछ तो ऐसा होना ही चाहिए , जो प्रलय में नष्ट होता है, सृजन में बनता है और दोनों के पार है। वह ओरिजनल फेस,वह मूल चेहरा होगा।
लाओत्से कहता है, परमात्मा के भी पहले जो था, उसका प्रतिबिंब। लेकिन बहुत…लाओत्से की अभिव्यक्ति इतनी कदम-कदम विचारणीय है कि वह यह नहीं कहता कि वही। वह कहता है, प्रतिबिंब।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Lao Tzu says, even before God! The original face of truth is that which is before God. When there was nothing
Appeared, everything was secret.
The Hindu element contemplation has said that creation and holocaust, as the breath goes out, comes in, goes in.
The creation of existence is the inner breath of the divine, and the destruction of existence is the outgoing breath of the divine, the outgoing breath. And one breath of Brahma - that is Mythology, but it is like understanding - one breath of Brahma is creation and the other breath is Holocaust.
But there is also a state beyond these two, when neither the breath comes in nor goes out. That is the third stage - neither is holocaust nor creation. There must be something which is destroyed in the Holocaust, is formed in creation and is beyond both. That will be the original face, the original face.
Lao Tzu says, a reflection of what was before God. But many… Laotse's expression is so step by step that he does not say that he is. He says, reflection.
"Osho Tao Upanishad"
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