तुम एक महान यंत्रहो। और अच्छा है कि तुम्हें उसका बोध नहीं है। अन्यथा तुम पागल हो जाओगे।
शरीर ऐसा विशाल यंत्रहै कि वैज्ञानिक कहते है, अगर हमारे शरीर के समांतर एक कारखाना निर्मित करना पड़े तो उसे चार वर्ग मील जमीन की जरूरत होगी। और उसका शोरगुल इतना भारी होगा की उससे सौ वर्ग मील भूमि प्रभावित होगी।
शरीर एक विशाल यांत्रिक रचना है—विशालतम। उसमे लाखों-लाखों कोशिकांए है, और प्रत्येक कोशिका जीवित है। तुम सात करोड़ कोशिकाओं के एक विशाल नगर में हो तुम्हारे भीतर सात करोड़ नागरिक बसते है; और सारा नगर बहुत शांति और व्यवस्था से चल रहा है। प्रतिक्षण यंत्र-रचना काम कर रही है। और वह बहुत जटिल है।
कई स्थलों पर इन विधियों का तुम्हारे शरीर और मन की एक यंत्ररचना के साथ वास्ता पड़ेगा। लेकिन याद रखो,कि सदा ही जोर उन बिंदुओं पर रहेगा जहां तुम अचानक यंत्ररचना के अंग नहीं रह जातेहो। जब एकाएक तुम यंत्ररचना के अंग नहीं रहे तो यही क्षण है जब तुम गियर बदलते हो।
शिव कहते है, जब श्वास नीचे से ऊपर की और मुड़ती है, और फिर जब श्वास ऊपर से नीचे की और मुड़ती है। इन दो मोड़ों के
द्वारा उपलब्ध हो जाओ। मोड़ पर सावधान हो जाओ, सजग हो जाओ। लेकिन यह मोड़ बहुत सूक्ष्म है और उसके लिए बहुत सूक्ष्म निरीक्षण की जरूरत पड़ेगी। हमारी निरीक्षण की क्षमता नहीं के बराबर है; हम कुछ देख ही नहीं सकते। अगर मैं तुम्हें कहूं कि इस फूल को देखो—इस फूल को जो तुम्हें मैं देता हूं। तो तुम उसे नहीं देख पाओगे।
निरीक्षण का अर्थ होता है किसी शब्द या शाब्दिकता के साथ, भीतर की बदलाहट के साथ न रहकर मात्र फूल के साथ रहना।
अगर तुम फूल के साथ ऐसे तीन मिनट रह जाओ, जिसमे मन कोई गति न करे, तो श्रेयस घट जाएगा। तुम उपलब्ध हो
जाओगे।
जापान में एक खास तरह का ध्यान चलता है जिसे वे झा झेन कहते है। झा झेन शब्द का जापानी में अर्थ होता है, मात्र बैठना और कुछ भी नहीं करना। कुछ भी हलचल नहीं करनी है, मूर्ति की तरह वर्षों बैठे रहना है मृतवत अचल। लेकिन मूर्ति की तरह वर्षों बैठने की जरूरत क्या है? अगर तुम अपने श्वास के घुमाव को अचल मन से देख सको तो तुम प्रवेश पा जाओगे? तुम स्वयं में प्रवेश पा जाओगे। अंतर के भी पार प्रवेश पा जाओगे। लेकिन ये मोड़ इतने महत्वपूर्ण क्यों है?
वे महत्वपूर्ण है, क्योंकि मोड़ पर दूसरी दिशा में घूमने के लिए श्वास तुम्हें छोड़ देती है। जब वह भीतर आ रही थी तो तुम्हारे साथ थी फिर जब वह बाहर जाएगी तो तुम्हारे साथ होगा। लेकिन घुमाव बिंदु पर न वह तुम्हारे साथ है और न तुम उसके साथ हो। उस क्षण में श्वास तुमसे भिन्न है और तुम उससे भिन्न हो। अगर श्वास क्रिया ही जीवन है तो तब तुम मतृ हो।
अगर श्वास क्रिया तुम्हारा मन है तो उस क्षण तुम अ-मन हो।
"ओशो विज्ञान भैरव तंत्र"
You are a great instrument. And it's good that you don't understand it. Otherwise you will go mad.
The body is such a huge device that scientists say, if we have to build a factory parallel to our body, it will need four square miles of land. And its noise will be so heavy that it will affect hundred square miles of land.
The body is a vast mechanical design - the largest. It has millions of cells, and every cell is alive. You are in a huge city of seven crore cells, inside you seven crore citizens live; And the whole city is running in peace and order. The training machine is working. And that is very complicated.
In many places, these methods will have to deal with the composition of your body and mind. But remember, always the emphasis will be on those points where you are suddenly no longer part of the machine. When you are no longer a part of machine creation, this is the moment when you change gears.
Shiva says when the breath turns from the top to the bottom, and then when the breath turns from the top to the bottom. Of these two turns
Be available by Be careful on the turn, be alert. But this turn is very subtle and will require very subtle inspection. Our inspection capability is negligible; We cannot see anything. If I tell you, look at this flower - this flower that I give you. So you will not be able to see it.
Observation means to live with a flower, rather than with a word or a literal, but with the inner revenge.
If you stay with the flower for three minutes in which the mind does not move, Shreyas will decrease. You are available
Will go There is a special kind of attention that they call Jha Zhen in Japan. The word Jha Zhen means in Japanese, just to sit and do nothing. Do not stir anything, sitting for years like an idol is dead immovable. But what is the need to sit for years like a statue? If you can see the rotation of your breath with a fixed mind, you will be able to enter. You will be able to enter yourself. You will be able to enter beyond the gap. But why is this turn so important?
They are important, because the breath leaves you to move in the other direction at the turn. She was with you when she was coming in. Then when she goes out she will be with you. But at the point of rotation, he is neither with you nor with you. In that moment the breath is different from you and you are different from it. If breathing is life, then you are a dance.
If breathing is your mind then at that moment you are no-mind.
"Osho Vigyan Bhairava Tantra"
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