दूसरे पर ध्यान दें। जब लाओत्से कहता है कि सर्वमंगल के हेतु जीएं, लिविंग फॉर अदर्स, जब लाओत्से कहता है, तो उसका मतलब यह है की ध्यान दूसरे पर दें। और जैसे ही आप दूसरे पर ध्यान देते हैं, आपकी जिंदगी में क्रांति शुरू हो जाती है। क्योंकि तब आप हंस सकते हैं, दूसरे की नासमझियां आपको दिखाई पड़नी शुरू हो जाती हैं। क्योंकि आपके ध्यान देते ही से आप देखते हैं, उसका अहंकार कैसा प्रज्वलित होकर जलने लगा। यही कल तक आपके साथ हो रहा था। लेकिन अब आप दया कर सकते हैं।
दूसरे पर ध्यान देते ही आपको पता चलता है कि जितना ही आप गहरा ध्यान देते हैं दूसरे पर, उतने ही आप मिट गए होते हैं। और
जब भीतर बिलकुल शून्य होता है–जैसे ही ध्यान दूसरे पर गया, भीतर शून्य हो जाता है–तब आपके जीवन में पहली दफ़ा पता चलता है की गैरतनाव की स्थिति क्या है।
फ्रायड से किसी ने पूछा, जब वह काफी बूढ़ा हो गया, उससे किसी ने पूछा की तुम इतने लोगों की मानसिक बीमारियों का अध्यन करते हो, सुबह से सांझ तक इतने पागलों से तुम्हारा रिस्ता पड़ता है, तुम्हारा दिमाग खराब नहीं हो गया ?
फ्रायड ने कहा, अपने पर ध्यान देने की सुविधा ही न मिली । अपने पर ध्यान दिए बिना पागल होना बहुत मुश्किल है। सुबह से लग जाता हूं दूसरे की चिंता में, रात दूसरे की चिंता करते सो जाता हूं। अपने पर ध्यान देने का अवसर न मिला ।
इसलिए बड़े वैज्ञानिक अक्सर शांत हो जाते हैं; क्योंकि सारा ध्यान देते हैं किसी और चीज पर । प्रयोगशाला में किसी परखनली पर,
टेस्ट ट्यूब पर उनका सारा ध्यान लगा रहता है। आइंस्टीन के साथ दिक्कत थी। आइंस्टीन को अपना स्मरण नहीं रह जाता था। तो
कभी-कभी वह छह-छह घंटे अपने बाथरूम में टब में बैठा रह जाता था, छह-छह घंटे ! पत्नी दस-पच्चीसस दफ़ा आकर दस्तक दे जाती। लेकिन उसकी भी हिम्मत न पड़ती जोर से दस्तक देने की कि पता नहीं, वह किस खयाल में खोया हो!
डाक्टर राम मनोहर लोहिया मिलने गए थे। तो उनकी पत्नी ने लोहिया को कहा की आपको मैं समय तो दे देती हूं; लेकिन इस समय
पर मिलना हो सकेगा, नहीं हो सकेगा, यह कुछ नहीं कहा जा सकता। पर लोहिया ने कहा की मेरे पास ज्यादा समय नहीं है,मैं
मुश्किल से घंटे भर का समय निकाल कर आऊंगा। अगर मिलना न हो सका, तो बड़ी अड़चन होगी। उसकी पत्नी ने कहा, हम कोशिश करेंगे; लेकिन आइंस्टीन भरोसे के नहीं हैं।
और वही हुआ। जब लोहिया पहुंचे, तो पत्नी ने कहा, आप बैठें, अब मैं कोशिश करती हूं। दरवाजे पर दस्तक दे रही हूं, वे अपने
बाथरूम में चले गए हैं। कब निकालेंगे, कहना मुश्किल है। वे पांच घंटे बाद ही निकले। पूछा लोहिया ने कि इतनी देर आप करते क्या थे ? आइंस्टीन ने कहा, एक सवाल में उलझ गया।
तो सवाल पर ध्यान अगर बहुत चला जाए , तो आइंस्टीन भी मिट गए , वह बाथरूम भी मिट गया। वे कहां हैं, यह बात भी समाप्त हो गई। ध्यान किसी भी चीज पर चला जाए , तो यहां भीतर अहंकार तत्काल कट जाता है। इसलिए बड़े वैज्ञानिक अक्सर निरहंकारी हो जाते हैं, बड़े चित्रकार निरहंकारी हो जाते हैं, बड़े नर्तक निरहंकारी हो जाते हैं। और बड़े त्यागी कभी-कभी नहीं हो पाते; क्योंकि त्यागी पूरा ध्यान अपने पर देता है। यह न खाऊं , यह न पीऊं , यह न पहनूं, यह पहनू इस जगह सोऊं , उस जगह उठू कहने को वह त्यागी होता है; लेकिन टू मच ईगो कांशस पूरे वक्त–मैं यह करूं और न करूं–सारा ध्यान मैं पर होता है।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Pay attention to the other. When Lao Tzu says live for all things, Living for others, when Lao Tzu says, it means to pay attention to others. And as soon as you focus on the other, a revolution starts in your life. Because then you can laugh, the other's senselessness starts appearing to you. Because from your attention, you see how his ego started burning. This was happening with you till yesterday. But now you can have mercy.
As soon as you pay attention to the other, you realize that the more you pay deep attention to the other, the more you are lost. And
When there is absolutely zero within - as soon as the attention has gone to the other, the inner becomes zero - then for the first time in your life you know what is the state of non-stress.
Someone asked Freud, when he got very old, someone asked him that you study the mental illnesses of so many people, from morning till dusk, you have so much madness, your mind is not spoiled?
Freud said, there was no facility to focus on himself. It is very difficult to go crazy regardless of yourself. From the morning I start worrying about others, I sleep at night worrying about others. Did not get an opportunity to focus on himself.
That's why big scientists often calm down; Because everyone pays attention to something else. On a test tube in the lab,
His attention is on the test tube. There was a problem with Einstein. Einstein could not remember himself. so
Sometimes he would sit in the tub in his bathroom for six hours, six hours each! The wife would come knocking ten-twenty-five times. But he too does not have the courage to knock loudly that he does not know in which thought he is lost!
Dr. Ram Manohar Lohia went to meet. So his wife told Lohia that I give you time; But this time
But it will not be possible to meet, it cannot be said. But Lohia said that I do not have much time, I
I will come out with hardly an hour. If it is not possible to meet, it will be a big hurdle. His wife said, we will try; But Einstein is not confident.
And the same thing happened. When Lohia arrived, the wife said, "You sit, now I try." Knocking on the door, they
Have gone to the bathroom. It is difficult to say when to withdraw. They left only after five hours. Lohia asked what were you doing for so long? Einstein said, embroiled in a question.
So if the attention on the question goes too much, then Einstein is erased, that bathroom is also erased. Where they are also ended. If the attention goes to anything, then the ego here is immediately cut off. That's why big scientists often become egoless, big painters become egoless, big dancers become egoless. And big solicitors sometimes don't; Because Tyagi pays full attention to himself. Do not eat this, do not drink this, do not wear this, wear this place, sleep at this place, it is deserted to say that you wake up at that place; But Two Much Ego Congress the whole time - I do it or not - all the attention is on me.
"Osho Tao Upanishad"
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