लाओत्से कहता है, ―ताओ है रिक्त घड़े जैसा। इसके उपयोग में सभी प्रकार की पूर्णताओं से सावधान रहना अपेक्षित है।’
इसके उपयोग में, अगर धर्म का उपयोग करना है, तो पूर्णता के उपद्रव से, समस्त पूर्णताओं से सावधान रहना अपेक्षित है। यह भी थोड़ा सोेचने जैसा है। उपयोग शब्द के भीतर थोड़ा उतरें तो ख्याल में आएगा।
धर्म अगर कुछ है तो जीवन का परम उपयोग है, वह जीवन की आत्यन्तिक अर्थवत्ता है। अगर ताओ का या धर्म का उपयोग करना है,
तो एक ही सूचन देता है लाओत्से कि समस्त तरह की पूर्णताओं से, पूर्णता की आकांक्षा से सावधान रहना। और धर्म का उपयोग शुरू
हो जाएगा। क्योंकि जैसे ही कोई व्यक्ति शून्य होता है, वैसे ही धर्म सक्रिय हो जाता है, डायनेमिक हो जाता है। और जैसे ही कोई व्यक्ति भर जाता है किन्हीं चीजों से, धर्म अक्रिय हो जाता है, बोझ से भर जाता है, दब जाता है। नष्ट तो होता नहीं धर्म ।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Lao Tzu says, it is like a empty pitcher. It is necessary to be careful with all kinds of completions in its use. '
In its use, if religion is to be used, it is expected to be wary of all perfections, from the nuisance of perfection. It is also like thinking a little. If you get a little inside the word usage, then it will be thoughtful.
Religion, if anything, is the ultimate use of life, it is the ultimate economy of life. If you want to use Tao or religion,
So it gives the same information Laotse to beware of all the completions, aspiring for perfection. And start using religion
Will be done. Because as soon as a person is zero, religion becomes active, it becomes dynamic. And as soon as a person is filled with some things, religion becomes inert, filled with burden, suppressed. Religion is not destroyed.
"Osho Tao Upanishad"
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