Snehdeep Osho Vision

लाओत्से के साथ नीतिवादी का यही संघर्ष है। नीतिवादी कहेगा, यह सूत्र खतरनाक है। समझ लें, इतने दूर तक भी मान लें कि एक
 आदमी मूढ़ है और एक आदमी बुद्धिमान है, तो ठीक है,चलो  प्रकृत है। लेकिन एक आदमी बेईमान है, एक आदमी चोर है, एक आदमी हत्यारा है, तो हम ‍क्या करें ? स्वीकार कर लें ? समझ लें की प्रकृत ने ऐसा बनाया ?
 लाओत्से से अगर पूछें, तो लाओत्से कहेगा कि तुमने स्वीकार नहीं किया, तुमने कितने हत्यारों  को गैर-हत्यारा बना पाए ? तुमने स्वीकार नहीं किया , तुमने कितने बेईमानों को ईमानदार बनाया ? तुमने स्वीकार नहीं किया, तुमने दंड दिया , तुमने अपराधी करार दिया, तुमने फांसी लगाईं, तुमने कोड़े मारे , तुमने जेलों में बंद किया, तुमने जीवन भर की सजाएं दीं। तुम कितने लोगों को बदल पाए ?
 लाओत्से कहता है, सच्चाई तो यह है की तुम जिसे दंड देते हो, तुम उसे उसकी बेईमानी में और थिर कर देते हो। और  तुम जिसे सजा
 देते हो, उसे तुम उसके अपराध से कभी मुक्त नहीं करते, तुम उसे और निष्णात अपराधी बना देते हो।
 "ओशो ताओ उपनिषद"



This is the struggle of the policy with Lao Tzu.  This formula is dangerous, the policyist would say.  Understand so far even assume that one
 Man is stupid and a man is intelligent, so okay, let's be natural.  But a man is dishonest, a man is a thief, a man is a murderer, what shall we do?  Accept?  Understand that Prakrit made this?
 If you ask Lao Tzu, Lao Tzu will say that you did not accept, how many murderers did you make to be non-murderers?  You did not accept, how many dishonest people did you make honest?  You have not accepted, you have punished, you have been declared a criminal, you have hanged, you have flogged, you have been locked in jails, you have given life sentences.  How many people have you been able to change?
 Lao Tzu says, the truth is that whomever you punish, you make him stumble in his dishonesty.  And whomever you punished
 You give him, he never frees him from his crime, you make him a master of crime.
 "Osho Tao Upanishad"

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