Snehdeep Osho Vision

लाओत्से कहता है, जो ज्ञानी हैं, वे कहते हैं, शरीर तो भरा-पूरा हो, पुष्ट हो, मन खाली हो। मन ऐसा हो, जैसे है ही नहीं। और लाओत्से 
कहता है, मन के खाली होने का अर्थ है, अ-मन हो, नो माइंड हो, जैसे है ही नहीं। जैसे मन की कोई बात ही नहीं है भीतर। उस खाली 
मन में ही जीवन की परम कला का आविर्भाव होता है और जीवन के परम दर्शन होने शुरू होते हैं।
लाओत्से कहता है कि हड्डियां हों मजबूत, संकल्प-शक्ति बिलकुल क्षीण हो, हो ही नहीं। ‍क्यों ? ‍क्योंकि मनुष्य के सामने दो चीजों के बीच चुनाव है: या तो संकल्प या समर्पण । जो संकल्प करेगा, उसका अहंकार मजबूत होगा। जो समर्पण करेगा, उसका अहंकार गलेगा और मिटेगा। जो संकल्प के रास्ते से चलेगा, वह अपने पर पहुंचेगा। और जो समर्पण के रास्ते से चलेगा, वह परमात्मा पर पहुंचता है। परमात्मा तक पहुंचना हो, तो छोड़ देना पड़ेगा अपने को। और स्वयं के मैं को मजबूत करना हो, तो फिर पकड़ लेना पड़ेगा अपने को।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Lao Tzu says, those who are knowledgeable, they say, the body is full, full, athletic, mind is empty.  The mind should be like that.  And laotse
 It is said that the mind is empty, be no-mind, no mind, like it is not there.  As if there is no question of mind inside. That empty
The ultimate art of life emerges in the mind and the ultimate philosophy of life begins.
Lao Tzu says that bones should be strong, determination and strength are totally impaired.  Why?  Because man has to choose between two things: either resolve or surrender.  The person who resolves will have strong ego.  Whoever surrenders, his ego will be embraced and lost.  The one who walks through the path of will reach his own.  And one who walks through the path of surrender reaches the divine.  If you want to reach God, you have to give up yourself.  And if I want to strengthen myself, then I have to catch myself.
 "Osho Tao Upanishad"

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