महावीर से थोड़ी सी कल्पना लाओत्से को समझने में आसान होगी। महावीर ने परहेप्स का जितना उपयोग किया है इस पृथ्वी
पर, दूसरे आदमी ने नहीं किया है। महावीर कुछ भी बोलते थे, तो उसमें स्यात लगा कर ही बोलते थे। वे कहते थे, शायद! वे कभी नहीं कहते थे, ऐसा ही। इसलिए महावीर के चिंतन का नाम है: स्यातवाद, परहेप्स-इज्म। महावीर से कुछ भी पूछिएगा, तो वे कहेंगे परहेप्स, शायद। जो बिलकुल सुनिश्चित सत्य है, महावीर जिसे बहुत निश्चित रूप से जानते हैं, उसको भी वे कहेंगे स्यात। क्यों ? अगर महावीर को ठीक-ठीक पता है, अगर बिलकुल सही पता है, तो उन्हें साफ़ कहना चाहिए , ऐसा ही है।
लेकिन महावीर कहते हैं, जब भी कोई ऐसा दावा करता है, ऐसा ही है, तभी असत्य हो जाता है। महावीर कहते हैं, मन इतना ही कर
सकता है, ऐसा भी है। ऐसा ही है, ऐसा नहीं; ऐसा भी हो सकता है। जब हम कहते हैं, ऐसा ही है, तो हम और सारे सत्य की संभावनाओं को नष्ट कर देते हैं। दावा हमारा पूर्ण हो जाता है और अंधा हो जाता है। जब हम कहते हैं कि ऐसा भी हो सकता है, तो इसके विपरित भी होने की हम संभावनाओं को कायम रखते हैं। और अगर चित्त में बनने वाली सारी स्थितियां प्रतिविम्ब हैं…।
लाओत्से कहता है, शायद यह जो शून्य प्रकट हुआ है, यह प्रतिफलन है उसका, प्रतिविम्ब है उसका, वह जो परमात्मा के भी पहले था; जहां से परमात्मा भी पैदा हुआ होगा।
ताओइस्ट परंपरा में ओरिजनल फेस के बाबत बहुत काम हुआ है। साधक से कहा जाता है तक तुम्हारा मूल चेहरा क्या है, व्हाट इज योर ओरिजनल फेस, उसका पता लगाओ। आप कहेंगे कि मेरा जो चेहरा है, वही मेरा ओरिजनल फेस है। लेकिन अगर आप अपने दस साल के चित्र उठा कर देखें, तो आपको पता चल जाएगा कि आपका चेहरा दस दफे बदल गया है।
"ओशो ताओ उपनिषद"
A little imagination from Mahavira would make Laotsse easier to understand. Mahavira has used perhapes as much as this earth
But the other man has not. If Mahavira used to say anything, he used to speak with utmost care. They used to say, maybe! He never used to say that. Hence the name of Mahavir's contemplation is: Syatvada, Paraheps-ism. If you ask Mahavira anything, he will say diet, maybe. Which is absolutely sure, Mahavir whom he knows very definitely, he will also call it Siyat. Why? If Mahavir knows exactly, if he knows exactly, then he should say it clearly, it is like that.
But Mahavir says, whenever someone makes such a claim, it is like that, then it becomes untrue. Mahavir says, mind is so
It is also like that. This is so, not so; This can also happen. When we say so, we destroy all other possibilities of truth. Our claim is complete and blinded. When we say that this can happen, then we maintain the possibility of it being contrary. And if all the conditions formed in the mind are the reflection….
Lao Tzu says, perhaps the void that has appeared, this is his reflection, his reflection, that which was before God; Whence the divine was also born.
In the Taoist tradition, a lot of work has been done about the original face. It is said to the seeker, what is your original face, what is your original face, find out. You will say that my face is my original face. But if you take pictures of your ten years, then you will know that your face has changed ten times.
"Osho Tao Upanishad"
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