Snehdeep Osho Vision

लाओत्से कहता है, न तो तुम कर्ता बन सकते हो, न तुम त्यागी बन सकते हो। तुम सिर्फ इतने ही सत्य से अगर परिचित हो जाओ
की वस्तुएं अपने से घटीत होती हैं, किसी की भी उनके घटित होने के लिए आवश्यकता नहीं है। वस्तुओं का  स्वभाव घटितत होना है, 
ऐसी प्रतीति हो जाए । तो लाओत्से कहता है, ज्ञानी उसे कहता हूं मैं, सभी बातें अपने आप घटीत होती हैं, ऐसा जो जानता है। परंतु
उनसे विमुख नहीं होते। ‍क्योंकि जब अपने से ही घटीत होती हैं, तो ज्ञानी उनसे विमुख नहीं होते। विमुख होने का सार तो तभी है, 
त्याग करने का सार तो तभी है, वैराग्य का सार तो तभी है, जब मैं उन्हें घटित कर रहा हूं।
समझें। भूख लगती है, तो ज्ञानी ज्यादा खा लेता है। सोेचता है, खा रहा हूं। ज्यादा तो वह भी नहीं खा सकता। अज्ञानी सोेचता है, मैं भोजन कर रहा हूं। एक दूसरा  अज्ञानी है, जो सोेच सकता है की मैं उपवास  कर रहा हूं। लाओत्से दोनों को अज्ञानी कहेगा। ‍क्योंकि दोनों ही अपने को कर्ता मानते हैं।
ओशो ताओ उपनिषद 
Lao Tzu says, neither can you become a doer, nor can you become a renunciate.  If you only get acquainted with this truth Things are reduced by themselves, no one is needed for them to happen.  The nature of things is to happen, May this happen.  So Lao Tzu says, the wise man says to him, all things happen automatically, which is known. but They are not alienated from them.  Because when they are reduced by themselves, the learned are not alienated from them. The essence of being alienated is that, The essence of renunciation is there, the essence of detachment is only when I am making them happen.
Understand.  If the hunger is felt, then the knower eats more.  Thinks, eating.  He cannot eat much. The ignorant thinks, I am eating. Another is ignorant, who may think that I am fasting.  Lao Tzu would call both of them ignorant.  Because both consider themselves to be doers.
 Osho Tao Upanishad


 

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