धर्म है रिक्त चेतना की अवस्था, खाली घड़े की भांति ।
लाओत्से कुछ बातें कहता है। वह कहता है, ―तेज नोकों को घिस दें।’
व्यक्तित्व में तेज नोकें हैं बहुत। जहां-जहां आप किसी को चुभते हैं, वहां आप में तेज नोक होती है। लेकिन एक मजा है नोक का कि जब दूसरा आपको चुभाता है, तब उसकी नोक आपको पता चलती है; लेकिन जब आप किसी दसरे को चुभाते हैं, तो आपको अपनी नोक
पता नहीं चलती। अगर छुरे को मैं आपके शरीर में चुभाऊं , तो आपको पता चलता है, छुरे को पता नहीं चलता। मेरी तेज नोक किसी में गड़ती है, तो उसे पता चलता है, मुझे पता नहीं चलता। हां, किसी और की नोक मुझमें गड़ जाए, तो मुझे पता चलता है।
इससे जगत में बड़ी भ्रांति होती है, बहुत कनफ्यूजन है। जगत की सारी कलह इस कारण ही है कि हमें दूसरे की नोक ही पता चलती है, अपनी नोक कभी पता नहीं चलती। आपको कभी अपनी नोक पता चली है ? इसलिए जीवन भर हम दूसरों की नोकों को झाड़ने में लगे रहते हैं।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Religion is a state of empty consciousness, like an empty pitcher.
Lao Tzu says a few things. He says, wear the sharp nozzles. '
There are many sharp points in personality. Wherever you prick someone, there is a sharp tip in you. But there is a fun tip that you know when the other pricks you; But when you prick another,
I don't know If I touch the knife in your body, then you know, the knife does not know. My sharp tip bursts into someone, then he knows, I don't know. Yes, I know if someone else's tip gets stuck in me.
This causes great confusion in the world, there is a lot of confusion. All the discord of the world is because we know the tip of the other, our tip is never known. Have you ever found your tip? That is why throughout our life we are busy sweeping others' points.
"Osho Tao Upanishad"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें