Snehdeep Osho Vision

जो जानते हैं, वे लोगों को कोरे ज्ञान से मुक्त रखने का प्रयास करते हैं।
साधारणतः हम सोेचते हैं कि आज्ञान बुरा है, अशुभ है; और ज्ञान अपने आप में शुभ है। लाओत्से ऐसा नहीं सोेचता। न ही उपनिषद के ऋषि ऐसा सोेचते हैं। और न ही पृथ्वी पर जिन लोगों ने भी परम ज्ञान को जाना है, उनकी ऐसी धारणा है। उपनिषदों में एक सूत्र है कि अज्ञानी तो अंधकार में भटक ही जाते हैं, ज्ञानी महा अंधकार में भटक जाते हैं।
अकेला जान लेना न जानने से भी खतरनाक है। अज्ञानी विनम्र होता है। उसे कुछ पता नहीं है। और जिसे कुछ पता नहीं है, उसे
अहंकार को निर्मित करने का आधार नहीं होता। उसे यह भ्रम भी नहीं होता कि मैं जानता हूं। इसलिए मैं को मजबूत करने की
सुविधा भी नहीं होती। समझ लेना जरूरी है की धन भी अहंकार को उतना मजबूत नहीं करता, पद भी नहीं करता, जितना ज्ञान करता
है। यह ख्याल कि मैं जानता हूं, जितने दंभ से, जितनी ईगो से आदमी को भर जाता है, उतनी कोई और चीज नहीं भरती है।
इसलिए पंडितों से ज्यादा अहंकारी ‍व्यक्ति खोजना कठिन है।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Those who know, try to keep people free from blank knowledge.
Ordinarily we think that ignorance is bad, inauspicious;  And knowledge itself is auspicious.  Lao Tzu does not think so.  Nor do the sages of the Upanishads think so.  Nor do people on earth who have known the ultimate knowledge have such a belief.  There is a formula in the Upanishads that the ignorant go astray in the darkness, the wise man wanders into the darkness.
Lying alone is dangerous than not knowing.  The ignorant is polite.  He does not know anything.  And who doesn't know anything
There is no basis to create ego.  He does not even have the illusion that I know.  So i need to strengthen
There is no facility.  It is important to understand that wealth also does not strengthen the ego, it does not even rank, as knowledge does.is.
The idea that I know, as much as ego, fills a man with ego, nothing else fills it.
Therefore it is difficult to find an egoistic person more than the pundits.
"Osho Tao Upanishad"


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