Snehdeep Osho Vision

 भरने की तरफ खयाल रखें कि हम प्रतिपल भर रहे हैं। और जितना सजग हो जाएंगे भरने के प्रति, उतना ही धीरे-धीरे पाएंगे कि

भरना बिलकुल फिजूल है। जिंदगी भर भर कर तो भर नहीं पाए ! अनेक जन्मो भर कर नहीं भर पाए ! इधर से भरते हैं, इधर से सब 

निकल जाता है। लेकिन भरने का भ्रम कभी छूटता नहीं, ‍क्योंकि भरने पर हम ध्यान ही नहीं देते।

भरने पर थोड़ा ध्यान रखें। और जो-जो भरा हो अब तक और कुछ भी न भर पाया हो, उससे थोड़े सजग हों। एक चौबीस घंटे के 

लिए कोई राजी हो जाए कि नहीं भरूंगा! वह पाएगा, यह मन सदा से खाली है, इसमें कभी कुछ भरा ही नहीं जा सका है।

तो उलटा मत पूछें। गलत सवाल न उठाएँ। गलत सवाल गलत जवाबो में ले जाते हैं। ठीक सवाल ठीक जवाब में ले जाता है। ठीक सवाल यह है कि हम जो भर रहे हैं, यह कैसे न भरे ?

 और कैसे न भरे का इतना ही मतलब है, थोड़ा सजग हो जाएं। अगर आपको पता चल जाए कि यह ड्रम दोनों तरफ से टूटा है, तो 

फिर आप भरेंगे ? हाथ से बालटी छूट जाएगी; हंसेंगे और घर लौट जाएंगे।

उस शून्य को पाना नहीं है, वह शून्य हमारे भीतर है। चमत्कार तो यह है कि हमने उस शून्य को भी भरा हुआ जैसा बना रखा है।

ऐसा लगता है कि सब भरा हुआ है। इस भ्रम के प्रति जागना पर्याप्त है।


"ओशो ताओ उपनिषद"


Keep in mind that we are filling every moment.  And the more aware you are about filling, the more slowly you will find that

Filling is absolutely worthless.  Could not fill it after a lifetime!  Could not fill it after many births!  Fill in here, all here

Slip out.  But the illusion of filling is never missed, because we do not pay attention to filling.

Take care when filling.  And whatever has been filled so far, nothing has been filled, be aware of it.  A twenty four hours

Will anyone agree to it or not?  He will find, this mind is always empty, nothing has ever been filled in it.

So don't ask the opposite.  Do not raise wrong questions.  Wrong questions lead to wrong answers.  The right question leads to the right answer.  The right question is, how should we not fill what we are filling?

 And how much does it mean to not be filled, be aware.  If you know that this drum is broken on both sides, then

Then you fill up?  The bucket will be left by hand;  Laugh and return home.

That void is not to be attained, that void is within us.  The miracle is that we have kept that void as full.

 It seems that everything is full.  It is enough to wake up to this illusion.


 "Osho Tao Upanishad"



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