लाओत्से यह कह रहा है कि एक आदमी धन कमा सकता है, तो कमाएगा। और एक आदमी गंवा सकता है, तो गंवाएगा। और एक
आदमी भीख मांग सकता है, तो भीख मांगेगा। लेकिन भीख मांगने वाला महल बनाने वाले से नीेचा नहीं होगा, क्योंकि महल बनाने
को हम कोई पद-मर्यादा नहीं देते। हम कहते हैं, यह उस आदमी का स्वभाव है की वह बिना महल बनाए नहीं रह सकता, तो वह
बनाता है। यह इस आदमी का स्वभाव है की इसके हाथ में पैसा हो तो बिना लूटाए नहीं रह सकता। यह इसका स्वभाव है। हम कोई
पद-मर्यादा नहीं बनाते, हम स्वभाव को स्वीकार करते हैं। और हम हर तरह के स्वभाव को स्वीकार करते हैं। असल में, साधुता का जो
परम लक्षण है, वह सब तरह की स्वीकृति, हर तरह के स्वभाव की स्वीकृति है।
और अगर ऐसी संभावना हो सके की हम सब तरह के स्वभाव को स्वीकार करें, तो लाओत्से कहता है, फिर कोई विग्रह नहीं है, फिर
कोई संताप नहीं, कोई चिंता नहीं, कोई पीड़ा नहीं, कोई कलह नहीं है।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Lao Tzu is saying that if a man can earn money, he will earn. And if a man loses, he loses. And a If a man can beg, he will beg. But the beggar will not be let down by the builder of the palace, because the palace builder We do not give any dignity to We say, it is the man's nature that he cannot live without a palace, so he makes. It is the nature of this man that if he has money in his hands, he cannot remain without being robbed. This is its nature. We someone
We do not make dignity, we accept the nature. And we accept all forms of nature. Actually, the saintly .The ultimate characteristic is all kinds of acceptance, acceptance of all forms.
And if there is a possibility that we accept all forms of nature, then Lao Tzu says, then there is no Deity, then No sorrow, no worry, no pain, no bickering.
"Osho Tao Upanishad"
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