कल मैंने कहा, अस्मिता और अहंकार। अहंकार जब तक है, तब तक ज्ञान का उदय नहीं होता; अहंकार जब तक है, तब तक अज्ञान ही होता है। यह रहस्यवादियों ने अज्ञान को और अहंकार को पर्यायवाची कहा है। टु बी ईगो-सेंटरिक टू बी इग्नोरेंट आर दी सेम। ये दो बातें नहीं हैं। अहंकार-केंद्रित होना और अज्ञानी होना एक ही बात है। अज्ञानी और अहंकार एक ही स्थिति के दो नाम हैं।
अहंकार जब गिर जाता है, अज्ञान जब गिर जाता है, तब अस्मिता का बोध शुरू होता है। अस्मिता और ज्ञा एक ही बात है। जैसा
मैंने कहा, अहंकार और अज्ञान एक ही बात है, ऐसा अस्मिता और ज्ञान एक ही बात है। अहंकार के साथ होता है बाहर अज्ञान,
अस्मिता के साथ होता है बाहर ज्ञान। अस्मि का अर्थ होता है, जस्ट टु बी । अस्मिता का अर्थ होगा, जस्ट टु बी नेस! बस होना मात्र!
विशेषण रहित, अहंकार रहित,मात्र होना, शुद्ध अस्मिता ! यह जो अस्मिता रह जाएगी, इसके साथ होगा ज्ञान।
यहां जब लाओत्से कहता है, नहीं जानता मैं ,तो यह मैं अस्मिता का सूचक है। अहंकार तो मिट गया ; अब कोई ऐसा भाव नहीं रहा कि मैं जगत का केंद्र हूं। अब ऐसा कोई भाव नहीं रहा कि जगत मेरे लिए है। अब ऐसा भी कोई भाव नहीं रहा कि मैं बचूं ही। ये सब
भाव चले गए ; फिर भी मैं हूं। इस मैं में सारे के सारे रहस्य खुल गए । लेकिन इस मैं को भी कोई पता नहीं कि यह जो शून्य है, यह
कहां से जन्मता है। अज्ञान को तो कोई पता ही नहीं है कि जगत कहां से जन्मता है; ज्ञान को भी कोई पता नहीं है कि जगत कहां
से जन्मता है। अज्ञान तो बता ही न सकेगा तक जीवन का रहस्य कहां से अद्दभुत होता है, कहां है वह गंगोत्री जहां से अस्मिता की
गंगा निकलती है; अज्ञान तो बता ही न सकेगा, ज्ञान भी नहीं बता सकता है।
लाओत्से यहां जो कह रहा है, नहीं जानता हूं मैं, वह यह कह रहा है कि सब जान कर भी, स्वयं को सब भांति पहचान कर भी–अब
कोई ग्रंथियां न रहीं, अब कोई अंधकार न रहा, प्रकाश पूरा है–फिर भी मैं नहीं जानता कि यह जो शून्य है, यह जो उद्घाटित हुआ मेरे आंखों के सामने, यह कौन है? यह शून्य कहां से आता है ? इसका क्या यात्रा-पथ है ? यह क्यों है? इस ज्ञान से भरी अस्मिता को भी कोई पता नहीं है।
लाओत्से का मैं ज्ञानी का मैं है; उसे भी पता नहीं है। अज्ञानी के मैं को तो कुछ भी पता नहीं, अज्ञानी के मैं को भी कुछ पता नहीं है।
यह फासला खयाल में ले लेने की जरूरत है। और इसके पार नहीं जाया जा सकता। अस्मिता तक जाया जा सकता है। जहां अस्मिता भी खो जाती है, उसके पार तो आप शून्य के साथ एक हो जाते हैं। फिर तो शून्य को अलग से खड़े होकर जानने का कोई उपाय नहीं रह जाता।
"ओशो ताओ उपनिषद "
Yesterday I said, identity and arrogance. As long as the ego is there, knowledge does not arise; As long as ego is there, ignorance is there. These mystics have called ignorance and ego synonyms. To be ego-centric to be ignorant by the same. These are not two things. Being ego-centric and ignorant is the same thing. Ignorant and ego are two names of the same situation.
When ego falls, ignorance falls, then realization of identity begins. Asmita and Gya are the same thing. As
I said, ego and ignorance are the same thing, such identity and knowledge are the same thing. Outside ignorance happens with ego,
Outside knowledge happens with identity. Asmi means just to be. Asmita will mean just to be ness! Just to be!
Adjective-less, ego-less, mere being, pure identity! This identity which will remain, will be accompanied by knowledge.
Here, when Lao Tzu says, I do not know, I am a sign of identity. Ego has disappeared; There is no longer any feeling that I am the center of the world. There is no longer any feeling that the world is for me. Now there is no such feeling that I can survive. all of this
Expressions gone; Still i am In this, all the secrets were revealed. But I do not even know that this which is zero, this
Where does it originate? Ignorance does not know where the world originates from; Knowledge does not even know where the world is
Is born from Ignorance will not be able to tell from where the secret of life is amazing, where is the Gangotri from where the identity of
The Ganges comes out; Ignorance will not be able to tell, knowledge cannot be told.
I do not know what Lao Tzu is saying here, he is saying that even after knowing everything, identifying yourself as well - now
There are no glands, now there is no darkness, the light is complete - yet I do not know that this is the void, the one that was revealed before my eyes, who is it? Where does this zero come from? What is the road to it? Why is this Nobody knows this knowledge-filled identity.
I am of knowledgeable person in Lao Tzu; He does not even know. The ignorant I do not know anything, the ignorant I do not know anything.
This gap needs to be taken into consideration. And it cannot be crossed. Asmita can be reached. Where even identity is lost, beyond that you become one with zero. Then there is no way to stand apart and know the void.
"Osho Tao Upanishad"
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