लाओत्से कहता है कि तुम्हारी चेष्टा ही तुम्हें रोक रही है। तुम छोड़ दो चेष्टा।
क्या कारण होगा ऐसा ? ऐसा लाओत्से क्यों कह पाता है?
ऐसा इसलिए कहता है की जीवन में जो भी पाने योग्य है, वह हमें सदा से ही मिला हुआ है। चेष्टा की वजह से हम इतने व्यस्त
और परेशान हैं कि हम उसे देख नहीं पाते। कई बार ,जो हमारे पास हो चीज, अगर आप बहुत जल्दी में उसे खोजने लग जाएं
बहुत बेचैन हो जाएं, तो खो जाती है। जो बिलकुल मिली हुई थी, वह खो जाती है।
अधिकार नहीं करता ज्ञानी, स्वामित्व नहीं करता। करता है, जो करने योग्य जीवन में घटित होता है। श्रेय नहीं लेता, और सारा
श्रेय उसका है।
लाओत्से साधना में भरोसा नहीं करता। क्योंकि लाओत्से कहता है, जो भी साध कर मिलेगा, वह स्वभाव न होगा।
जो भी साधोगे, वह परिधि पर होगा। कोई साधना केंद्र पर नहीं हो सकती। स्वभाव शरीर और मन दोनों के पार है। उस स्वभाव को जानने के लिए तुम्हें कुछ भी करने की जरूरत नहीं है।
लेकिन ध्यान रहे, कुछ भी न करना बहुत बड़ा करना है। कुछ भी न करना छोटी बात नहीं है।
ओशो ताओ उपनिषद
Lao Tzu says that your efforts are stopping you. You leave the effort.
What would be the reason? Why can Lao Tzu say this?
This is because it says that whatever is attainable in life, we have always got it. We are so busy because of our efforts
And we are upset that we cannot see it. Sometimes, the thing that we have, if you start searching for it in a hurry
If you are very restless, then it is lost. All that was mixed is lost.
Knowledgeable does not own, does not own. Which does happen in a doable life. Takes no credit, and all
The credit is his.
Lao Tzu does not believe in spiritual practice. Because Lao Tzu says, whoever is able to practice will not have the nature.
Whatever you seek, it will be on the periphery. No cultivation can take place at the center. Nature is beyond both body and mind. You do not need to do anything to know that nature.
But remember, to do nothing is to make it big. Doing nothing is not a small thing.
Osho Tao Upanishad
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