Snehdeep Osho Vision

The days Laotse is talking about are those days when the learned people used to explain their philosophy in a wordless manner.  The more we return, the more sadhana is not erudition.  Sadhana is not erudition as we return.  Cultivation is the practice of silence.  And erudition is the practice of filling it with words.
 And as we move forward in history, we will come to know that Gyan is coming down in karma.  Buddha and Mahabir also give us a lot of hard work
 Do not seem to be.
 Today, what we call Mahatma, that Mahatma is not knowledgeable.  His greatness also depends on what he would have done
 is.  His being a Mahatma does not depend on his pure existence.  His greatness does not depend on his being, his doing
 Depends on what he does!  The question is not what is it, is the question what is it doing, what did it do?  His
 What is Bmora?
  If we ask today what Laotsay did?  So there is no vyora.  Laotse's life is completely empty in the name of doing.
 If we weigh by doing, then the small servant of our village is also doing a lot.  A village servant is also doing more
 Is from Lao Tzu.
 Osho Tao Upanishad

लाओत्से जिन दिनों की बात कर रहा है, वह उन दिनों की बात है, जब ज्ञानी अपने दर्शन को निःशब्द में समझाते थे। जितने पीछे हम लौट जाएंगे, उतना ही साधना पांडित्य नहीं है। जितने पीछे हम लौटेंगे, साधना पांडित्य नहीं है। साधना मौन होने का अभ्यास है। और पांडित्य तो शब्द से भरने का अभ्यास है।
और जैसे-जैसे इतिहास में हम आगे हटें, वैसे हमें पता चलेगा की ज्ञानी कर्म में उतर रहा है। बुद्ध और महाबीर भी हमें बहुत कर्मठ
नहीं मालूम पड़ते ।
आज जिसे हम महात्मा कहते हैं, वह महात्मा ज्ञानी नहीं है। उसका महात्मा होना भी इस बात पर निर्भर करता है कि वह ‍क्या करता 
है। उसका महात्मा होना उसके शुद्ध अस्तित्व पर निर्भर नहीं करता। उसका महात्मा होना उसके बीइंग पर निर्भर नहीं, उसके डूइंग
पर निर्भर है, वह ‍क्या करता है ! सवाल यह नहीं है की ‍व्हाट ही इज़, सवाल यह है की ‍व्हाट ही इज़ डूइंग, उसने ‍क्या किया ? उसका 
ब्मोरा ‍क्या है ?
 अगर आज हम पूछें कि लाओत्से ने ‍क्या किया ? तो कोई भी व्योरा नहीं है। करने के नाम पर लाओत्से की जिंदगी बिलकुल खाली है।
अगर हम करने से तौलें , तो हमारे गांव का जो छोटा-मोटा सेवक होता है, वह भी बहुत कर रहा है।  एक ग्राम-सेवक भी ज्यादा कर रहा 
है लाओत्से से।
ओशो ताओ उपनिषद


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