महावीर परम ज्ञान को उपलब्ध हो गए , या बुद्ध परम ज्ञान को उपलब्ध हो गए , लेकिन बुद्ध सुबह प्रार्थना करते हैं, तो रोज तो वे
क्षमा मांगते हैं समस्त जगत से। एक दिन बुद्ध से किसी ने पूछा कि आप परम ज्ञान को उपलब्ध हो गए , आपसे अब किसी को
चोट नहीं पहुंचती,पहुंच ही नहीं सकती, आप क्षमा किस बात की मांगते हैं ?
बुद्ध ने कहा कि मुझे अपने अज्ञान के दिनों की याद है। कोई मुझे चोट नहीं भी पहुंचाता था, तो पहुंच जाती थी। यद्द्यपि मैं किसी
को चोट नहीं पहुंचा रहा, लेकिन बहुतों को पहुंच रही होगी। मुझे अपने अज्ञान की अवस्था का ज्ञान है। कोई मुझे चोट नहीं पहुँचाता था, तो भी पहुँच जाती थी। तो मैं जानता हूं कि वह जो अज्ञान चारों तरफ मेरे है, वह जो अज्ञानियों का समूह हैे,चारों तरफ , मेरे बिना पहुंचाए भी अनेकों को चोट पहुंच रही होगी। फिर मैंने पहुंचाई या नहीं पहुंचाई, इससे क्या फर्क पड़ता है ? उनको तो पहुंच ही रही है। उसकी क्षमा तो मांगनी ही चाहिए ।
पर जिसने पूछा था, उसने कहा, आप तो कारण नहीं हैं पहुंचाने वाले !
बुद्ध ने कहा, कारण तो नहीं,लेकिन निमित्त तो हूं। अगर मैं न रहूं, तो मुझसे तो नहीं पहुंचेगी। मेरा होना तो काफी है न, इतना तो जरूरी है, उनको चोट पहुंचे। तो मैं क्षमा मांगता रहूंगा। यह क्षमा किसी किए गए अपराध के लिए नहीं, हो गए अपराध के लिए है। और हो गए अपराध में मेरा कोई हाथ न हो, तो भी ।
"ओशो ताओ उपनिषद "
Mahavira became available to ultimate knowledge, or Buddha became available to ultimate knowledge, but Buddha prayed in the morning, then everyday he
We apologize to the whole world. One day someone asked Buddha that you have attained the ultimate knowledge, someone is now with you
Can't hurt, can't reach, what do you ask for forgiveness?
The Buddha said that I remember my days of ignorance. Nobody used to hurt me, then she would have reached. Although I Is not hurting, but must be reaching many. I know my state of ignorance. Nobody used to hurt me, but still reached. So I know that the ignorance that is all around me, the one who is a group of ignorant people, all around, without hurting me must be hurting many. Then what did I deliver or not, what difference does it make? They are reaching. He must apologize.
But the one who asked, said, "You are not the reason to deliver!"
The Buddha said, I do not have a reason, but I am an instrument. If I do not stay, then I will not reach you. It is enough for me to be so, it is necessary, they should be hurt. So I will keep apologizing. This forgiveness is not for a crime committed, but for a crime committed. And even if I have no hand in the crime.
"Osho Tao Upanishad"
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