लाओत्से कहता है, यह नित्य है प्रकृति, क्योंकि यह अपने लिए नहीं जीती।
अपने लिए वही नहीं जीएगा, जिसको अपना खयाल ही नहीं है। हम सब अपने लिए ही जीते हैं। उपनिषद में एक बहुत अद्दभुत वचन है कि पति पत्नी को प्रेम नहीं करता; पत्नी के द्वारा अपने को ही प्रेम करता है। बाप बेटे को प्रेम नहीं करता; बेटे के द्वारा अपने को ही प्रेम करता है। माँ बेटे को प्रेम नहीं करती; बेटे के द्वारा अपने को ही प्रेम करती है। उपनिषद का यह वचन कहता है कि हम जब कहते भी हैं कि हम दूसरे को प्रेम करते हैं, तब भी हम केवल उसके माध्यम से अपने को ही प्रेम करते हैं। हम अगर कहते भी हैं कि हम दूसरे के लिए जीते हैं, तो भी वह हमारा कहना वास्तविक नहीं है, उसमें भ्रांति है। क्योंकि जिसके लिए हम कहते हैं कि तुम्हारे लिए जीते हैं, कल हम उसी की हत्या करने को भी तैयार हो सकते हैं।
जब तक अहंकार है, तब तक हम जो भी करेंगे, अहंकार ही उनका मालिक रहेगा। इसे ठीक से समझ लेना जरूरी है। क्योंकि हम बहुत से काम करते हैं यह सोेच कर की इससे अहंकार का कोई संबंध नहीं है। लेकिन हम जो भी करेंगे, जब तक भीतर अहंकार है, वह उससे ही संबंधित होगा। हम विनम्रता भी आरोपित कर सकते हैं अपने ऊपर; वह भी हमारे अहंकार का ही आभूषण बन कर समाप्त हो जाएगी। मैं आपके चरणों में भी गिर सकता हूं, धूल हो सकता हूं चरणों की, लेकिन फिर भी मेरा अहंकार घोषणा करता रहेगा कि मुझसे ज्यादा विनम्र और कोई भी नहीं है। मैं चरणों की धूल हूं ! वह मेरा मैं इस विनम्रता का भी शोषण करेगा और इस विनम्रता से भी मजबूत होगा। अहंकार त्याग भी कर सकता है, सब छोड़ सकता है, लेकिन स्वयं बच जाता है। उसका कोई अंत नहीं होता।
तो जब लाओत्से जैसा व्यक्ति कहता है कि तभी शाश्वत और नित्य जीवन उपलब्ध होगा, जब दूसरों के लिए जीना शरूु हो…। लेकिन
दूसरों के लिए मैं तभी जी सकता हूं, जब मेरा भीतर मैं न रह जाए , या मेरा मैं ही दूसरों के भीतर मुझे दिखाई पड़ने लगे। मैं दोनों
एक ही बात हैं। मेरा मैं ही मुझे सबके भीतर दिखाई पड़ने लगे, तो भी एक ही घटना घट जाती है। या मेरे भीतर मैं शून्य हो जाए ,
तो भी वही घटना घट जाती है।
दूसरे के लिए मैं तभी जी सकता हूं–यह वाक्य मेरा पैराडाक्सिकल मालूम पड़ेगा, लेकिन इसे जोर से मै दोहराना चाहता हूं–दूसरे के लिए मैं तभी जी सकता हूं, जब दूसरा मेरे लिए दूसरा न रह जाए । जब तक दूसरा मेरे लिए दूसरा है, तब तक मैं दूसरे के लिए नहीं जी सकता ।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Lao Tzu says, it is eternal nature, because it does not live for itself.
He will not live for himself, who does not take care of himself. We all live for ourselves. There is a very unique promise in the Upanishads that the husband does not love the wife; He loves himself through his wife. The father does not love the son; He loves himself through the son. The mother does not love the son; She loves herself through the son. The Upanishad verse says that even when we say that we love another, we still love ourselves only through it. Even if we say that we live for the other, even if we say it is not real, there is confusion. Because for whom we say we live for you, tomorrow we can be ready to kill him too.
As long as there is ego, whatever we do, ego will be their owner. It is important to understand it properly. Because we do many things thinking that ego has nothing to do with it. But whatever we do, as long as there is ego within, it will only be related to that. We can also impose humility on ourselves; That too will end up becoming the jewel of our ego. I can fall at your feet as well, dust may be at your feet, but still my ego will declare that there is no one more humble than me. I am the dust of feet! He will also exploit me with this humility and will also be strengthened by this humility. The ego can also renounce, give up everything, but itself survives. There is no end to it. So when a person like Lao Tzu says that eternal and daily life will be available only when living for others. but For others, I can live only when I am no longer within me, or I am visible to me within others. I both
Are the same thing. I can see myself in me, even then only one incident happens. Or if I become void within me, Even then the same event happens.
For the second I can live only - this sentence may seem like my paradox, but I want to repeat it aloud - for the other I can live only when the other is no longer for me. As long as the second is for me, I cannot live for the other.
"Osho Tao Upanishad"
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