If we see life in the language of a quarrel, a conflict, a struggle, a struggle, then gradually there will be conflict on all the layers of life and all relations. Then the person survives alone and the whole world stands opposite him like an enemy. The whole world
In competition, and I am left alone.
Lao Tzu said that things are as they are, let them be. Accept that they are partners. Do not remove the opposite. Whatever seems to be the enemy, let it be settled. Let it also remain, because the net of nature is deep, it is mysterious. Everything is connected within. You don't know, what would you do if you remove one.
"Osho: Tao Upanishad"
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अगर हम जीवन को एक कलह, एक कांफ्लिक्ट, एक संघर्ष, एक स्ट्रगल की भाषा में देखते हैं, तो धीरे-धीरे जीवन के सब पर्तों पर और सब सबंधों में संघर्ष हो जाएगा। तब व्यक्ति अकेला बचता है और सारा जगत उसके विपरीत शत्रु की तरह खड़ा है। सारा जगत
प्रतिस्पर्धा में, और अकेला मैं बचा हूं।
लाओत्से कहता था कि चीजें जैसी हैं, उन्हें वैसा रहने दो। स्वीकार करो, की वे साथी हैं। विपरीत को भी मत हटाओ। जो बिलकुल दुश्मन मालूम पड़ता है, उसे भी बसा रहने दो। उसे भी बसा रहने दो, क्योंकि प्रकृति का जाल गहन है, यह रहस्यपूर्ण है। भीतर सब चीजें जुड़ी हैं। तुम्हें पता नहीं, तुम एक हटा कर क्या उपद्रव कर लोगे।
"ओशो : ताओ उपनिषद"
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