च्वांगत्से कहता है, जानना चाहो, तो जानकारी से सावधान। क्योंकि जिसे जानकारी मिल जाती है, वह जानने से वंचित रह जाता है।
क्यों ? क्योंकि जानकारी होती है उधार, किसी और ने जाना। कोई रामकृष्ण कहते हैं कि परमात्मा है, कोई रमण कहता है की परमात्मा
है। हमने सुना, माना और हमने भी कहना शुरू किया की परमात्मा है। यह जानकारी है। हमने जाना नहीं है। किसी और ने जाना है;
उधार है।
और ध्मान रहे, ज्ञान उधार नहीं हो सकता। इस जगत में सब चीजें उधार मिल सकती हैं। एक चीज उधार नहीं मिलती, वह ज्ञान है।
इस जगत में सभी चीजें दूसरों से पाई जा सकती हैं, एक चीज दूसरों से नहीं पाई जा सकती, वह ज्ञान है। जानने में और जानकारी में
यही फर्क है। जानना होता है स्वयं का और जानकारी होती है किसी और से। कोई और कह देता है। कबीर को सुन लेता है कोई।
नानक को सुन लेता है कोई। और जो सुना, वह जानकारी बन जाती है। लेकिन जानकारी से ज्ञान का भ्रम पैदा होता है। अगर हम
पुनरुक्त करते जाएं , जानकारी को बार-बार दोहराते जाएं, दोहराते जाएं , तो हम यह भूल ही जाते हैं कि यह हमारा जाना हुआ नहीं है।
बार-बार दोहराने से लगता है कि मैं जानता हूं ।
एक बात बार-बार सुन कर कठिनाई हो जाती है। और और दूसरे से सुन कर नहीं, जब आप खुद ही दोहराते रहते हैं। बचपन से दोहराते रहते हैं, ईश्वर है, ईश्वर है, ईश्वर है। खून के साथ मिल जाती है बात। हड्डियों में समा जाती है। मांस-पेशियों में घुस जाती है। रोएं -रोएं से बोलने लगती है। होश नहीं था, तभी से पता चलता है की ईश्वर है। फिर दोहराते-दोहराते-दोहराते-दोहराते याद ही नहीं रह
जाता कि कोई क्षण था जब मैंने सवाल उठाया हो की ईश्वर है? लगता है, सदा से मुझे मालूम है तक ईश्वर है।
अब यह जानकारी आत्मघाती है। अब जब हमें पता ही है कि ईश्वर है, तो खोजने क्यों जाएं ? जो मालूम ही है, उसकी तलाश क्यों
करें ? जो पता ही है, उसके लिए श्रम क्यों उठाएँ ? इसलिए पूरा मुल्क अध्यात्म की चर्चा करते-करते गैर-आध्यात्मिक हो गया। अगर इस
मुल्क को कभी धार्मिक बनाना हो, तो एकबारगी समस्त धर्मशास्त्रों से छुटकारा पा लेना पड़े। एक बार जानकारी से मुक्ति हो, तो
शायद हम फिर तलाश पर निकल सकें, खोज पर निकल सकें।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Chwangtse says, beware of information if you want to know. Because whoever gets the information, is deprived of knowing.
Why? Because information is borrowed, someone else knows it. Some Ramakrishna says that there is God, some Ramana says that God is
is. We heard, believed and we also started saying that there is God. here is the information. We have not known. Someone else has known;
It is borrowed.
And be honest, knowledge cannot be borrowed. Everything can be borrowed in this world. One thing is not borrowed, it is knowledge.
In this world all things can be found from others, one thing cannot be found from others, that is knowledge. Knowing and knowing
This is the difference. You have to know more about yourself than anyone else. Someone else says that. Someone listens to Kabir.
Someone listens to Nanak. And what is heard becomes information. But knowledge creates confusion of knowledge. If we
Keep repeating, repeating the information again and again, then we forget that it is not known to us.
Repeatedly, I think I know.
It becomes difficult to hear one thing again and again. And not by listening to others, when you keep repeating yourself. They keep repeating since childhood, there is God, there is God, there is God. It mixes with blood. Bodies into bones. The muscles get entangled. Start crying Was not conscious, since then it is revealed that there is God. Then there is no memory of repeating - repeating - repeating - repeating.
It is known that there was a moment when I raised the question that is God? It always seems that I know God.
Now this information is suicidal. Now that we know there is God, why go there? Find out what you know
Do? Why take labor for what is known? Therefore, the whole country became non-spiritual while discussing spirituality. If this
If the country ever needs to be made religious, one has to get rid of all the scriptures. Once free from information, then
Maybe we can go out on search again, go out on search.
"Osho Tao Upanishad"
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