शून्य हो जाने पर, घड़े की भांति रिक्त हो जाने पर–चित्त की सारी नोकें झड़ जाएं, सारी गुत्थियां सुलझ जाएं, व्यक्ति स्वयं को पूरा उघाड़ ले और जान ले–फिर भी, जो आधारभूत है, आत्यंतिक है, अल्टिमेट है, वह अनजाना ही रह जाता है। वह रहस्य में ही छिपा रह जाता है।
इस अंतिम सूत्र में लाओत्से उसकी सिर्फ इशारा करता है और कहता है, ―नहीं जानता मैं, किसका पुत्र है यह।’
यह जो सब जान लेने पर भी अनजाना ही रह जाता है, यह जो सब उघड़ जाने पर भी अनउघड़ा ही रह जाता है, यह जो सब आवरण हट जाने पर भी आवृत ही रह जाता है, ढंका हुआ ही रह जाता है, ज्ञान भी जिसके रहस्य को नष्ट नहीं कर पाता, यह कौन है?
―नहीं जानता मैं, किसका पुत्र है यह।’
यह किससे जन्मा ? और कहां से आया ? कौन से मूल स्रोत से इसका उद्गम है?
―शायद यह बिंब है उसका, जो कि परमात्मा के भी पहले था।’
यह जो शन्य उद्घाटित होता है, यह जो रहस्य स्त्रोत होता है, यह शायद बिंब है उसका, जो कि परमात्मा के भी पहले था।
"ओशो ताओ उपनिषद"
When it becomes void, empties like a pitcher - all the tip of the mind falls, all the knots are resolved, the person finds himself completely exposed and knows - yet, what is basic, is extreme, is ultimate, it is unknown Only remains. He remains hidden in mystery.
In this last sutra, Lao Tzu only refers to him and says, 'I don't know whose son this is.'
This which remains unknown even after taking all its life, it remains unaltered even after it is eroded, it remains covered even after the cover is removed, it remains covered, knowledge also Can't destroy the mystery, who is it?
'I don't know whose son this is.'
From whom was it born? And where did it come from? From which original source does it originate?
"Perhaps this is his image, which was before God."
The cone that is revealed, it is the mystery source, it is probably the image of it, which was before God.
"Osho Tao Upanishad"
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