Snehdeep Osho Vision

मां दीवानी की तरफ से सब को ढेर सारा प्रेम, सबको हार्दिक धन्यवाद।।
झेन साधना में झाझेन का अर्थ है : सिर्फ बैठना, कुछ किए बिना सिर्फ बैठना। जो होता है वह होता है, तुम बस बैठे हो। झाझेन का मतलब है बिलकुल निष्‍क्रिय होकर बैठना। झेन मंदिरों में साधक वर्षों बैठे रहते हैं और पूरे दिन बैठे रहते हैं। तुम्हें लगेगा कि वे ध्यान कर रहे हैं। नहीं, वे ध्यान नहीं कर रहे हैं, वे बस मौन बैठे हैं। और मौन बैठने का यह अर्थ नहीं है कि वे किसी मंत्र द्वारा मौन निर्मित कर रहे हैं, वे सिर्फ बैठे हैं। अगर उनका कोई पांव सुन्न हो जाता है तो वे उसे अनुभव करते हैं, तो वे उसके प्रति सजग रहते हैं। अगर उनका शरीर थक जाता है तो वे सजग देखते हैं कि शरीर थक गया। शरीर को ऐसा ही होना है। अगर विचार चलते हैं तो वे उन्हें देखते हैं। वे उन्हें रोकने की चेष्टा नहीं करते हैं। वे कुछ भी नहीं करते हैं। विचार हैं, जैसे आकाश में बदलिया हैं। और वे जानते हैं कि बादल आकाश को नहीं नष्ट कर सकते, वे बस आते—जाते हैं। ऐसे ही चेतना के आकाश में विचार चलते हैं, आते—जाते हैं। वे उन्हें रोकते नहीं; वे उनके साथ जबरदस्ती नहीं करते। वे कुछ भी नहीं करते हैं; वे बस जागरूक हैं, देख रहे हैं कि विचार चल रहे हैं।
वे सिर्फ जागरूक रहते हैं, साक्षी रहते हैं। वर्ष आते हैं, वर्ष जाते हैं और वे बैठे रहते हैं और उसे देखते रहते हैं जो है। और फिर एक दिन सब कुछ विलीन हो जाता है। एक स्वप्न की तरह सब कुछ विलीन हो जाता है और तुम जाग जाते हो, जागरण को उपलब्ध हो जाते हो। यह जागरण अभ्यास की चीज नहीं है, इसे साधा नहीं जाता है। यह बोध तुम्हारा स्वभाव है—मूलभूत स्वभाव। 
आचार्य रजनीश-विज्ञान भैरव तंत्र
तंत्र--सूत्र--(भाग-3)--प्रवचन--38

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