आदमी बड़ा कुशल है। हम अभिमान थोड़े ही करते हैं, स्वाभिमान! अभिमान दूसरे करते हैं। तो सेल्फ़ रिस्पेक्ट तो होनी ही चाहिए । नहीं तो आदमी क्या कीड़ा-मकोड़ा हो जाएगा! अब वह कहता है, क्रोध मुझे करना नहीं और अभिमान मुझे बचाना है। और अभिमान के साथ क्रोध का धागा सिर्फ जुड़ा ही हुआ हिस्सा है; वह अभिमान से अलग हो नहीं सकता। स्वाभिमान तो दूर, स्व को भी जो बचाएगा, उसका भी क्रोध बच जाएगा। स्व भी खो जाए , सेल्फलेसनेस हो–सेल्फिशलेसनेस नहीं, सेल्फ़लेसनेस–स्वार्थ का अभाव नहीं, स्व का ही अभाव हो, तो ही क्रोध जाता
है। हमारी हालतें कुछ ऐसी हैं कि हम एक डंडे के एक छोर को बचाना चाहते हैं और दूसरे को हटाना चाहते हैं। बड़ी मुश्किल में
जिंदगी बीत जाती है; कुछ हटता नहीं। और इस जाल को कभी हम देखते नहीं कि सब चीजें भीतर जुड़ी हैं। अब एक आदमी कहता है कि मुझे, शत्रु तो बिलकुल मुझे चाहिए नहीं; मैं तो सभी से मित्रता चाहता हूं। लेकिन ध्यान रहे,मित्रता बनाने में ही शत्रुता पैदा होती हैं। खैर, क्रोध और अभिमान तो खयाल में आ जाता है, लेकिन मित्रता बनाने में ही शत्रुताएं निर्मित होती हैं, यह खयाल में नहीं आता। जो आदमी मित्रता बनाने को उत्सुक है, वह शत्रुता बना ही लेगा। क्योंकि मित्रता बनाने का जो ढंग है, जो प्रक्रिया है, उसी की बाइ-प्रॉडक्ट…। जैसे कि कोई कारखाने में बाइ-प्रॉडक्ट हो जाती है। अब आप लकड़ी जलाएंगे, तो कोयला घर में बच जाएगा, राख घर में बच जाएगी। आप कहेंगे, आग तो हम जलाना चाहते हैं, ईंधन जलाने की तो बहुत जरूरत है, लेकिन राख न बचे घर में। वह राख बाइ-प्रॉडक्ट है, वह बचेगी ही। जिससे भी मित्रता करेंगे, उससे शत्रुता निर्मित हो जाएगी। और मित्रता बनाने के लिए उत्सुक आदमी अनेक तरह की शत्रुताओं के चारों तरफ अड्डे खड़े कर देगा। सच तो यह है कि आप मित्रता बनाना ही क्यों चाहते हैं? अगर गहरे में खोजें, तो आप मित्रता इसलिए बनाना चाहते हैं कि आप शत्रुता से भयभीत हैं। वह भी इंतजाम है। मित्र होने चाहिए ।
"ओशो ताओ उपनिषद"
The man is very skilled. We do not boast, self-respect! Others do pride. So there must be a self-respect. Otherwise, what will be the worm? Now he says, anger is not to be done to me and pride is to be saved. And the thread of anger with pride is just the part connected; He cannot separate from pride. Far from self-respect, whatever will save the self, its anger will also be saved. Lose self, be selfless - no selflessness, no selflessness - lack of selfishness, lack of self only leads to anger
is. Our conditions are such that we want to save one end of a pole and remove the other. In great difficulty
Life passes; Nothing goes away. And we never see this trap that everything is connected within. Now a man says that I do not want the enemy at all; I want to befriend everyone. But remember, enmity arises only in forming friendships. Well, anger and pride comes in mind, but enmity is created only in making friendships, it does not come in mind. The man who is eager to befriend will make enmity. Because the way to make friendship, that is the process, the by-product of the same…. For example, someone is by-product in a factory. Now if you burn wood, coal will survive in the house, ash will survive in the house. You will say, we want to light a fire, there is a great need to burn fuel, but the ash is not left in the house. That ash is a by-product, she will survive. Whoever befriends, will create enmity. And a man eager to make friends will set up bases around a variety of hostilities. The truth is, why do you want to be friends? If you search deep, you want to befriend because you are afraid of hostility. That too is arranged. Must be friends
"Osho Tao Upanishad"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें