समस्त धर्मों का सार किसी वचन में आ जाता हो, तो वह जीसस के इस वचन में आ जाता है: डू अनटू अदर्स एज यू
वुड लाइक टु बी डन विद यू । बस सारे धर्म का सार इस एक सूत्र में आ जाता है: दूसरे के साथ वही करो जो तुम चाहोगे कि दूसरे
तुम्हारे साथ करें। यह एक वचन काफी है। सारे वेद और सारे शास्त्र और सारे पुराण और सारे कुरान और सारी बाइविल, इस एक छोटे से वचन में समाहित हो जाते हैं।
इतना कोई कर ले तो और कुछ करने को बाकी नहीं रह जाता। लेकिन यह करना बहुत दुष्कर है। क्योंकि इसको करने के लिए सारी
नोकें झड़ा देनी पड़ेंगी । और नोकें हममें हैं ।
यह जो दोहरा तर्क है, इसके प्रति सजग हो जाना चाहिए । एक- एक पल इसके प्रति सजग होना पड़ेगा कि मैं दूसरे को भी
उतना ही मौका दं, वही तर्क का लाभ दूँ ,जो मैं अपने को देता हूं। और तब आपको अपनी नोकें दिखाई पड़नी शुरू हो जाएंगी। तब
बहुत मजेदार स्थिति बनती है।
जब आपको यह दिखाई पड़ने लगता है कि मेरा स्वभाव ऐसा है कि मैंने क्रोध किया ,मेरी आदत ऐसी है कि मैंने क्रोध किया, दूसरे की परिस्थिति ऐसी थी कि उसने क्रोध किया, तो आप दूसरे को न क्षमा करने में और अपने को क्षमा करने में असमर्थ हो जाते
हैं। और जो अपने को क्षमा करने में बहुत सुगमता पाता है, वह नोकों को कभी भी न झड़ा पाएगा।
"ओशो ताओ उपनिषद"
If the essence of all religions comes in a word, then it comes in this word of Jesus: Do not others as you
Wood like to be done with you. Just the essence of all religion comes in this one thread: Do what you want with other people.
Do with you This is enough of a promise. All the Vedas and all the scriptures and all the Puranas and all the Quran and all the bivalves are contained in this one small word.
If someone does so much then there is no more left to do anything else. But this is very difficult to do. Because to do it all Nozzle will have to be set. And the tips are in us.
This is a double argument, one should be aware of it. One moment, one has to be aware that I will also
The more opportunity I give, the more I give the benefit of logic, which I give myself. And then you will start seeing your tip. Then It is a very fun situation.
When you begin to see that my nature is such that I have been angry, my habit is such that I have been angry, the situation of the other was such that he was angry, then you do not forgive the other and forgive yourself Become unable
Huh. And he who is very easy to forgive himself, he will never be able to break the noose.
"Osho Tao Upanishad"
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