पाँचवींविधि साक्षित्व को प्राप्त करने की विधि है।
भृकुटियों के बीच अवधान को स्थिर कर विचार को मन के सामने करो।‘’
अब अपनेविचार को देखो, विचार का साक्षातकार करो। फिर सहस्त्रार तक रूप को श्वास तत्व से प्राण से भरने दो। वहां वह प्रकाश की तरह बरसेगा।‘’
जब अवधान भृकुटियों के बीच शिव नेत्र केंद्र पर स्थिर होता है। तब दो चीजें घटित होती है।
और यही चीज दो ढंग- से हो सकती है। एक, तुम साक्षी हो जाओ तो तुम तीसरी आँख पर थिर हो जाते हो। साक्षी हो जाओ, जो
भी हो रहा हो उसके साक्षी हो जाओ। तुम बीमार हो, शरीर में पीड़ा है, तुम को दुःख और संताप है, जो भी हो, तुम उसके साक्षी
रहो, जो भी हो, उससे तादात्म्य न करो। बस साक्षी रहो—दर्शक भर । और यदि साक्षित्व संभव हो जाए, तो तुम तीसरे नेत्र पर स्थिर हो जाओगे।
इससे उलटा भी हो सकता है। यदि तुम तीसरी आँख पर स्थिर हो जाओ, तो साक्षी हो जाओगे।। ये दोनों एक ही बात है।
इसलिए पहली बात, तीसरी आँख पर केंद्रित होते ही साक्षी आत्मा का उदय होगा। अब तुम अपनेविचार- का सामना कर
सकते हो। और दूसरी बात,और अब तुम श्वास- प्रश्वास व की सूक्ष्म और कोमल तरंग- को भी अनुभव कर सकते हो। अब तुम
श्वसन के रूप को ही नहीं, उसके तत्व को , सार को, प्राण को भी समझ सकते हो।
"ओशो बिज्ञान भैरव तंत्र"
The fifth method is the method of attaining Sakshatva.
Set the thought in front of the mind by fixing the attention between the beggars. "
Now look at your thought, interview the idea. Then let the form fill up with life with breath element till Sahastrar. There it will rain like light. "
When Shiva is fixed on the eye center between the attentive bhrakutis. Then two things happen.
And the same thing can happen in two ways. One, if you become a witness, then you stagnate on the third eye. Witness, who
Also be witness to that happening. You are sick, you have pain in your body, you have grief and sorrow, whatever you are, you witness it
Stay whatever you are, don't identify with them. Just be a witness - all the audience. And if reality becomes possible, then you will be fixed on the third eye.
This can also reverse. If you settle on the third eye, you will become a witness. These two are the same thing.
So first thing, the witnessing soul will rise as soon as it is focused on the third eye. Now you face your thoughts
Can be And secondly, and now you can also feel the breath and the subtle and gentle waves of breath. now you
You can understand not only the form of respiration, but also its essence, essence, and life.
"Osho Biyan Bhairava Tantra"
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