लाओत्से कहता है, जो जानते हैं,वे लोगों को ज्ञान से बचाते हैं।
ज्ञान से बचाने का एक तो कारण यह है कि ज्ञान उधार होता है। लाओत्से उस ज्ञान की बात नहीं कह रहा है, जो भीतर, अंत:स्फूर्त
होता है। अगर ठीक से समझें, तो दोनों में बड़े फर्क हैं। जो भीतर से जन्मता है, जो स्वयं का होता है, वह नालेज कम और नोइंग
ज्यादा होता है। ज्ञान कम और जानना ज्यादा होता है। असल में, जो ज्ञान भीतर आविभूर्त होता है, वह ज्ञान की तरह संग्रहीत नहीं
होता, जानने की क्षमता की तरह विकसित होता है। जो ज्ञान बाहर से इकट्ठा होता है, वह संग्रह की तरह इकट्ठा होता है,भीतर
इकट्ठा होता जाता है। आप अलग होते हैं, ज्ञान का ढेर अलग लगता जाता है। आप ज्ञान के ढेर के बाहर होते हैं। वह आपको छूता
भी नहीं। आप अलग खड़े रहते हैं।
जो भीतर से जन्मता है, वह ज्ञान संग्रह की तरह इकट्ठा नहीं होता, वह आपकी चेतना की तरह विकसित होता है। इट इज़ मोर
नोइंग लेस नालेज। वह आपकी चेतना बन जाती है। ऐसा नहीं कि आप ज्यादा जानते हैं; आपके पास ज्यादा जानने की क्षमता है।
नानक या कबीर या बुद्ध या लाओत्से ज्यादा नहीं जानते हैं। और आप में से कोई भी उनको परीक्षा में परास्त कर सकता है। उनकी जानकारी बहुत नहीं है, लेकिन जानने की क्षमता बहुत है। अगर एक ही चीज पर आप और वे, दोनों जानने में लगें, तो वह इतना जान लेंगे, जितना आप न जान सकोगे। अगर एक पत्थर बीच में रख दिया जाए , तो वे उस पत्थर से परमात्मा को भी जान लेंगे। आप पत्थर को भी न जान पाओगे। हो सकता है, पत्थर के संबंध में जानकारी आपकी ज्यादा हो, लेकिन पत्थर में गहराई आपकी ज्यादा नहीं हो सकती। जानकारी सुपरफिशियल होती है, धरातल पर होती है, और जानना अंत:स्पर्शी होता है।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Laotse says, those who know save people from knowledge.
One reason to protect from knowledge is that knowledge is borrowed. Lao Tzu is not saying the knowledge that is inside, the inner
it happens. If understood properly, there are big differences between the two. One who is born from within, who is his own, he is knowledge less and noing
Is greater. Knowledge is less and knowledge is more. Actually, the knowledge which is discovered inside, is not stored as knowledge
Happens, develops like the ability to know. The knowledge that is gathered from outside, is gathered like a collection, inside
Gets collected You are different, the pile of knowledge seems different. You are outside the heap of knowledge. He touches you
Not even. You stand apart.
One who is born from within does not gather like a collection of knowledge, it develops like your consciousness. It is more
Knowing Les Knowledge. It becomes your consciousness. Not that you know much; You have the ability to know more.
Nanak or Kabir or Buddha or Laotsse do not know much. And any of you can defeat them in the exam. They do not have a lot of information, but there is a lot of ability to know. If both you and they start to know the same thing, then they will know as much as you would not know. If a stone is placed in the middle, then they will know the divine with that stone. You will not even know the stone. Maybe, you have more information about the stone, but the depth in the stone may not be much. Information is superficial, on the surface, and knowing is intrinsic.
"Osho Tao Upanishad"
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