Snehdeep Osho Vision

भारत के सामने बड़े से बड़ा सवाल जनसंख्या का है; और रोज बढ़ता जा रहा है। हिंदुस्तान की आबादी इतने जोर से बढ़ रही है कि हम कितनी ही प्रगति करें, कितना ही विकास करें, कितनी ही संपत्ति पैदा करें कुछ परिणाम न होगा। क्योंकि जितना हम पैदा करेंगे उससे चैगुने मुंह हम पैदा कर देते हैं। और सब सवाल वहीं के वहीं खड़े रह जाते हैं, हल नहीं होते।
मनुष्य ने एक काम किया है कि मौत से एक लड़ाई लड़ी है। मौत को हमने दूर हटाया है। हमने प्लेग, महामारियों से मुक्ति पा ली है। हम आदमी को ज्यादा स्वस्थ कर सके। बच्चे जितने पैदा होते हैं, करीब-करीब बचाने का हमने उपाय कर लिया है। हमने मौत से तो लड़ाई लड़ ली, लेकिन हम यह भूल गए कि हमें जन्म से भी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। एकतरफा लड़ाई महंगी पड़ जाएगी। हमने मौत का दरवाजा तो क्षीण कर दिया और जन्म का दरवाजा पुरानी रफ्तार से, बल्कि और बड़ी रफ्तार से जारी है। तो एक उपद्रव मुश्किल हो गया। प्रकृति में एक संतुलन था कि प्रकृति उतने ही लोगों को बचने देती थी इस पृथ्वी पर, जितने लोगों के बचने का उपाय था।
आपको शायद पता न हो, आपने घर में छिपकली देखी होगी दीवारों पर। छिपकली एक बहुत पुराने जानवर का वंशज है। आज से कोई दस लाख साल पहले जमीन पर हाथियों से भी कोई पांच-पांच गुने बडी छिपकलियां थी, वह सब खत्म हो गईं। क्योंकि उन्होंने इतने बच्चे पैदा कर लिए कि आत्मघात हो गया। उनके मरने का और कोई कारण नहीं है। न कोई भूकंप आया, न कोई अकाल पड़ा। उनका कुल कारण यह है कि उन्होंने इतने बच्चे पैदा कर लिए कि उन बच्चों के लिए भोजन जुटाना असंभव हो गया और सारी छिपकलियां मर गईं। उनका एक वंशज बहुत छोटे रूप में हमारे घरों में रह गया। हाथियों से बड़े जानवर थे वे। और भी बहुत से जानवरों की जातियां पृथ्वी से तिरोहित हो गई हैं, सदा के लिए विलीन हो गई हैं। कभी थीं, अब नहीं हैं। और उसका कुल कारण एक था कि वे बच्चे पैदा करते चले गए। और सीमा वहां आ गई, जहां भोजन कम पड़ गया और लोग ज्यादा हो गए और मृत्यु के सिवाय कोई रास्ता न रहा।
प्रकृति आदमी के साथ भी अलग तरह का सलूक न करेगी, आदमी इस भूल में न रहे। अगर हम संख्या बढ़ाते चले जाते हैं तो हमारे साथ भी वही होगा जो सब पशुओं के साथ हो सकता है। हमारे साथ कोई भगवान अलग से हिसाब नहीं रखेगा। आज पृथ्वी पर साढ़े तीन अरब लोग हैं। हिंदुस्तान की आबादी पाकिस्तान के बंटने के वक्त जितनी थी, पाकिस्तान बंटने से अगर किसी ने सोचा होगा कि हम कम हो जाएंगे तो गलती में है। हमने एक पाकिस्तान को तब तक फिर पैदा कर लिया। आज पाकिस्तान-हिंदुस्तान की आबादी मिल कर बहत्तर करोड़ है। हिंदुस्तान की आबादी उन्नीस सौ तीस में तैंतीस करोड़ थी। तैंतीस करोड़ से बहत्तर करोड़ हो गई–सिर्फ चालीस वर्षों में! इस सदी के पूरे होते-होते हम कहां खड़े होंगे, कहना बहुत मुश्किल है। सभा करने की कोई जरूरत न रह जाएगी, जहां भी होंगे सभा में ही होंगे। कोहनी हिलाने की जगह नहीं रह जाने वाली है। लेकिन इतने लोग कैसे जी सकते हैं?
सारे जगत के सामने सवाल है, हमारे सामने सबसे ज्यादा। सबसे ज्यादा इसलिए है कि समृद्ध कौमें बच्चे कम पैदा करती हैं, गरीब कौमें ज्यादा बच्चे पैदा करती हैं। इसका कारण है। अमरीका में कोई जनसंख्या बढ़ नहीं रही। फ्रांस में तो घट रही है। फ्रांस की सरकार चिंतित है कि कहीं हमारी संख्या न घट जाए। बड़ी अजीब दुनिया है। इधर हम मरे जा रहे हैं कि संख्या बढ़ी जा रही है, उधर फ्रांस में संख्या कम पड़ी जा रही है। फ्रांस की सरकार चिंतित है कि कहीं संख्या कम न हो जाए। बीस साल से ठहरी हुई है संख्या। क्या कारण था?
असल में जैसे आदमी समृद्ध होता है, संपत्तिवान होता है, बुद्धिमान होता है, वैसे ही उसकी जिंदगी में मनोरंजन की बहुत सी दिशाएं खुल जाती हैं। और गरीब के पास मनोरंजन की एक ही दिशा है, सेक्स। और कोई मनोरंजन की दिशा नहीं है। और मुफ्त! कोई टिकट नहीं, कोई पैसा नहीं। कोइ खर्च नहीं। वह दिन भर का थका-मांदा, सिनेमा जाए तो पैसा खर्च हो जाते हैं, नृत्य देखे तो पैसा खर्च हो जाते हैं, रेडियो कहां से लाए, टेलीविजन कहां से लाए। सेक्स एकमात्र उसके पास मुफ्त मनोरंजन है। उसकी वजह से गरीब बच्चे पैदा करता चला जाता है। पहले कोई खतरा न था। पहले भी गरीब बच्चे पैदा करता था। एक आदमी बीस बच्चे पैदा करता था, एकाध बचा लिया तो बहुत, दोे बच गए तो बड़ी कृपा भगवान की। वह भी गंडे-ताबीज वगैरह बांध कर मुश्किल से बच पाते थे। लेकिन अब खतरा है, गरीब का बच्चा भी बचेगा। अमीर बच्चे कम पैदा करता है। क्योकि उसके पास मनोरंजन के साधन ज्यादा हैं। इसलिए अमीरों को पहले भी बच्चे गोद लेने पड़ते थे, अब भी लेने पड़ते हैं। उसके पास मनोरंजन के साधन बहुत हैं।
और एक और मजे की बात है कि आदमी जितने आराम में रहे, विश्राम में रहे, उसकी सेक्सुअल एनर्जी उतनी एब्जार्ब हो जाती है। जितने विश्राम में आदमी रहेगा उतनी उसकी काम शक्ति शरीर में विसर्जित हो जाती है। और जितना आदमी श्रम करेगा उतनी काम शक्ति बाहर निकलने के लिए आतुर हो जाती है। इसलिए श्रमिक की तकलीफ है क्योंकि इसके सारे शरीर की काम शक्ति निचोड़ कर इकट्ठी हो जाती है और बाहर फिंकना चाहती है। विश्राम करने वाले आदमी को उतनी काम शक्ति बाहर निकलने के लिए आतुर नहीं करती। इसलिए संपन्नता बढ़ने के साथ नये आयाम मिलते हैं–मनोरंजन के, सृजन की नई दिशाएं मिलती हैं। और तनाव और श्रम कम हो जाने से शरीर की यौन शक्ति शरीर में विसर्जित हो जाती है।
गरीब मुल्क के सामने बड़ा सवाल है। गरीब मुल्क क्या करे? हम क्या करें? हमारे सज्जन, अच्छे आदमी, जो हमें बड़े महंगे पड़ते रहे हैं, और अब भी महंगे पड़ रहे हैं–वे हमें समझाते हैं कि ब्रह्मचर्य रखो, संयम रखो तो सब ठीक हो जाएगा। कोई ब्रह्मचर्य रख नहीं सकता, न रखता है। कोई रख सके करोड़ में, दोे करोड़ में एक व्यक्ति तो उसके लिए उसे इतने शीर्षासन और इतनी चेष्टाएं और इतनी विधियां करनी पड़ती हैं कि संभव नहीं है कि आम–मास स्केल पर ब्रह्मचर्य कभी हो जाए। और फिर अगर किसी को ब्रह्मचर्य रखना हो तो फिर वह एक ही काम कर सकता है कि ब्रह्मचर्य रखे। चैबीस घंटे उसी काम में लगा रहे, फिर दूसरा काम नहीं कर सकता। इसलिए साधु-संन्यासी संसार छोड़ कर भागते हैं, उसका और कोई कारण नहीं है। एक ही काम, पूरा का पूरा एब्जार्बिंग है–ब्रह्मचर्य साधना। इतना खाना खाओ, इतना खाना मत खाओ, यह पानी पीओ, यह पानी मत पीओ, इस तरह सोओ, इस तरह मत सोओ, यह पढ़ोे, यह मत पढ़ोे, यह देखो, यह मत देखो–चैबीस घंटे वह ब्रह्मचर्य ही साध लें तो पर्याप्त–उनके जीवन की यात्रा हो गई। लेकिन यह बड़ी बेहूदी यात्रा है कि अगर सिर्फ ब्रह्मचर्य सधा तो क्या सध गया? यह मासेस के स्केल पर नहीं हो सकता।

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