रिलीजन जो है, धर्म जो है, वह शाश्वत रोमांस है, इटरनल रोमांस। हम जितने ही उस प्रेमी के पास पहुंचते हैं, उतने ही हम पाते हैं
कि पर्दों पर पर्दें हैं, द्वार पर द्वार हैं। जितने पास जाते हैं, पाते हैं,और द्वार हैं। अंतहीन मालूम होते हैं द्वार । और इसलिए यह
मात्रा अनंत रूप से सार्थक है। और मात्रा के हर कदम पर रहस्य और विस्मय है। और यात्रा के हर कदम को मंजिल भी माना जा
सकता है और यात्रा की हर मंजिल को नया यात्रा का कदम और पड़ाव भी माना जा सकता है।
इसलिए लाओत्से कहता है, यह सब हो जाए ,फिर भी–यह फिर भी यह बहुत अर्थपूर्ण है–फिर भी ऐसा नहीं कि मंजिल आ ही जाती है और कोई कह देता है कि बस पहुंच गए।
सिर्फ उथले लोग पहुंचते हैं। नहीं पहुंचते, वही पहुंचने की बात करते हुए मालूम पड़ते हैं। यह जीवन इतना गहन है कि कोई कह न
पाएगा कि पहुंच गए ।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Religion is what religion is, it is eternal romance, internal romance. The more we reach that lover, the more we get
That there are curtains on the curtains, there are gates on the gates. As many who pass, find, and have gates. The gates seem endless. And so it
Quantity is infinitely meaningful. And there is mystery and amazement at every step of the volume. And every step of the journey should also be considered as destination
And every destination of the journey can also be considered as the step and stop of the new journey.
That's why Lao Tzu says, let it all happen, yet - it is still very meaningful - yet it is not that the floor comes and someone says that the bus has arrived.
Only shallow people arrive. Do not reach, they seem to be talking about reaching. This life is so intense that no one can say
Will reach that.
"Osho Tao Upanishad"
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