जीसस ने कहा है, जज यी नॉट, तुम तो निर्णय ही मत करो । जज यी नॉट दैट यी शुड नॉट बी जज्ड , तुम निर्णय ही मत लो, नहीं तुम्हारा निर्णय होगा फिर। किसी दिन तुम झंझट में पड़ोगे। तुम निर्णय ही मत लो । क्योंकि चीजें बहुत जटिल हैं और बहुत रहस्यपूर्ण हैं। क्या है पाप ? क्या है पुण्य ? यहां पुण्य पाप बन जाता है; यहां पाप पुण्य बन जाते हैं। यहां जो पाप की तरह शुरू होता है, उसमें पुण्य के फूल खिल जाते हैं। यहां जो पुण्य की तरह यात्रा शुरू
करता है, पाप की मंजील पर पहुंच जाता है।
लाओत्से कहता है, झिझकते हैं वे जो ज्ञानी हैं। और लाओत्से के सभी वक्तव्य झिझक से भरे हुए हैं, बहुत हेजिटेटिंग हैं। अज्ञानी
पढ़ेगा, तो उसको लगेगा, शायद पता नहीं होगा लाओत्से को। नहीं तो ऐसा क्यों कहना की मानो कि । अगर मालूम है, तो कहो; नहीं मालूम है ,तो कहो। साफ बात करो । नहीं मालूम, तो कह दो कि हमें पता नहीं कि जगत कहां से पैदा हुआ; मालूम है, तो कहो कि इससे पैदा हुआ। ऐसा क्यों कहते हो, मानो की ! इससे तुम्हारे अज्ञान का पता चलता है। असल में, अज्ञानी चीजों के रहस्य को कभी नहीं देख पाते। फिक्स कंसेप्ट में आसानी पड़ती है। कह दिया कि यह आदमी पापी है, बात खतम हो गई। लेकिन पापी पुण्य कर सकते हैं। कह दिया, यह आदमी पुण्यात्मा है, बात खतम हो गई। लेकिन पुण्यात्मा पाप कर सकता है। तो क्या मतलब तुम्हारे कहने से हुआ ? अगर पुण्यात्मा पाप कर सकता है और अगर पापी पुण्य कर सकता है, तो तुम्हारा लेबल लगाना खतरनाक हैं। क्यों लगाए ? कोई मतलब न था उनका।
"ओशो ताओ उपनिषद"
Jesus has said, Judge Yi Knot, you do not decide. Judge you not that you should not be judged, you should not take a decision, or your decision will happen again. Someday you will get into trouble. You do not decide. Because things are very complicated and very mysterious. What is sin? What is virtue? Here virtue becomes a sin; Here sins become virtuous. Here what starts as a sin, flowers of virtue blossom in it. Here the journey starts like a virtue
Does, reaches the threshold of sin.
Lao Tzu says, Those who are knowledgeable hesitate. And all of Laotse's statements are full of hesitation, very hedging. Ignorant
If he studies, he will feel it, maybe Laotse will not know. Otherwise why say it as if. If you know, then say; Don't know, then say it. Talk clearly Do not know, then say that we do not know from where the world was born; If you know, then say that it was born. Why say so, as if! This shows your ignorance. Actually, the ignorant never see the secret of things. Easy to fix concept. Told that this man is a sinner, the matter is over. But sinners can perform virtue. He said, this man is a saint, the matter is over. But the saint can sin. So what did you mean by that? If the saint can commit sin and if the sinner can do virtue, labeling yours is dangerous. Why apply? He did not mean anything.
"Osho Tao Upanishad"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें