भारत ने अगर स्त्रियों को विधवा रखने की व्यवस्था दी और पुरुषों को नहीं दी, तो सिर्फ इसलिए नहीं कि यह व्यवस्था पुरुष
के पक्ष में थी। जहां तक मैं समझ पाता हूं, यह पुरुष का बहुत बड़ा अपमान था, यह स्त्री का गहनतम सम्मान था। क्योंकि इस बात
की सूचना थी कि हम स्त्री पर भरोसा कर सकते हैं कि वह प्रतीऺक्षा कर सकती है। लेकिन पुरुष पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
पुरुष पर भरोसा नहीं किया जा सकता, इसलिए विधुर को रखने के लिए आग्रह नहीं रहा। कोई रहना चाहे, वह उसकी मर्जी ! लेकिन स्त्री पर आग्रह था।
और आग्रह इसलिए था कि उसकी प्रतीऺक्षा में ही उसका वह जो स्त्रैण तत्व है, वह ज्यादा प्रकट होगा। उसे जितना अवसर मिले
निष्क्रिय प्रतीऺक्षा का, उसके भीतर की गहराइयां उतनी ही गहन और गहरी हो जाती हैं। और उसके आतंरिक रहस्य मधुर और सुगंधित हो जाते हैं।
"ओशो ताओ उपनिषद"
If India gave a system to keep women widows and not men, then it is not just because this system is men
Was in favor of As far as I can understand, it was a huge insult to the man, it was the deepest respect for the woman. Because this thing
Was informed that we can trust the woman that she can wait. But man cannot be trusted.
The man cannot be trusted, so there is no insistence to keep the widower. If anyone wants to live, it is his wish! But the woman was insistent.
And the insistence was that the feminine element of his will be revealed more in his wait. As many opportunities as he gets
The passive waiting, the depths within it become equally deep and deep. And its inner secrets become sweet and fragrant.
"Osho Tao Upanishad"
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