शिव के लिए प्रेम महा द्वार है। और उनके लिए कामवासना निंदनीय नहीं है। उनके लिए काम बीज है और प्रेम उसका फूल
है। और अगर तुम बीज की निंदा करते हो तो फूल की भी निंदा अपने आप हो जाती है। काम प्रेम बन सकता है। और अगर
वह कभी प्रेम नहीं बनता है तो वह पंगु हो जाता है। पंगुता की निंदा करो, काम की नहीं । प्रेम को खिलना चाहिए। उसको प्रेम
बनना चाहिए। और अगर यह नहीं होता है तो यह काम दोष नहीं है, यह दोष तुम्हारा है।
काम को काम नहीं रहना है। यही तंत्र की शिक्षा है। उसे प्रेम में रूपांतरित होना ही चाहिए। और प्रेम को भी प्रेम ही नही रहना
है। उसे प्रकाश में ध्यान के अनुभव में अंतिम, परम रहस्यवादी शिखर में रूपांतरित होना चाहिए। प्रेम को रूपांतरित कैसे किया जाए?
कृत्य हो जाओ और कर्ता को भूल जाओ। प्रेम करते हुए प्रेम महज प्रेम हो जाओ। तब यह तुम्हारा प्रेम मेरा प्रेम या किसी अन्य का प्रेम नहीं है। तब यह मात्रप्रेम है, जब कि तुम नहीं हो, जब कि तुम परम स्त्रोत या धारा के हाथ में हो। तब कि तुम प्रेम में हो तुम प्रेम में नहीं हो प्रेम न ही तुम्हें आत्मसात कर लिया है। तुम तो अंतर्ध्यान हो गए हो। मात्र प्रवाहमान ऊर्जा बनकर रह गए हो।
"ओशो विज्ञान भैरव तंत्र "
Love for Shiva is the great gate. And sex is not condemnable for them. Work is the seed for them and love is its flower
is. And if you condemn the seed, then the flower also gets condemned automatically. Work can become love. and if
If he never becomes love then he becomes paralyzed. Condemn lameness, no use. Love should blossom Love him
Should be made. And if it is not, then this work is not a defect, this defect is yours.
Work does not have to work. This is the education of Tantra. He must transform into love. And love is also not love
is. He must transform into the ultimate, ultimate mystic peak in the experience of meditation in light. How to convert love?
Get the act done and forget the doer. Love is just love while making love. Then this love of yours is not my love or the love of any other. Then it is just love, when you are not, while you are in the hand of the ultimate source or stream. Then that you are in love, you are not in love, nor has love assimilated you. You have disappeared. You have become a mere flowing energy.
"Osho Vigyan Bhairava Tantra"
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