ध्यान रहे, दुःख भी तभी दुःख मालूम पड़ता है, जब हम अस्वीकार करते हैं। दुःख का जो दंश है, वह दुःख में नहीं, हमारी अस्वीकृति में है। दुःख में पीड़ा नहीं है, पीड़ा हमारे अस्वीकार्य में है कि ऐसा नहीं होना चाहिए था,और हुआ, इसलिए पीड़ा है। अगर मैं ऐसा जानूं की जो हुआ, वैसा ही होता, वैसा ही होना था, वही हो सकता था, तो दुःख का कोई दंश, दुःख की कोई पीड़ा नहीं रह जाती। सुख के छीन जाने में कोई पीड़ा नहीं है। सुख नहीं छीनना चाहिए था, मैं बचा लेता, बचा न पाया , उसमें पीड़ा है। अगर मैं जानूं की सुख आया और गया; जो आता है, वह चला जाता है; अगर मेरे मन में यह खयाल न हो की मैं बचा सकता था, तो पीड़ा का फिर कोई सवाल
नहीं है।
लाओत्से कहता है, वे विमुख नहीं होते हैं। वह जानते हैं की चीजें अपने आप घटित होती हैं।
स्वभाव के विपरीत लड़ कर ही हम परेशान हैं। हम सब लड़ रहे हैं, स्वभाव से लड़ रहे हैं। शरीर बुढ़ा होगा, हम लड़ेंगे; शरीर रुग्ण
होगा, हम लड़ेंगे। वह सब स्वभाव है। इस जगत में जो भी होता है, वह सब स्वाभाविक है।
ओशो ताओ उपनिषद
Keep in mind, unhappiness can only be seen when we reject it. The sting of sorrow is in our rejection, not in sorrow. There is no suffering in sorrow, suffering is in our unacceptable that it should not have happened, and it happened, so is suffering. If I know that what happened, it would have been the same, it had to happen, it could have happened, then there would have been no sting of sorrow, no pain of sorrow. There is no pain in taking away happiness. Should not have taken away happiness, I would have saved, could not save, it is suffering. If I know that happiness has come and gone; Whatever comes, it is gone; If I do not think that I could have saved, then any question of pain Is not.
Laotse says, they do not divert. They know that things happen on their own.
We are troubled only by fighting contrary to nature. We are all fighting, fighting by nature. The body will grow old, we will fight; Body sick Will, we will fight. That is all nature. Whatever happens in this world is natural.
Osho Tao Upanishad
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें